-->

Recent Posts

Thursday, 10 November 2016

* ऊर्जा के पारंपरिक स्रोत

* ऊर्जा के पारंपरिक स्रोत

1. जीवाश्मी ईंधन:

वे ईंधन जिनका निर्माण सजीव प्राणियों के अवशेषों से करोड़ों वर्षों कि जैविक प्रक्रिया के बाद होता है | जीवाश्मी ईंधन कहते हैं |

जैसे - कोयला, पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस आदि |

* ऊर्जा के स्रोत के रूप में कोयले पर निर्भरता:

(i) कोयले के उपयोग ने औद्योगिक क्रांति को संभव बनाया है |

(ii) ऊर्जा के बढती मांग कि पूर्ति के लिए आज भी हम जीवाश्मी ईंधन -कोयला तथा पेट्रोलियम पर निर्भर है |

(iii) आज भी ऊर्जा के कुल खपत का अधिकांश भाग (लगभग 70 %) कोयले से पूरी कि जाती है |

* ऊर्जा के स्रोत के रूप में जीवाश्मी इंधनों की उपयोगिता (Merits):

(i) घरेलु ईंधन के रूप में - कोयला, केरोसिन एवं प्राकृतिक गैस |

(ii) वाहनों में प्रयोग - पेट्रोल, डीजल एवं CNG आदि |

(iii) तापीय विद्युत संयंत्र में कोयले एवं अन्य जीवाश्मी इंधनों का प्रयोग |

* जीवाश्मी इंधनों को जलने के हानियाँ :

(i) ये जलने पर धुँआ उत्पन्न करते है जिससे वायु प्रदुषण होता है |

(ii) इनकों जलाने से कार्बन, नाइट्रोजन एवं सल्फर के ऑक्साइड छोड़ते है जो अम्लीय वर्षा के मुख्य कारण हैं |

(iii) ये CO2, मीथेन एवं कार्बन मोनोऑक्साइड छोड़ते हैं जो ग्रीन हाउस प्रभाव को बढ़ाते है |

अम्लीय वर्षा : जीवाश्मी इंधनों को जलाने से ये कार्बन, नाइट्रोजन एवं सल्फर के ऑक्साइड छोड़ते हैं जिनसे अम्लीय वर्षा होती है |

* अम्लीय वर्षा की हानियाँ :

(i) ये पेड़ पौधों को नुकसान पहुंचता है जिससे पेड़-पौधे सुख जाते है, उनके पत्तों एवं फलों को भी नुकसान पहुँचता है | 

(ii) ये जलीय जीवों को नुकसान पहुँचता है जिससे कई जीव मर जाते हैं |

(iii) ये साथ ही साथ मृदा को भी नुकसान पहुँचता है, जिससे मृदा कि प्रकृति अम्लीय हो जाती है |

* जीवाश्मी इंधनों से उत्पन्न प्रदूषकों के कम करने के उपाय :

(i) दहन प्रक्रम कि दक्षता में वृद्धि करके कम किया जा सकता है |

(ii) दहन के फलस्वरूप निकलने वाली हानिकारक गैसों तथा राखों के वातावरण में पलायन को कम करने वाली विविध तकनीकों द्वारा |

हमें जीवाश्मी इंधनों का संरक्षण करना चाहिए |

* जीवाश्मी इंधनों का संरक्षण करने के कारण :

(i) जीवाश्मी ईंधन ऊर्जा के अनाविनीकरणीय स्रोत है |

(ii) प्रकृति में जीवाश्मी ईंधनों का सीमित भंडार है |

(iii) जीवाश्मी ईंधनों के बनने में करोड़ों वर्ष लग जाते है |

No comments:

Post a Comment

Apne email id se login kare aur apna question puchhe

WorldGujjars © 2014. All Rights Reserved | Powered By Blogger | Blogger Templates

Designed by- Dapinder