* धारावाही चालक के चारो ओर चुम्बकीय क्षेत्र :
(i) एक धातु चालक से होकर गुजरने वाली विद्युत धारा इसके चारों ओर चुम्बकीय क्षेत्र बनाता है |
(ii) जब एक धारावाही चालक को दिक्सूचक सुई के पास और उसके सुई के समांतर ले जाते है तो विद्युत धारा की बहाव की दिशा दिकसुचक के विचलन की दिशा को उत्क्रमित कर देता है जो कि विपरीत दिशा में होता है |
(iii) यदि धारा में वृद्धि की जाती है तो दिक्सूचक के विचलन में भी वृद्धि होती हैं |
(iv) जैसे जैसे चालन में धारा की वृद्धि होती है वैसे वैसे दिए गए बिंदु पर उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र का परिमाण भी बढ़ता है |
(v) जब हम एक कंपास (दिक्सूचक) को धारावाही चालक से दूर ले जाते हैं तो सुई का विचलन कम हो जाता है |
(vi) तार में प्रवाहित विद्युत धारा के परिमाण में वृद्धि होती है तो किसी दिए गए बिंदु पर उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र के परिमाण में भी वृद्धि हो जाती है।
(vii) किसी चालक से प्रवाहित की गई विद्युत धरा के कारण उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र चालक से दूर जाने पर घटता है।
(viii) जैसे-जैसे विद्युत धरावाही सीधे चालक तार से दूर हटते जाते हैं, उसके चारों ओर उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र को निरूपित करने वाले संकेंद्री वृत्तों का साइज़ बड़ा हो जाता है।
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