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Tuesday 8 November 2016

* मानव नेत्र और उसके भाग

* मानव नेत्र और उसके भाग

मानव नेत्र (Human Eyes): मानव नेत्र एक अत्यंत मूल्यवान एवं सुग्राही ज्ञानेंद्रिय हैं। यह कैमरे की भांति कार्य करता हैं । हम इस अद्भूत संसार के रंग बिरंगे चीजो को इसी द्वारा देख पाते हैं। इसमें एक क्रिस्टलीय लेंस होता है। प्रकाश सुग्राही परदा जिसे रेटिना या दृष्टिपटल कहते हैं इस पर प्रतिबिम्ब बनता हैं । प्रकाश एक पतली झिल्ली से होकर नेत्र में प्रवेश करता हैं। इस झिल्ली को कॉर्निया कहते हैं । कॉर्निया के पीछे एक संरचना होती है। जिसे परितारिका कहते हैं। यह पुतली के साइज को नियंत्रित करती है। जबकि पुतली नेत्र में प्रवेश करने वाले प्रकाश को नियंत्रित करता हैं। लेंस दूर या नजदीक के सभी प्रकार के वस्तुओं का समायोजन कर वास्तविक तथा उल्टा प्रतिबिम्ब बनाता है।

* नेत्र के विभिन्न भाग परिचय और कार्य:

(1) कॉर्निया या स्वच्छ मंडल (Cornia) : नेत्र की काला दिखाई देने वाला गोलाकार भाग को कॉर्निया कहते हैं | यह नेत्र के डायफ्राम के ऊपर स्थित एक पतली झिल्ली होती है |

कार्य : इसी से होकर नेत्र में प्रकाश प्रवेश करता है | यह नेत्र का सबसे नाजुक भाग होता है |

(2) कंजक्टिवा (conjactiva): अग्र नेत्र का सफ़ेद भाग को sclera कहते है और इसके covering को जो कॉर्निया के चरों ओर फैला रहता है, कंजक्टिवा कहते है | इसे आँख का रक्षात्मक कवच भी कहा जा सकता है |

* कार्य:

(i) यह नेत्र को बाहरी तत्वों से रक्षा करता है |

(ii) नेत्र को चिकनाहट प्रदान करता है |

(iii) यह आँख को बाहरी अघात से भी बचाता है |

(3) परितारिका (Iris) : यह कॉर्निया के पीछे स्थित होता है, यह एक गहरा वलयाकार पेशीय डायफ्राम है |
            
* परितारिका (Iris)

कार्य : यह पुतली के आकार (size) को नियंत्रित करता है |

(4) पुतली (Pupil) : यह परतारिका के वलय से बना एक रिक्त स्थान (छिद्र) है जो परितारिका के केंद्र में होता है और अभिनेत्र लेंस में जा कर खुलता है |
       
कार्य : यह नेत्र में प्रवेश करने वाले प्रकाश कि मात्रा को नियंत्रित करता है |

जब परितारिका सिकुड़ता है तो पुतली की साइज़ कम हो जाता है और नेत्र में प्रवेश करने वाले प्रकाश कि मात्रा भी कम हो जाता है | और जब परतारिका फैलता है तो पुतली का साइज़ भी बढ़ जाता है और नेत्र में प्रवेश करने वाले प्रकाश कि मात्रा भी बढ़ जाता है |

(5) अभिनेत्र लेंस (Eye lens) या क्रिस्टलीय लेंस (Cristalic lens): अभिनेत्र लेंस एक लचीला और मुलायम पदार्थ से बना एक अपारदर्शी उत्तल लेंस है जो विभिन्न दूरियों कि वस्तुओं को फोकसित करने के लिए अपना आकार बदलता रहता है |

कार्य: यह वस्तुओ का वास्तविक और उल्टा प्रतिबिम्ब बनाता है |

(6) पक्ष्माभी पेशियाँ (Cilliary Muscles) : ये पेशियाँ अभिनेत्र लेंस को जकडे रखती है और यह लेंस के आकार (size) को नियंत्रित करती हैं | यदि किसी कारण से इन पेशियों में दुर्बलता आ जाती है तो अभिनेत्र लेंस अपना आकार बदल नहीं पता है और उसकी समंजन क्षमता घट जाती है |
            
पार्श्व दृश्य (lateral view)

पक्ष्माभी पेशियों का कार्य : यह लेंस के आकार (size) को नियंत्रित करती हैं |

(7) काचाभ द्रव (Vitreous Humor) : यह एक जेली जैसी पदार्थ का बना होता है जो अभिनेत्र लेंस और रेटिना से लेकर पुरे नेत्र गोलक में भरा रहता है | नेत्र गोलक का अधिकांश भाग काचाभ द्रव घेरता (occupies) है |

कार्य:

(i) यह नेत्र गोलक को आकार प्रदान करता है |

(ii) रेटिना तक पहुँचने वाला प्रकाश लेंस से होकर इसी द्रव से गुजरता है |

(8) रेटिना (Retina) : इसे दृष्टि पटल भी कहते है और यह नेत्र गोलक का पश्च भाग जो परदे का कार्य करता है रेटिना कहलाता है | यह नेत्र का प्रकाश सुग्राही भाग (Light sensative part) होता है |

रेटिना पर बनने वाले प्रतिबिम्ब कि प्रकृति वास्तविक एवं उल्टा होता है |

कार्य:

(i) यह नेत्र लेंस द्वारा बनने वाले प्रतिबिम्ब के लिए परदे का कार्य करता है |

(ii) इसकी कोशिकाएं प्रकाश सुग्राही होती हैं जो इस पर बनने वाले प्रतिबिम्ब का अध्ययन भी करता है |

(9) दृक तंत्रिका (Optic Nerve) : यह तंत्रिका नेत्र गोलक के पश्च भाग से निकल कर मस्तिष्क के एक हिस्से से जुड़ता है |

कार्य: यह रेटिना पर बनने वाले प्रतिबिम्ब को संवेदनाओं द्वारा मस्तिष्क तक पहुँचाता है |

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