* महासागरीय तापीय ऊर्जा का दोहन :
इसके दोहन के लिए OTEC विद्युत संयंत्र का उपयोग किया जाता है | यह संयन्त्र महासागर के पृष्ठ पर जल का ताप तथा 2 km तक की गहराई पर जल के ताप में जब 20oC का अंतर हो तो ही OTEC संयंत्र कार्य करता है | पृष्ठ के तप्त जल का उपयोग अमोनिया जैसे वाष्पशील द्रवों को उबालने में किया जाता है। इस प्रकार बनी द्रवों की वाष्प फिर जनित्र (Generator) के टरबाइन को घुमाती है। महासागर की गहराइयों से ठंडे जल को पंपों से खींचकर वाष्प को ठंडा करके फिर से द्रव में संघनित किया जाता है। टरबाइन घूमने से विद्युत उत्पन्न होता है |
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OTEC विद्युत संयंत्र की सीमाएँ :
(i) महासागर के पृष्ठ पर जल का ताप तथा 2 km तक की गहराई पर जल के ताप में जब 20oC का अंतर हो तो ही OTEC संयंत्र कार्य करता है |
(ii) इसके दक्षतापूर्ण व्यापारिक दोहन में कठिनाइयाँ है |
B. भूतापीय ऊर्जा (Geothermal Energy) :
जब भूमिगत जल तप्त स्थलों के संपर्क में आता है तो भाप उत्पन्न होती है | जब यह भाप चट्टानों के बीच फंस जाती हैं तो इसका दाब बढ़ जाता है | उच्च दाब पर यह भाप पाइपों द्वारा निकाल ली जाती है, यह भाप विद्युत जनरेटर की टरबाइन को घुमती है तथा विद्युत उत्पन्न की जाती है |
तप्त स्थल : भौमिकीय परिवर्तनों के कारण भूपर्पटी में गहराइयों पर तप्त क्षेत्रों में पिघली चट्टानें ऊपर धकेल दी जाती हैं जो कुछ क्षेत्रों में एकत्र हो जाती हैं। इन क्षेत्रों को तप्त स्थल कहते
हैं।
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गरम चश्मा अथवा ऊष्ण स्रोत : तप्त जल को पृथ्वी के पृष्ठ से बाहर निकलने के लिए जो निकास मार्ग होता है। इन निकास मार्गों को गरम चश्मा अथवा ऊष्ण स्रोत कहते हैं।
लाभ :
(i) इसके द्वारा विद्युत उत्पादन की लागत अधिक नहीं है |
(ii) व्यापारिक दृष्टिकोण से इस ऊर्जा का दोहन करना व्यावहारिक है।
सीमाएँ : पृथ्वी पर भूतापीय ऊर्जा के क्षेत्र बहुत कम हैं |
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