* प्राकृतिक परिघटनाएं एवं वायुमंडलीय अपवर्तन
प्राकृतिक परिघटनाएं (Natural Phenomenons) : हमारे आसपास बहुत सी घटनाएँ होती रहती हैं , जो कुछ प्राकृतिक कारणों से होती हैं | ऐसी घटनाओं को प्राकृतिक परिघटनाएं कहा जाता है | जैसे - इन्द्रधनुष का बनाना, आकाश में तारों का टिमटिमाना, आकाश का नीला दिखाई देना, सूर्योदय एवं सूर्यास्त के समय सूर्य का रक्ताभ प्रतीत होना इत्यादि |
पूर्ण आतंरिक परावर्तन (Total Internal Reflection) : पूर्ण आतंरिक परावर्तन एक प्रकाशीय परिघटना है जिसमें प्रकाश की किरण किसी माध्यम के तल से ऐसे कोण से आपतित होती है कि अपवर्तन के बाद उसका परावर्तन उसी माध्यम में हो जाता है जिस माध्यम से वह आई होती है | इसे ही पूर्ण आतंरिक परावर्तन कहते हैं |
क्रांतिक कोण (Critical Angle) : वह आपतन कोण जिसका अपवर्तन कोण का मान 90o या उससे अधिक हो | क्रांतिक कोण कहलाता है |
* किसी माध्यम में पूर्ण आतंरिक परावर्तन होने कि शर्त :
(i) प्रकाश कि किरण अधिक अपवर्तनांक से कम अपवर्तनांक के माध्यम की ओर प्रवेश करे अर्थात सघन माध्यम से विरल माध्यम की ओर प्रवेश करे |
(ii) आपतन कोण का मान क्रांतिक कोण से अधिक हो |
* वायुमंडलीय अपवर्तन (Atmospheric Refraction): हमारे वायुमंडल में वायु की समान्यत: दो परतें हैं एक गर्म वायु की तथा दूसरी ठंठी वायु की, जो मिलकर दो भिन्न-भिन्न अपवर्तनांकों की माध्यम बनाती है | गर्म वायु हल्की होती है जो ऊपर उठ जाती है और ठंठ वायु जो थोड़ी भारी होती है वह पृथ्वी कि सतह की ओर रहती है | ठंठ वायु सघन माध्यम का कार्य करता है और गर्म वायु बिरल माध्यम का कार्य करता है | इससे होकर गुजरने वाली प्रकाश की किरण में अपवर्तन होता है इसे ही वायुमंडलीय अपवर्तन कहते हैं |
• पृथ्वी के वायुमंडल के कारण होने वाले प्रकाश के अपवर्तन को वायुमंडलीय अपवर्तन कहते हैं |
• गरम वायु में से होकर देखने पर वस्तु की आभासी स्थिति परिवर्तित होती रहती है।
• वायुमंडलीय अपवर्तन के कारण बहुत सी परिघटनाएं होती रहती है जैसे- तारों, का टिमटिमाना, अग्रिम सूर्योदय में सूर्य की आभासी स्थित दिखाई देना इत्यादि |
• ऊपर से जैसे-जैसे हम पृथ्वी की सतह की ओर बढ़ते जाते है वायु का अपवर्तनांक बढ़ता जाता है |
वायुमंडलीय अपवर्तन का कारण: पृथ्वी के वायुमंडल के कारण होने वाले प्रकाश का अपवर्तन |
* तारों का टिमटिमाना (Twinkling of stars) : तारों के प्रकाश के वायुमंडलीय अपवर्तन के कारण ही तारे टिमटिमाते प्रतीत होते हैं। पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करने के पश्चात पृथ्वी के पृष्ठ पर पहुँचने तक तारे का प्रकाश निरंतर अपवर्तित होता जाता है। वायुमंडलीय अपवर्तन उसी माध्यम में होता है जिसका क्रमिक परिवर्ती अपवर्तनांक हो। क्योंकि वायुमंडल तारे के प्रकाश को अभिलंब की ओर झुका देता है, अतः तारे की आभासी स्थिति उसकी वास्तविक स्थिति से कुछ भिन्न प्रतीत होती है। अतः तारे की आभासी स्थिति विचलित होती रहती है तथा आँखों में प्रवेश करने वाले तारों के प्रकाश की मात्रा झिलमिलाती रहती है -जिसके कारण कोई तारा कभी चमकीला प्रतीत होता है तो कभी धुँधला, जो कि टिमटिमाहट का प्रभाव है।
ग्रहों का टिमटिमाते हुए नहीं दिखाई देना : ग्रह तारों की अपेक्षा पृथ्वी के बहुत पास हैं और इसीलिए उन्हें विस्तृत स्रोत की भाँति माना जा सकता है। यदि हम ग्रह को बिंदु-साइश के अनेक प्रकाश स्रोतों का संग्रह मान लें तो सभी बिंदु साइश के प्रकाश-स्रोतों से हमारे नेत्रों में प्रवेश करने वाले प्रकाश की मात्रा में कुल परिवर्तन का औसत मान शून्य होगा, यही कारण है कि ग्रह टिमटिमाते हुए दिखाई नहीं देते हैं |
सुर्योदय होने के पहले एवं सुयास्त होने बाद भी सूर्य का दिखाई देना :
पृथ्वी के उपर वायुमंडल में जैसे - जैसे हम ऊपर जाते हैं, वायु हल्की होती जाती हैं । सुर्योदय होने के पहले एवं सुर्यास्त होने बाद सूर्य से चलने वाली किरणें पूर्ण आंतरिक परावर्तित होकर हमारी आँख तक पहुँच जाती हैं । जब हम इन किरणों को सीधा देखते हैं तो हमें सूर्य की अभासी प्रतिबिम्ब क्षैतिज से उपर दिखाई देता है जबकि सूर्य उस समय वास्तव में क्षितिज से नीचे होता है |
* वास्तविक सूर्योदय : वास्तविक सूर्योदय का अर्थ है सूर्य का वास्तव में क्षितिज को पार करना |
* सूर्य की आभासी स्थिति : इस स्थिति में सूर्य अपने वास्तविक स्थान से थोडा उठा हुआ नजर आता है | जो वास्तव में सूर्य की स्थिति नहीं होती है | इसे ही सूर्य कि आभासी स्थित कहते हैं |
यह घटना भी ठीक उसी तरह होता है जब हम किसी शीशे की गिलास में पानी डालकर एक सिक्के को देखते है तो वह सिक्का अपने वस्तविक स्थान से थोडा उठा हुआ नजर आता है |
* इन्द्रधनुष का बनना : वर्षा होने के पश्चात् ही हमें इन्द्रधनुष दिखाई देता है | इन्द्रधनुष आकाश में जल की सूक्ष्म बूंदों में दिखाई देने वाला स्पेक्ट्रम है | जब जल की किसी बूंद से होकर सूर्य का प्रकाश गुजरता है तो प्रकाश का परिक्षेपण होने के कारण इन्द्र धनुष बनता है | जिसमें सूर्य के आपतित प्रकाश को ये बूँदें अपवर्तित तथा विक्षेपित करती हैं, तत्पश्चात इसे आंतरिक परावर्तित करती हैं, अंततः जल की बूँद से बाहर निकलते समय प्रकाश को पुनः अपवर्तित करती हैं | तो इस स्थिति में जल की वह बूंद प्रिज्म की भांति कार्य करता है और परिमाण स्वरुप सूर्य की विपरीत दिशा में इन्द्रधनुष बनता है |
• जल की बुँदे प्रिज्म की भांति कार्य करती हैं |
• वर्षा होने के पश्चात् ही हमें इन्द्रधनुष दिखाई देता है |
• इन्द्रधनुष आकाश में जल की सूक्ष्म बूंदों में दिखाई देने वाला स्पेक्ट्रम है |
• यह हमेशा सूर्य की विपरीत दिशा में बनता है |
• यह प्रकाश के परिक्षेपण के कारण होता है |