* जीवों में विभिन्नता कैसे आती है ?
जनन के दौरान जनन कोशिकाओं में डी. एन. ए. की दो प्रतिकृति (copy) बनती है इसके साथ-साथ दूसरी कोशिकीय संरचनाओं का सृजन भी होता है, और प्रतिकृतिया जब अलग होती हैं तो एक कोशिका विभाजित होकर दो कोशिकाएँ बनाती है | चूँकि कोशिका के केन्द्रक के डी. एन. ए. में प्रोटीन संश्लेषण के लिए सूचनाएँ भिन्न होती हैं इसलिए बनने वाले प्रोटीन में भी भिन्नता आ जाती है | ये सभी जैव-रासायनिक प्रक्रिया होती है जिसमें डी. एन. ए. की प्रतिकृति बनने के दौरान ही भिन्नता आ जाती है यही जीवों में विभिन्नता का कारण है |
* जीवों में विभिन्नता का महत्त्व:
(i) विभिन्नताओं के कारण ही जीवों कि समष्टि परितंत्र में स्थान अथवा निकेत ग्रहण करती हैं |
(ii) विभिन्नताएँ समष्टि में स्पीशीज की उत्तरजीविता बनाए रखने में उपयोगी है |
(iii) जीवों में पायी जाने वाली विभिन्नताएँ ही जैव-विकास का आधार है | चूँकि जबतक संतति में विभिन्नताएँ न हो जैव-विकास नहीं कहा जा सकता है |
(iv) विभिन्नताएँ परिवर्तनशील परिस्थितियों में जीवित रहने की क्षमता प्रदान करती है ।
* विभिन्नताएँ जीवों की स्पीशीज के उत्तरजीविता के लिए उत्तरदायी है :
जीवों में विभिन्नता ही उन्हें प्रतिकूल परिस्थितियों में बने रहने में सहायक हैं। शीतोष्ण जल में पाए जाने वाले जीव़ पारिस्थितिक तंत्र के अनुकुल जीवित रहते है। यदि वैश्विक उष्मीकरण के कारण जल का ताप बढ जाता हैं तो अधिकतर जीवाणु मर जाएगें, परन्तु उष्ण प्रतिरोधी क्षमता वाले कुछ जीवाणु ही खुद को बचा पाएगें और वृद्धि कर पाएगें ।
अतः जीवों में विभिन्नता स्पीशीज की उतरजीविता बनाए रखने में उपयोगी हैं ।
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