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Thursday 10 November 2016

* विद्युत धारा का तापीय प्रभाव:

* विद्युत धारा का तापीय प्रभाव:

सेल के भीतर होने वाली रासायनिक अभिक्रिया सेल केदो टर्मिनलों के बीच विभवान्तर उत्पन्न करती है, जो बैटरी से संयोजित किसी प्रतिरोधक अथवा प्रतिरोधकों के किसी निकाय में विद्युत धारा प्रवाहित करने के लिए इलेक्ट्रानों में गति स्थापित करता है |

विद्युत धारा को बनाए रखने में अथवा साधित्रों/उपकरणों को कार्य करवाने में स्रोत कि ऊर्जा का कुछ भाग खर्च हो जाता है जबकि शेष ऊर्जा साधित्रों/उपकरणों के ताप को वृद्धि करने में खर्च हो जाता है | 

विद्युत धारा का तापीय प्रभाव: स्रोत की ऊर्जा का कुछ ही भाग उपयोगी कार्यों में उपयोग होता है | स्रोत का शेष ऊर्जा उस ऊष्मा को उत्पन्न करने में खर्च हो जाता है जो उस साधित्र/उपकरण कि ताप में वृद्धि करता है | इसे विद्युत का तापीय प्रभाव कहते हैं | 

जूल तापन का नियम: किसी प्रतिरोधक में उत्पन्न होने वाली ऊष्मा दिए गए प्रतिरोधक में प्रवाहित होने वाली विद्युत धारा के वर्ग के अनुक्रमानुपाती होती है एवं दी गयी विद्युत धारा के लिए प्रतिरोध और उस समय के अनुक्रमानुपाती होती है जिसके लिए दिए गए प्रतिरोध से विद्युत धारा प्रवाहित होती है | इस नियम को जूल तापन का नियम कहते हैं |

इसे H से सूचित करते हैं |

H = I2Rt

इस नियम से किसी साधित्र या प्रतिरोधक में विद्युत धारा के तापीय प्रभाव द्वारा उत्पन्न ऊष्मा को ज्ञात किया जाता है |

* इस नियम के अनुसार:

किसी प्रतिरोधक में उत्पन्न होने वाली ऊष्मा (H)

(i) प्रतिरोधक में प्रवाहित होने वाली विद्युत धारा (I) के वर्ग के अनुक्रमानुपाती होती है |

(ii) उस प्रतिरोध (R) के अनुक्रमानुपाती होती है |

(iii) समय (t) के अनुक्रमानुपाती होती है |

जूल तापन के नियम को अर्थात (H = I2Rt) को गणितीय स्तर पर समझते हैं :

मान लीजिए कि किसी प्रतिरोधक (R) में (t) समय के लिए यदि विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है एवं इसके दोनों सिरों के बीच विभवान्तर (V) है |

* विद्युत धारा के तापीय प्रभाव के कुछ अनुप्रयोग:

(1) विद्युत हीटर

(2) विद्युत इस्तरी

(3) विद्युत गीजर

(4) विद्युत टोस्टर

(5) विद्युत् बल्ब

नोट: उपरोक्त सभी साधित्र/उपकरण विद्युत धारा के तापीय प्रभाव के प्रयोग से चलायी जाती है |

विद्युत धारा के तापीय प्रभाव से विद्युत परिपथ के अवयवों पर प्रभाव :

(i) अवयवों के ताप में वृद्धि कर सकता है |

(ii) अवयवों के गुणों में परिवर्तन हो सकता है |

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मिश्रधातुओं के गुण :

मिश्रधातुओं के गुण :

(i) एलॉय जिस धातु से बने होते है उन धातुओं की तुलना में उनसे बने मिश्र धातुओं का गलनांक अधिक होता है |

(ii) मिश्रधातु ऊँच तापमान पर भी आसानी से इनका दहन नहीं होता है |

(iii) इनका गलनांक ऊँच होता है |

यही कारण है की मिश्रधातुओं का उपयोग सामान्यत: विद्युत तापक यंत्रों में किया जाता है, जैसे - विद्युत इस्त्री , टोस्टर इत्यादि |  विद्युत बल्बों की तंतु के लिए एकमात्र टंगस्टन का ही उपयोग किया जाता है | टंग्स्टन एक मिश्रधातु है जिसका गलनांक बहुत ही ऊँच होता है | जहाँ तांबा और एल्युमीनियम का सामान्य उपयोग विद्युत प्रवाह चालक के रूप में किया जाता है |

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* विद्युत परिपथ (Electric Circuit) :

* विद्युत परिपथ (Electric Circuit) :

किसी विद्युत धारा के सतत तथा बंद पथ को विद्युत परिपथ कहते हैं |

विद्युत का प्रवाह (The flow of the electricity):

आवेशों की रचना इलेक्ट्रोन करते हैं | विद्युत धारा को धनआवेशों का प्रवाह माना गया तथा धनावेश के प्रवाह की दिशा ही विद्युत धारा की दिशा माना गया | परिपाटी के अनुसार किसी

विद्युत परिपथ में इलेक्ट्रॉनों जो ऋणआवेश हैं, के प्रवाह की दिशा के विपरीत दिशा को विद्युत धारा की दिशा माना जाता है।

यदि किसी चालक की किसी भी अनुप्रस्थ काट से समय t में नेट आवेश Q प्रवाहित होता है तब उस अनुप्रस्थ काट से प्रवाहित विद्युत धारा I को इस प्रकार व्यक्त करते हैंः

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* इलेक्ट्रोनों का बहाव (Flowing/moving of electrons) :

* इलेक्ट्रोनों का बहाव (Flowing/moving of electrons) :

इलेक्ट्रोंस बैटरी के ऋणात्मक टर्मिनल पर ऋण आवेश के द्वारा प्रतिकर्षित होते हैं तथा धन टर्मिनल पर धन आवेश पर आकर्षित होते हैं | इसलिए इलेक्ट्रोंस ऋण टर्मिनल से धन टर्मिनल की ओर प्रवाहित होते हैं | जब ये इलेक्ट्रॉन्स धन टर्मिनल तक पहुँचते हैं तो एक रासायनिक प्रतिक्रिया से वे बैट्री के अंदर स्थान्तरित हो जाते हैं और और पुन: ऋण टर्मिनल पर आ जाते हैं | इस प्रकार इलेक्ट्रॉन्स प्रवाहित होते हैं |

(एक परिपथ तथा बैट्री से इलेक्ट्रान का बहाव ) 

* चालक (Conductor) :

वे पदार्थ जो अपने से होकर विद्युत आवेश को आसानी से प्रवाहित होने देते हैं चालक कहलाते हैं | उदाहरण : तांबा, सिल्वर, एल्युमीनियम इत्यादि |

•अच्छे चालक धारा के प्रवाह का कम प्रतिरोध करते हैं |

•कुचालकों का धारा के प्रवाह की प्रतिरोधकता बहुत अधिक होती है |

कुचालक (Insulator) : वे पदार्थ जो अपने से होकर विद्युत धारा को प्रवाहित नहीं होने देते हैं वे पदार्थ विद्युत के कुचालक कहलाते हैं | उदाहरण : रबड़, प्लास्टिक, एबोनाईट और काँच इत्यादि | 

चालकता (Cunductivity) : चालकता किसी चालक का वह गुण है जिससे यह अपने अंदर विद्युत आवेश को प्रवाहित होने देते हैं |

अतिचालकता (Supercunductivity) : अतिचालकता किसी चालक में होने वाली वह परिघटना है जिसमें वह बहुत कम ताप पर बिल्कुल शून्य विद्युत प्रतिरोध करता है | 

कूलाम्ब का नियम (Coulomb's law) : किसी चालक के दो बिन्दुओं के बीच आवेशों पर लगने वाले आकर्षण या प्रतिकर्षण बल, आवेशों के  गुणनफल (q1q2) के अनुक्रमानुपाती होते हैं और उनके बीच की दुरी (r) के वर्ग का व्युत्क्रमानुपाती होते हैं |

* गणितीय विधि से ,

F ∝ q1q2 ...... (i)

F ∝ 1/ r2 ...(ii)

k एक स्थिरांक है परन्तु k का मान दो आवेशों के बीच उपस्थित माध्यम की प्रकृति पर निर्भर करता है |

k का निर्वात में आवेश  9 × 109 Nm2/C2 होता है |

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* विद्युत धारा एवं आवेश :

* विद्युत धारा एवं आवेश :

जब किसी चालक से विद्युत आवेश बहता है तो हम कहते है कि चालक में विद्युत धारा है |

दुसरे शब्दों में, विद्युत आवेश के बहाव को विद्युत धारा कहते है | 

विद्युत धारा को इकाई समय में किसी विशेष क्षेत्र से विद्युत आवेशों  की मात्रा के बहाव से व्यक्त किया जाता है |

•विद्युत धारा किसी चालक/तार से होकर बहता है |

•विद्युत धारा एक सदिश राशि है |

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* विद्युत स्थैतिकता का आधारभूत नियम

* विद्युत स्थैतिकता का आधारभूत नियम :

•समान आवेश एक दुसरे को प्रतिकर्षित करती हैं | 

•असमान आवेश एकदूसरे को आकर्षित करती हैं |

स्थैतिक विद्युत (Statics electricity): जब विद्युत आवेश विराम कि स्थिति में रहती हैं तो इसे स्थैतिक विद्युत कहते हैं | 

धारा विद्युत (Current electricity): जब विद्युत आवेश गति में होता है तो इसे धारा विद्युत कहते हैं |

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* विद्युत आवेश

* विद्युत आवेश

घर्षणीक विद्युत (Frictional electricity): रगड़ या घर्षण से उत्पन्न विद्युत को घर्षणीक विद्युत कहते हैं |

विद्युत आवेश (Electric charge): विद्युत आवेश दो प्रकार के होते हैं |

1. धन आवेश (Positive charge): कांच कि छड को जब रेशम के धागे से रगडा जाता है तो इससे प्राप्त आवेश को धन आवेश कहते हैं |

2. ऋण आवेश (Negative charge): एबोनाईट कि छड को ऊन के धागे से रगडा जाता है तो इस प्रकार प्राप्त आवेश को ऋण आवेश कहा जाता है | 

• इलेक्ट्रानों कि कमी के कारण धन आवेश उत्पन्न होता है |

• इलेक्ट्रानों कि अधिकता से ऋण आवेश उत्पन्न होता है |

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