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Thursday 3 November 2016
* जीवाश्मों की आयु का आंकलन :
* विकास एवं वर्गीकरण
* जाति उदभव का कारण:
* लिंग निर्धारण
Q - जनन कोशिकाओं का निर्माण कहाँ होता है ?
* वंशागति का नियम :
* वंशानुगत लक्षण:
* वंशानुगत लक्षण:
(i) प्रभावी लक्षण (Dominent Traits): माता-पिता के वे वंशानुगत लक्षण जो संतान में दिखाई देते हैं प्रभावी लक्षण कहलाते हैं | उदाहरण: मेंडल के प्रयोग में लंबा पौधा का "T" लक्षण, प्रभावी लक्षण है जो अगली पीढ़ी F1 में भी दिखाई देती है |
(ii) अप्रभावी लक्षण (Recessive Traits): माता-पिता सेआये वे वंशानुगत लक्षण जो संतान में छिपे रहते हैं अप्रभावी लक्षण कहलाते हैं |
(A) जीनोटाइप (Genotypes) : जीनोटाइप एक जीनों का समूह है जो किसी एक विशिष्ट लक्षणों के लिए उत्तरदायी होता है | यह अनुवांशिक सुचना होता है जो कोशिकाओं में होता है तथा यह व्यष्टि में हमें प्रत्यक्ष दिखाई नहीं देता है |
यह दो alleles के भीतर निहित सूचनाएँ होती है जिन्हें निरिक्षण द्वारा देखा नहीं जा सकता बल्कि जैविक परीक्षणों से पता लगाया जाता है | यह सूचनाएँ वंशानुगत लक्षण होते है जो माता-पिता से अगली पीढ़ी में आती हैं |
* जिनोंटाइप का उदाहरण:
(a) आँखों के रंग के लिए उत्तरदायी जीन |
(b) बालों के रंग के लिए उत्तरदायी जीन
(c) लंबाई के लिए उत्तरदायी जीन |
(d) आनुवंशिक बिमारियों के लिए उत्तरदायी जीन आदि |
* जीनोटाइप बदलाव निम्न तरीकों से किया जा सकता है :
(i) जीन या गुणसूत्रों में परिवर्तन करके |
(ii) जीनों का पुन:संयोजन करके |
(iii) जीनों का संकरण करके |
(A) फिनोटाइप (Phenotypes): दृश्य एवं व्यक्त लक्षण जो किसी जीव में दिखाई देता है जो जीनोटाइप पर निर्भर करता है फिनोटाइप लक्षण कहलाता है | परन्तु यह पर्यावरणीय कारकों द्वारा प्रभावित हो सकता है | यह जीन के सूचनाओं का व्यक्त रूप होता है | इसका पता मात्र सधारण अवलोकन के द्वारा लगाया जा सकता है | जैसे - आँखों का रंग, बालों का रंग, ऊँचाई, आवाज, कुछ बीमारियाँ, कुछ निश्चित व्यव्हार आदि से |
मेंडल द्वारा लिए गए मटर के कुल लक्षण (Characters): मेंडल ने अपने प्रयोग में मटर के कुल सात विकल्पी लक्षणों को लिया था | जो इस प्रकार था |
1. बीजों का आकार - गोल एवं खुरदरा
2. बीजों का रंग - पीला एवं हरा
3. फूलों का रंग - बैंगनी एवं सफ़ेद
4. फली का आकार - चौड़ा और भरा हुआ एवं चपटा और सिकुड़ा हुआ
5. फली का रंग - हरा एवं पीला
6. फूलों की स्थिति - एक्सिअल एवं टर्मिनल
7. तने की ऊँचाई - लंबा एवं बौना
* इनमें से सभी प्रथम विकल्पी लक्षण प्रभावी है जबकि दूसरा लक्षण अप्रभावी लक्षण हैं |
विकल्पी लक्षण (alleles) प्रभावी लक्षण अप्रभावी लक्षण
1. बीजों का आकार गोल खुरदरा
2. बीजों का रंग पीला हरा
3. फूलों का रंग बैंगनी सफ़ेद
4. फली का आकार चौड़ा और भरा हुआ चपटा और सिकुड़ा हुआ
5. फली का रंग हरा पीला
6. फूलों की स्थिति एक्सिअल टर्मिनल
7. तने की ऊँचाई लंबा बौना
* मेंडल के प्रयोग में लक्षणों का अनुपात :
मेंडल के एकल संकरण द्वारा F2 संतति के उत्पन्न पौधों में जीनोटाइप एवं फेनोटाइप के आधार पर लक्षणों का अनुपात निम्न था |
फिनोंटाइप : Tt Tt Tt tt
अनुपात 3: 1 अर्थात 3 लंबा पौधा : 1 बौना पौधा
जीनोटाइप : TT Tt Tt tt
अनुपात 1: 2: 1 अर्थात आनुवंशिक रूप से 1 लंबा पौधा (TT) : 2 लंबे पौधे (Tt) : 1 बौना पौधा (tt)
1. समयुग्मकी (Homozygous) : समयुग्मकी शब्द एक विशेष प्रकार के जीन के लिए किया जाता है जो दोनों समजात गुणसूत्र में समान विकल्पी युग्मकों (identical alleles ) को वहन करता है |
(i) प्रभावी समयुग्मकी (Homozygous Dominent) : जब दोनों युग्मक प्रभावी लक्षण के हो तो इसे प्रभावी समयुग्मकी कहते हैं | उदाहरण - XX या TT
(ii) अप्रभावी समयुग्मकी (Hetroozygous Dominent) : जब दोनों युग्मक अप्रभावी लक्षण के हो तो इसे अप्रभावी समयुग्मकी कहते हैं | जैसे - xx या tt
उदाहरण : प्रभावी समयुग्मकी (XX) तथा अप्रभावी समयुग्मकी (xx) जैसे मेंडल के प्रयोग में (TT) लंबे और (tt) बौने |
capital letter में प्रभावी लक्षण होते है और small letter में अप्रभावी लक्षण होते हैं |
2. विषमयुग्मकी (Hetrotraits) : जब किसी विकल्पी युग्मक में एक प्रभावी युग्मक का लक्षण तथा दूसरा अप्रभावी का हो तो इसे विषमयुग्मकी कहते हैं |
जैसे - Tt या Xy या xY इत्यादि |
समयुग्मकी एवं विषमयुग्मकी में अंतर :
* समयुग्मकी :
1. इसके युग्मक में या तो दोनी प्रभावी विकल्पी लक्षण होते है या दोनों अप्रभावी विकल्पी लक्षण होते हैं |
2, इसमें एक ही प्रकार के युग्मक होते हैं |
3. इसमें
* विषमयुग्मकी
1. इसके युग्मक में प्रभावी एवं अप्रभावी दोनों लक्षण होते है |
2. इसमें दोनी प्रकार के युग्मक होते हैं |
3. द्वि-संकरण अथवा द्वि-विकल्पीय संकरण (Dihybrid Cross) : दो पौधों के बीच वह संकरण जिसमें दो जोड़ी लक्षण लिए जाते है, द्वि-संकरण कहलाता है |
मेंडल का द्वि-संकरण (Dihybrid Cross) प्रयोग : मेंडल ने अपनी अगली प्रयोग में गोल बीज वाले लंबे पौधों का झुर्रीदार बीज वाले बौने पौधों से संकरण (cross pollination) कराया | F1 पीढ़ी के सभी पौधे लंबे एवं गोल बीज वाले थे | F1 पीढ़ी के संतति का स्वनिषेचन से F2 पीढ़ी के संतति जो प्राप्त हुई वे पौधे कुछ लंबे एवं गोल बीज वाले थे तथा कुछ बौने एवं झुर्रीदार बीज वाले थे |
अत: दो अलग-अलग लक्षणों की स्वतंत्र रूप से वंशानुगत होती है |
यहाँ F1 पीढ़ी के दोनों पौधों का स्व-निषेचन (Self-fertilisation) कराया गया | जिससे
F2 पीढ़ी के पौधे का जीनोटाइप (Genotypes) सूचनाएँ इस प्रकार थी जो दोनों F1 पीढ़ी के पौधों के युग्मक से प्राप्त हुई |
F2 पीढ़ी के पौधे
युग्मक RY Ry rY ry
RY RRYY RRYy RrYY RrYy
Ry RRYy RRyy RrYy Rryy
rY RrYY RrYy rrYY rrYy
ry RrYy Rryy rrYy rryy
F2 में फिनोंटाइप (Fenotypes):
(R तथा Y प्रभावी लक्षण हैं जबकि r तथा y अप्रभावी लक्षण है )
गोल, पीले बीज : 9
गोल, हरे बीज : 3
झुर्रीदार, पीले बीज : 3
झुर्रीदार, हरे बीज : 1
मैंडल द्वारा मटर के ही पौधे के चुनने का कारण :
1. इनका जीवन काल बहुत ही छोटा होता है |
2. ये बहुत ही कम समय में फल एवं बीज उत्पन्न कर देते हैं |
3. इसमें विभिन्नताएँ काफी पायी जाती है जिनका अध्ययन एवं भेद करना आसान हैं |
* आनुवंशिकता एवं जैव विकास
* आनुवंशिकता एवं जैव विकास
स्पीशीज के अस्तित्व के लिए विभिन्नताओं का महत्त्व: किसी भी स्पीशीज में कुछ विभिन्नताएँ उन्हें अपने जनक से मिली होती है, जबकि कुछ विभिन्नताएँ उनमें विशिष्ट होती है | जो कई बार विशेष परिस्थितियों में उन्हें विशिष्ट बनाता है | प्रकृति की विविधता के आधार पर इन विभिन्नताओं से जीव की स्पीशीज को विभिन्न प्रकार का लाभ हो सकते हैं | जैसे - किसी जीवाणु की कुछ स्पीशीज में उष्णता को सहने की क्षमता है | यदि किसी कारण उसके पर्यावरण में अचानक उष्णता बढ़ जाती है तो इसकी सबसे अधिक संभावना है कि वह स्पीशीज अपने अस्तित्व को अधिक गर्मी से बचा लेगा |
आनुवंशिकी (Genetics): लक्षणों के वंशीगत होने एवं विभिन्नताओं का अध्ययन ही आनुवंशिकी कहलाता है |
आनुवंशिकता (Heredity): विभिन्न लक्षणों का पूर्ण विश्वसनीयता के साथ एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में वंशागत होना आनुवंशिकता कहलाता है |
विभिन्नता (Variation): एक स्पीशीज के विभिन्न जीवों के शारीरिक अभिकल्प (Design) और डी.एन.ए. में अंतर विभिन्नता कहलाता है |
वंशागत लक्षण (Inherited Traits): वे लक्षण जो किसी स्पीशीज के अपने आधारभूत लक्षणों के साथ-साथ कुछ विशेष लक्षण जो उसके जनक से उसमें वंशानुक्रम हुए है | जैसे - कुछ मनुष्यों में कर्णपालि का जुड़ा हुआ होना या किसी में स्वतंत्र होना आदि |
* मेंडल का प्रयोग एवं वंशागत नियमों के प्रतिपादन में योगदान :
मेंडल ने वंशागति के कुछ मुख्य नियमों को प्रस्तुत किए | उन्हें आनुवंशिकी विज्ञान का जनक कहा जाता है | उन्होंने अपने प्रयोग के लिए मटर के पौधों को चुना | मटर एक वर्षीय पौधा है जो बहुत ही कम समय में इसका जीवन काल समाप्त हो जाता है एवं फल एवं फुल दे देता है | मटर की विभिन्न प्रजातियाँ होती है जिनके लक्षण स्थूल रूप से दिखाई देते है | जैसे- गोल या झुर्रीदार बीज वाला, लम्बे या बौने पौधे वाला, सफ़ेद या बैगनी फुल वाला पीले या हरे बीज वाला आदि |
* लक्षणों के वंशागति के नियम :
(i) मानव में लक्षणों की वंशागति के नियम इस बात पर आधारित हैं कि माता-पिता दोनों ही समान मात्रा में आनुवंशिक पदार्थ को संतति (शिशु) में स्थानांतरित करते है |
(ii) प्रत्येक लक्षण के लिए प्रत्येक संतति में दो विकल्प होते हैं |
(iii) प्रत्येक लक्षण माता-पिता के DNA से प्रभावित होते हैं |
* मेंडल का प्रयोग :
(1) एकल संकरण (Monohybrid Cross) : इस प्रयोग में मेंडल ने मटर के सिर्फ दो एकल लक्षण वाले पौधों को लिया जिसमें एक लंबे पौधें दूसरा बौने पौधें थे | प्रथम पीढ़ी (F1) में सभी पौधे पैतृक पौधों के समान लंबे थे | उन्होंने आगे अपने प्रयोग में दोनों प्रकार के पैतृक पीढ़ी के पौधों एवं F1 पीढ़ी के पौधों को स्वपरागण द्वारा उगाया | पैतृक पीढ़ी के पौधों से प्राप्त पौधे पूर्व की ही भांति सभी लंबे थे | परन्तु F1 पीढ़ी से उत्पन्न पौधें जो F1 की दूसरी पीढ़ी F2 थी सभी पौधें लंबे नहीं थे बल्कि एक चौथाई पौधे बौने थे |
* मेंडल के प्रयोग का निष्कर्ष :
(i) दो लक्षणों में से केवल एक पैतृक जनकीय लक्षण ही दिखाई देता है, उन दोनों का मिश्रित प्रभाव दिखाई नहीं देता है |
(ii) F1 पौधों द्वारा लंबाई एवं बौनेपन दोनों लक्षणों की वंशानुगति हुई | परन्तु केवल लंबाई वाला लक्षण ही व्यक्त हो पाया |
(iii) अत: लैंगिक जनन द्वारा उत्पन्न होने वाले जीवों में किसी भी लक्षण की दो प्रतिकृतियों (स्वरुप) की वंशानुगति होती है |
(iv) दोनों एक समान हो सकते है अथवा भिन्न हो सकते है जो उनके जनक पर निर्भर करता है |