* डाॅबेराइनर के त्रिक :
डाॅबेराइनर ने तीन तत्वों का त्रिक बनाया जिन्हें परमाणु द्रव्यमान के आरोही क्रम में रखने पर बीच वाले तत्व का परमाणु द्रव्यमान, अन्य दो तत्वों के परमाणु द्रव्यमान का लगभग औसत होता है | इस नियम को डाॅबेराइनर का त्रिक का नियम कहते हैं |
उदाहरण:
(i) लिथियम (Li), सोडियम (Na) एवं पोटैशियम (K) |
(ii) कैल्शियम (Ca), स्ट्रांटियम (Sr) एवं बेरियम (Ba) |
(iii) क्लोरीन (Cl), ब्रोमिन (Br) एवं आयोडीन (I) |
डाॅबेराइनर उस समय तक केवल तीन ही त्रिक ज्ञात कर सके थे |
डाॅबेराइनर त्रिक की असफलता : जिस आधार पर जे. डब्ल्यू डाॅबेराइनर ने त्रिक बनाए थे उस आधार पर वे तीन ही त्रिक का पता लगा पाए वे अन्य तत्वों के साथ कोई और त्रिक नहीं बता सके | इसलिए त्रिक में वर्गीकृत करने की यह पद्धति सफल नहीं रही |
* न्यूलैंड्स का अष्टक सिद्धांत:
सन् 1866 में अंग्रेज़ वैज्ञानिक जाॅन न्यूलैंड्स ने ज्ञात तत्वों को परमाणु द्रव्यमान के आरोही क्रम में व्यवस्थित किया। उन्होंने सबसे कम परमाणु द्रव्यमान वाले तत्व हाइड्रोजन से आरंभ किया तथा 56वें तत्व थोरियम पर इसे समाप्त किया। उन्होंने पाया कि प्रत्येक आठवें तत्व का गुणधर्म पहले तत्व के गुणधर्म के समान है। उन्होंने इसकी तुलना संगीत के अष्टक से की और
इसलिए उन्होंने इसे अष्टक का सिद्धांत कहा। इसे ‘न्यूलैंड्स का अष्टक सिद्धांत’ के नाम से जाना जाता है।
* इस सिद्धांत के अनुसार:
तत्वों को उनके परमाणु द्रव्यमान के बढ़ते क्रम में व्यवस्थित करने पर प्रत्येक आठवें तत्व का गुणधर्म पहले तत्व के गुणधर्म के समान होता है। इस नियम को न्यूलैंड्स का अष्टक नियम कहा जाता है |
न्युलैंड्स का अष्टक नियम की क्या सीमाएॅ :
1. अष्टक का नियम का यह सिद्धांत केवल कैल्सियम तक ही लागु होता था ।
2. न्युलैंड ने सोचा 56 तत्वों के अलावा भविष्य में अन्य तत्व नहीं मिल सकेगा, लेकिन बाद में नए तत्व पाए गुए और मिले तत्वों के गुणधर्म अष्टक सिद्धांत से नहीं नहीं मिलते थे।
3. न्युलैंड का अष्टक सिद्धांत केवल हल्के तत्वों के लिए ही ठीक प्रकार से लागू हो सका ।
4. आयरन को कोबाल्ट एवं निकैल से दूर रखा गया है जबकि उनके गुणधर्म में समानता है |
डाॅबेराइनर ने तीन तत्वों का त्रिक बनाया जिन्हें परमाणु द्रव्यमान के आरोही क्रम में रखने पर बीच वाले तत्व का परमाणु द्रव्यमान, अन्य दो तत्वों के परमाणु द्रव्यमान का लगभग औसत होता है | इस नियम को डाॅबेराइनर का त्रिक का नियम कहते हैं |
उदाहरण:
(i) लिथियम (Li), सोडियम (Na) एवं पोटैशियम (K) |
(ii) कैल्शियम (Ca), स्ट्रांटियम (Sr) एवं बेरियम (Ba) |
(iii) क्लोरीन (Cl), ब्रोमिन (Br) एवं आयोडीन (I) |
डाॅबेराइनर उस समय तक केवल तीन ही त्रिक ज्ञात कर सके थे |
डाॅबेराइनर त्रिक की असफलता : जिस आधार पर जे. डब्ल्यू डाॅबेराइनर ने त्रिक बनाए थे उस आधार पर वे तीन ही त्रिक का पता लगा पाए वे अन्य तत्वों के साथ कोई और त्रिक नहीं बता सके | इसलिए त्रिक में वर्गीकृत करने की यह पद्धति सफल नहीं रही |
* न्यूलैंड्स का अष्टक सिद्धांत:
सन् 1866 में अंग्रेज़ वैज्ञानिक जाॅन न्यूलैंड्स ने ज्ञात तत्वों को परमाणु द्रव्यमान के आरोही क्रम में व्यवस्थित किया। उन्होंने सबसे कम परमाणु द्रव्यमान वाले तत्व हाइड्रोजन से आरंभ किया तथा 56वें तत्व थोरियम पर इसे समाप्त किया। उन्होंने पाया कि प्रत्येक आठवें तत्व का गुणधर्म पहले तत्व के गुणधर्म के समान है। उन्होंने इसकी तुलना संगीत के अष्टक से की और
इसलिए उन्होंने इसे अष्टक का सिद्धांत कहा। इसे ‘न्यूलैंड्स का अष्टक सिद्धांत’ के नाम से जाना जाता है।
* इस सिद्धांत के अनुसार:
तत्वों को उनके परमाणु द्रव्यमान के बढ़ते क्रम में व्यवस्थित करने पर प्रत्येक आठवें तत्व का गुणधर्म पहले तत्व के गुणधर्म के समान होता है। इस नियम को न्यूलैंड्स का अष्टक नियम कहा जाता है |
न्युलैंड्स का अष्टक नियम की क्या सीमाएॅ :
1. अष्टक का नियम का यह सिद्धांत केवल कैल्सियम तक ही लागु होता था ।
2. न्युलैंड ने सोचा 56 तत्वों के अलावा भविष्य में अन्य तत्व नहीं मिल सकेगा, लेकिन बाद में नए तत्व पाए गुए और मिले तत्वों के गुणधर्म अष्टक सिद्धांत से नहीं नहीं मिलते थे।
3. न्युलैंड का अष्टक सिद्धांत केवल हल्के तत्वों के लिए ही ठीक प्रकार से लागू हो सका ।
4. आयरन को कोबाल्ट एवं निकैल से दूर रखा गया है जबकि उनके गुणधर्म में समानता है |
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