* ऊर्जा के पारंपरिक स्रोत
1. जीवाश्मी ईंधन:
वे ईंधन जिनका निर्माण सजीव प्राणियों के अवशेषों से करोड़ों वर्षों कि जैविक प्रक्रिया के बाद होता है | जीवाश्मी ईंधन कहते हैं |
जैसे - कोयला, पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस आदि |
* ऊर्जा के स्रोत के रूप में कोयले पर निर्भरता:
(i) कोयले के उपयोग ने औद्योगिक क्रांति को संभव बनाया है |
(ii) ऊर्जा के बढती मांग कि पूर्ति के लिए आज भी हम जीवाश्मी ईंधन -कोयला तथा पेट्रोलियम पर निर्भर है |
(iii) आज भी ऊर्जा के कुल खपत का अधिकांश भाग (लगभग 70 %) कोयले से पूरी कि जाती है |
* ऊर्जा के स्रोत के रूप में जीवाश्मी इंधनों की उपयोगिता (Merits):
(i) घरेलु ईंधन के रूप में - कोयला, केरोसिन एवं प्राकृतिक गैस |
(ii) वाहनों में प्रयोग - पेट्रोल, डीजल एवं CNG आदि |
(iii) तापीय विद्युत संयंत्र में कोयले एवं अन्य जीवाश्मी इंधनों का प्रयोग |
* जीवाश्मी इंधनों को जलने के हानियाँ :
(i) ये जलने पर धुँआ उत्पन्न करते है जिससे वायु प्रदुषण होता है |
(ii) इनकों जलाने से कार्बन, नाइट्रोजन एवं सल्फर के ऑक्साइड छोड़ते है जो अम्लीय वर्षा के मुख्य कारण हैं |
(iii) ये CO2, मीथेन एवं कार्बन मोनोऑक्साइड छोड़ते हैं जो ग्रीन हाउस प्रभाव को बढ़ाते है |
अम्लीय वर्षा : जीवाश्मी इंधनों को जलाने से ये कार्बन, नाइट्रोजन एवं सल्फर के ऑक्साइड छोड़ते हैं जिनसे अम्लीय वर्षा होती है |
* अम्लीय वर्षा की हानियाँ :
(i) ये पेड़ पौधों को नुकसान पहुंचता है जिससे पेड़-पौधे सुख जाते है, उनके पत्तों एवं फलों को भी नुकसान पहुँचता है |
(ii) ये जलीय जीवों को नुकसान पहुँचता है जिससे कई जीव मर जाते हैं |
(iii) ये साथ ही साथ मृदा को भी नुकसान पहुँचता है, जिससे मृदा कि प्रकृति अम्लीय हो जाती है |
* जीवाश्मी इंधनों से उत्पन्न प्रदूषकों के कम करने के उपाय :
(i) दहन प्रक्रम कि दक्षता में वृद्धि करके कम किया जा सकता है |
(ii) दहन के फलस्वरूप निकलने वाली हानिकारक गैसों तथा राखों के वातावरण में पलायन को कम करने वाली विविध तकनीकों द्वारा |
हमें जीवाश्मी इंधनों का संरक्षण करना चाहिए |
* जीवाश्मी इंधनों का संरक्षण करने के कारण :
(i) जीवाश्मी ईंधन ऊर्जा के अनाविनीकरणीय स्रोत है |
(ii) प्रकृति में जीवाश्मी ईंधनों का सीमित भंडार है |
(iii) जीवाश्मी ईंधनों के बनने में करोड़ों वर्ष लग जाते है |
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