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Thursday 10 November 2016
* महासागरीय तापीय ऊर्जा का दोहन :
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* समुद्रों से ऊर्जा तथा नाभकीय ऊर्जा
* वैकल्पिक ऊर्जा स्रोत अथवा गैर-परंपरागत ऊर्जा स्रोत:
* टरबाइन का सिद्धांत:
* टरबाइन का सिद्धांत:
टरबाइन यांत्रिक ऊर्जा से कार्य करता है इसके रोटर-ब्लेड को घुमाने के लिए एक गति देनी होती है जो इसे गतिशील पदार्थ जैसे जल, वायु अथवा भाप से प्राप्त होता है जिससे यह रोटर को ऊर्जा प्रदान करते है | वह इस यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में रूपांतरित करने के लिए डायनेमो के शैफ्ट को घुमा देता है | यही टरबाइन का सिद्धांत है |
* ताप विद्युत की प्रक्रिया :
ताप विद्युत की प्रक्रिया में टरबाइन को घुमाने के लिए ऊर्जा के विभिन्न स्रोतों का उपयोग किया जाता है | ये ऊर्जा के विभिन्न स्रोत निम्नलिखित हैं :
(i) ऊँचाई से गिरता हुआ पानी द्वारा |
(ii) ऊष्मा देकर जल से भाप उत्पन्न कर |
(iii) पवन के तेज झोकों द्वारा |
* यह प्रक्रिया निम्न है :
ऊर्जा स्रोत द्वारा टरबाइन का घुमाना
↓
टरबाइन द्वारा '
ली गयी यांत्रिक ऊर्जा द्वारा डायनेमो के शैफ्ट को घुमाना
↓
डायनेमो द्वारा विद्युत ऊर्जा का उत्पन्न होना |
एक समान्य ताप विद्युत उत्पादन का मॉडल
2. तापीय विद्युत संयंत्र :
•विद्युत संयंत्रों में प्रतिदिन विशाल मात्रा में जीवाश्मी ईंधन का दहन करके जल उबालकर भाप बनाई जाती है जो टरबाइनो घुमाकर विद्युत उत्पन्न करती है |
•इन संयंत्रों में ईंधन के दहन द्वारा उष्मीय ऊर्जा उत्पन्न कि जाती है जिसे विद्युत ऊर्जा में रूपांतरित किया जाता है | इसलिए इसे तापीय विद्युत संयंत्र कहते है |
•बहुत से तापीय संयंत्र के कोयले तथा तेल के क्षेत्रों के निकट ही स्थापित इसलिए किये जाते है ताकि समान दूरियों तक कोयले तथा पेट्रोलियम के परिवहन कि तुलना में विद्युत संचरण अधिक दक्ष हो |
3. जल विद्युत संयंत्र :
•जल विद्युत संयंत्र में बहते जल कि गतिज ऊर्जा अथवा किसी ऊँचाई पर स्थित जल की स्थितिज ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में रूपांतरित किया जाता है |
•ऐसे जल-प्रपातों कि संख्या बहुत कम है इसलिए कृत्रिम जल प्रपात का निर्माण किया जाता है जिसमें नदियों या जलाशयों की बहाव को रोककर बड़े जलाशयों (कृत्रिम झीलों) में जल को एकत्र करने के लिए बड़े-बड़े बांध बनाए जाते हैं | जब इसमें जल का स्तर ऊँचा हो जाता है तो पाइप द्वारा जल की धार से बांध के आधार के पास स्थापित टरबाइन के ब्लेड को घुमाया जाता है जिससे जनित्र द्वारा विद्युत उत्पादन होता है |
बांध निर्माण एवं उससे समस्याएँ :
•टिहरी बांध तथा सरदार सरोवर बांध जिसकी निर्माण परियोजना का विरोध हुआ था |
•बाँधों के टूटने पर भयंकर बाढ़ आने का खतरा रहता है |
•इससे पेड़-पौधे, वनस्पति आदि जल में डूब जाते हैं वे अवायवीय परिस्थितियों में सड़ने लगते हैं और विघटित होकर विशाल मात्र में मीथेन गैस उत्पन्न करता है जो कि एक ग्रीन हाउस गैस है |
* बाँधों के निर्माण से होने वाले नुकसान :
(i) बाँधों के निर्माण से बहुत से कृषि योग्य भूमि नष्ट हो जाती है |
(ii) मानव आवास नष्ट हो जाते हैं |
(iii) आस-पास के लोगों एवं जीव जंतुओं को विस्थापित होना पड़ता है जिससे उनके पुनर्वास कि समस्या उत्पन्न हो जाती है |
(iv) इससे पारिस्थितिक तंत्र को नुकसान पहुँचता है |
* ऊर्जा के पारंपरिक स्रोतों के लिए प्रोद्योगिकी में सुधार:
ऊर्जा के पारंपरिक स्रोतों के लिए प्रोद्योगिकी में सुधार के क्रम में दो प्रमुख प्रौद्योगिकी प्रचलित है जो निम्न है :
(i) जैव-मात्रा (बायो-मास)
(ii) पवन ऊर्जा
* ऊर्जा के पारंपरिक स्रोत
* ऊर्जा के पारंपरिक स्रोत
1. जीवाश्मी ईंधन:
वे ईंधन जिनका निर्माण सजीव प्राणियों के अवशेषों से करोड़ों वर्षों कि जैविक प्रक्रिया के बाद होता है | जीवाश्मी ईंधन कहते हैं |
जैसे - कोयला, पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस आदि |
* ऊर्जा के स्रोत के रूप में कोयले पर निर्भरता:
(i) कोयले के उपयोग ने औद्योगिक क्रांति को संभव बनाया है |
(ii) ऊर्जा के बढती मांग कि पूर्ति के लिए आज भी हम जीवाश्मी ईंधन -कोयला तथा पेट्रोलियम पर निर्भर है |
(iii) आज भी ऊर्जा के कुल खपत का अधिकांश भाग (लगभग 70 %) कोयले से पूरी कि जाती है |
* ऊर्जा के स्रोत के रूप में जीवाश्मी इंधनों की उपयोगिता (Merits):
(i) घरेलु ईंधन के रूप में - कोयला, केरोसिन एवं प्राकृतिक गैस |
(ii) वाहनों में प्रयोग - पेट्रोल, डीजल एवं CNG आदि |
(iii) तापीय विद्युत संयंत्र में कोयले एवं अन्य जीवाश्मी इंधनों का प्रयोग |
* जीवाश्मी इंधनों को जलने के हानियाँ :
(i) ये जलने पर धुँआ उत्पन्न करते है जिससे वायु प्रदुषण होता है |
(ii) इनकों जलाने से कार्बन, नाइट्रोजन एवं सल्फर के ऑक्साइड छोड़ते है जो अम्लीय वर्षा के मुख्य कारण हैं |
(iii) ये CO2, मीथेन एवं कार्बन मोनोऑक्साइड छोड़ते हैं जो ग्रीन हाउस प्रभाव को बढ़ाते है |
अम्लीय वर्षा : जीवाश्मी इंधनों को जलाने से ये कार्बन, नाइट्रोजन एवं सल्फर के ऑक्साइड छोड़ते हैं जिनसे अम्लीय वर्षा होती है |
* अम्लीय वर्षा की हानियाँ :
(i) ये पेड़ पौधों को नुकसान पहुंचता है जिससे पेड़-पौधे सुख जाते है, उनके पत्तों एवं फलों को भी नुकसान पहुँचता है |
(ii) ये जलीय जीवों को नुकसान पहुँचता है जिससे कई जीव मर जाते हैं |
(iii) ये साथ ही साथ मृदा को भी नुकसान पहुँचता है, जिससे मृदा कि प्रकृति अम्लीय हो जाती है |
* जीवाश्मी इंधनों से उत्पन्न प्रदूषकों के कम करने के उपाय :
(i) दहन प्रक्रम कि दक्षता में वृद्धि करके कम किया जा सकता है |
(ii) दहन के फलस्वरूप निकलने वाली हानिकारक गैसों तथा राखों के वातावरण में पलायन को कम करने वाली विविध तकनीकों द्वारा |
हमें जीवाश्मी इंधनों का संरक्षण करना चाहिए |
* जीवाश्मी इंधनों का संरक्षण करने के कारण :
(i) जीवाश्मी ईंधन ऊर्जा के अनाविनीकरणीय स्रोत है |
(ii) प्रकृति में जीवाश्मी ईंधनों का सीमित भंडार है |
(iii) जीवाश्मी ईंधनों के बनने में करोड़ों वर्ष लग जाते है |
* ऊर्जा संरक्षण का नियम:
* ऊर्जा संरक्षण का नियम:
ऊर्जा संरक्षण के नियम के अनुसार ऊर्जा का नहीं तो सृजन किया जा सकता है और नहीं इसका विनाश किया जा सकता है, इसे सिर्फ एक रूप से दुसरे रुप में रूपांतरित किया जा सकता है |
* मुख्य बिंदु :
•किसी भौतिक अथवा रासायिनक प्रक्रम के समय कुल ऊर्जा संरक्षित रहती है |
•ऊर्जा के विविध रूप हैं तथा ऊर्जा के एक रूप को दुसरे रूप में परिवर्तित किया जा सकता है | उदाहरण के लिए, यदि हम किसी प्लेट को ऊँचाई से गिराए तो प्लेट कि स्थितिज ऊर्जा का अधिकांश भाग फर्श से टकराते समय ध्वनि ऊर्जा में परिवर्तित हो जाता है |
•यदि हम किसी मोमबती को जलाते हैं तो यह प्रक्रम अत्यधिक ऊष्माक्षेपी होती है और इस प्रकार्जलाने पर मोमबती की रासायनिक ऊर्जा, उष्मीय ऊर्जा तथा प्रकाश ऊर्जा में परिवर्तित हो जाता है |
•प्रयोज्य रूप (usable form) में उपलब्ध ऊर्जा चारो ओर के वातावरण में अपेक्षाकृत कम प्रयोज्य रूप में क्षयित हो जाती है | अत: कार्य करने के लिए जिस किसी ऊर्जा के स्रोत का उपयोग करते हैं वह उपभुक्त हो जाता है और पुन: उसका उपयोग नहीं किया जा सकता |
उत्तम ईंधन: वह ईंधन जो प्रति एकांक आयतन अथवा प्रति एकांक द्रव्यमान पर अधिक कार्य करे, सरलता से सुलभ हो एवं जिसका परिवहन आसान हो उत्तम ईंधन कहलाता है |
* एक उत्तम ईंधन के गुण :
(i) कम प्रदूषक हो |
(ii) प्रति एकांक आयतन अथवा प्रति एकांक द्रव्यमान पर अधिक कार्य करने वाला हो |
(iii) जो सरलता से सुलभ हो |
(iv) जिसका भडारण एवं परिवहन आसान हो |
(v) जो सस्ता हो |
* उपलब्धता के आधार पर ऊर्जा के स्रोत के प्रकार:
(1) नवीकरणीय स्रोत : ऊर्जा के वे स्रोत जो असीमित मात्रा में उपलब्ध है एवं जिनका उत्पादन और उपयोग सालों-साल किया जा सके ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोत कहलाते हैं | जैसे - हवा, जल, बायो-मास, सौर ऊर्जा,महासागरीय ऊर्जा आदि |
(2) अनवीकरणीय स्रोत : ऊर्जा के वे स्रोत जो समाप्य हैं, जो सिमित मात्रा में उपलब्ध है एवं जिनका उपयोग लंबे समय तक नहीं किया जा सके ऊर्जा के अनवीकरणीय स्रोत कहलाते है | जैसे - कोयला, पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस आदि |
* नवीकरणीय स्रोत एवं अनवीकरणीय स्रोत में अंतर:
नवीकरणीय स्रोत :- 1. वे स्रोत जो असीमित मात्रा में उपलब्ध हैं |
नवीकरणीय स्रोत :- 2. इनका उत्पादन एवं उपयोग वर्षो-वर्षों तक किया जा सकता है |
नवीकरणीय स्रोत :- 3. ये समाप्य स्रोत नहीं है |
नवीकरणीय स्रोत :- 4. उदाहरण : हवा, जल, बायो-मास, सौर ऊर्जा, महासागरीय तरंग आदि |
अनवीकरणीय स्रोत :-1. वे स्रोत जो सीमित मात्रा में उपलब्ध हैं |
अनवीकरणीय स्रोत :-2. इनका उत्पादन एवं उपयोग वर्षो-वर्षों तक नहीं किया जा सकता है |
अनवीकरणीय स्रोत :-3. ये समाप्य स्रोत है |
अनवीकरणीय स्रोत :-4. उदाहरण: कोयला, पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस आदि |
* उपयोग के आधार पर ऊर्जा के स्रोत:
(I) ऊर्जा के पारंपरिक स्रोत :
(II) ऊर्जा के गैर-पारंपरिक स्रोत या वैकल्पिक स्रोत :
(I) ऊर्जा के पारंपरिक स्रोत :
ऊर्जा के वे स्रोत जो लम्बे समय से उपयोग में लाया जा रहा है | ऊर्जा के पारंपरिक स्रोत कहलाते है |
* ऊर्जा के पारंपरिक स्रोत निम्नलिखित हैं |
1. जीवाश्मी ईंधन
2. तापीय विद्युत संयंत्र
3. जल विद्युत संयंत्र
4. जैव-मात्रा (बायो-मास)
5. पवन ऊर्जा
(II) ऊर्जा के गैर-पारंपरिक स्रोत या वैकल्पिक स्रोत :
ऊर्जा के वे स्रोत जिनका उपयोग हाल के दिनों से वैकल्पिक स्रोत के रूप में किया जा रहा है ऊर्जा के गैर-पारंपरिक स्रोत या वैकल्पिक स्रोत कहलाते हैं |
* ऊर्जा के गैर-पारंपरिक स्रोत या वैकल्पिक स्रोत निम्नलिखित हैं |
1. सौर ऊर्जा
2. समुद्रो से प्राप्त ऊर्जा
(a) ज्वारीय ऊर्जा
(b) तरंग ऊर्जा
(c) महासागरीय तापीय ऊर्जा
3. भूतापीय ऊर्जा
4. नाभकीय ऊर्जा