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Thursday 3 November 2016

* विकास एवं वर्गीकरण

* विकास एवं वर्गीकरण
अभिलक्षण (Characteristics) : बाह्य आकृति अथवा व्यवहार का विवरण अभिलक्षण कहलाता है।
दूसरे शब्दों में, विशेष स्वरूप अथवा विशेष प्रकार्य अभिलक्षण कहलाता है। हमारे चार पाद होते हैं, यह एक अभिलक्षण है। पौधें में प्रकाशसंश्लेषण होता है, यह भी एक अभिलक्षण है।
• सभी  जीवों में कोशिका जो आधारभूत इकाई है यह भी एक अभिलक्षण है |
• सभी जीवों का वर्गीकरण उनके अभिलक्षणों के आधार किया है जिसमें पहला वर्गीकरण उनके कोशिकीय अभिलक्षण है जैसे केंद्रक झिल्ली वाले जीव (यूकैरियोटिक) और बिना केन्द्रक झिल्ली वाले जीव (प्रोकैरियोटिक)| 
• दो स्पीशीश के मध्य जितने अध्कि अभिलक्षण समान होंगे उनका संबंध् भी उतना ही निकट का होगा। जितनी अधिक समानताएँ उनमें होंगी उनका उद्भव भी निकट अतीत में समान पूर्वजों से हुआ होगा।
• जिन जीवों में अभिलक्षण समान होगा तो वे जीव समान जनक से वंशानुगत हुए है |
* विकास (Evolution) : जीवों में होने वाले अनुक्रमिक परिवर्तनों के परिणाम को विकास कहते हैं जो लाखों वर्षों से भी ऊपर आदिम जीवों में घटित होते हैं जिनसे नई जातियाँ उत्पन्न होती हैं |
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चूँकि विकास जीवित जीवों का होता है इसलिए इसे जैव विकास भी कहते है |
(i) समजात अंग (Homologous Organs): विभिन्न जीवों में वे अंग जो आकृति तथा उत्पति में समानता रखते हैं समजात अंग कहलाते हैं ।
उदाहरण - मेंढक के अग्रपाद , पक्षी के अंग , चमगादड. के पंख  घोड़ा के अग्रपाद आदि उत्पत्ति में समान होते हेैं परंतु वे कार्य में परस्पर भिन्नता रखते हैं ।
(ii) समरूप अंग (Analogous Oragans): विभिन्न जीवों के वे अंग जो कार्य में समान होते हैं परंतु उत्पत्ति में भिन्न होते हैं समरूप अंग कहलाते हैं ।
उदाहरण:- तितली . के पंख, पक्षी के पंख आदि कार्याें में समान होते हैं परंतु उत्पत्ति में वे भिन्न हैं ।
(iii) जीवाश्म (Fossil) : मृत जीवों के परिरक्षित अवशेष को जीवाश्म कहते हैं |
उदाहरण कोई मृत कीट गर्म मिट्टी में सुख कर कठोर हो जाये |
जीवाश्म प्राचीन समय में मृत जीवों के संपूर्ण, अपूर्ण, अंग आदि के अवशेष तथा उन अंगो के ठोस, मिट्टी, शैल तथा चट्टानों पर बने चिन्ह होते हैं जिन्हें पृथ्वी को खोदने से प्राप्त किया गया हो । ये चिन्ह इस बात का प्रतीक हैं कि ये जीव करोंडों वर्ष पूर्व जीवित थे लेकिन वर्तमान काल में लुप्त हो चुके हैं ।
* अब तक प्राप्त कुछ जीवाश्म के उदाहरण :
अमोनाइट - अकशेरुकी जीवाश्म
ट्राइलोबाइट - अकशेरुकी जीवाश्म
नाइटिया - मछली का जीवाश्म
राजासौरस - जीवाश्म - डायनासोर 
* जीवाश्मों के अध्ययन से निम्न बातों का पता चलता है |
1. जीवाश्म उन जीवों के पृथ्वी पर अस्तित्व की पुष्टि करते हैं ।
2. इन जीवाश्मो की तुलना वर्तमान काल में उपस्थित समतुल्य जीवों से कर सकते हैं । इनकी तुलना से अनुमान लगाया जा सकता हैं कि वर्तमान में उन जीवाश्मों के जीवित स्थिति के काल के संबंध में क्या विशेष परिवर्तन हुए हैं जो जीवधारियों कीे जीवित रहने के प्रतिकूल हो गए हैं ।
* विकासीय संबंध की पहचान/प्रमाण :
(i) समजात अंग विकास के पक्ष में प्रमाण उलब्ध कराते हैं | यह अंग यह बताता है कि इनके पूर्वज एक ही थे, अर्थात ये समान पैतृक पूर्वज से उत्पन्न हुए है |
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चूँकि इनका बनावट एक है परन्तु इनका कार्य भिन्न है लेकिन इनके अंगो में परिवर्तन विकास को दर्शाता है |  
(ii) समरूप अंग विकास के पक्ष में प्रमाण उलब्ध कराते हैं | यह अंग यह सूचित करता है कि भिन्न संरचनाओं के अंगों वाले जीव भी प्रतिकूल परिस्थितयों में अपने को बनाए रखने के लिए और एक समान कार्य करने के लिए अपने को अनुकूलित कर लेते है | इससे यह कहा जा सकता है कि विकास हुआ है |
(iii) जीवाश्म भी विकास के संबंध में प्रमाण उपलब्ध कराते हैं | उदाहरण : आर्कियोप्टेरिक्स के जीवाश्म के अध्ययन से पता चलता है कि यह दिखता तो पक्षी की तरह है परन्तु कई ऐसे दुसरे लक्षण सरीसृप (reptile) के जैसे है | इसके यह पता चलता है की पक्षियों का विकास सरीसृपों से हुआ है |

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