* जाति उदभव का कारण:
(i) अनुवांशिक विचलन (Genetic Drift) : किसी एक समष्टि की उत्तरोतर पीढ़ियों में सापेक्ष जींस की बारंबारता में अचानक परिवर्तन का उत्पन्न होना अनुवांशिक विचलन कहलाता है |
(ii) भौगोलिक पृथक्करण (Geographical Isolation) : किसी जनसंख्या के बीच जींस प्रवाह को भौगोलिक आकृतियाँ जैसे पर्वत, नदियाँ समुद्र इत्यादि रोकती है | जिससें एक ही समष्टि के जीव पृथक हो जाते है | इसके कारण इनका प्राकृतिक वरण भी विलग हो जाता है | इसे ही भौगोलिक पृथक्करण कहते है |
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लैंगिक जनन करने वाले जीवों में जाति-उदभव का प्रमुख कारक है क्योंकि याग युग्मकों द्वारा पृथक जनसँख्या के बीच जीनों के बहाव को कम करता है या बाधा डालता है | परन्तु स्व-परागण वाले पादप जातियों के बीच जाति-उदभव का कारक नहीं है, क्योंकि इसमें प्रजनन प्रक्रिया को पूरा करने के लिए दुसरे पादप पर निर्भर नहीं रहना पड़ता है |
(iii) प्राकृतिक वरण (Natural Selection) : चयन की वह प्रक्रिया जिसमे जीव अपने पर्यावरण के प्रति बेहतर अनुकूलित होते है और अपने उत्तरजीविता कोबनाए रखते हुए अधिक संताने उत्पन्न करते है | प्राकृतिक वरण के द्वारा व्यष्टियों में विभिन्नताएँ उत्पन्न होती है | यदि विभिन्नताएँ जीवों के अपनी मूल व्यष्टि से कहीं अधिक हो गयी तो जीव जींस में भी काफी परिवर्तन (जेनेटिक ड्रिफ्ट) आएगा तथा जीव भिन्न होगा और एक नयी जाति-का उदभव होता है | यह भी हो सकता है कि नया जीव अपने पूर्व के जीवों के साथ अंतर्जनन में असमर्थ हो |
यदि डी.एन.ए. में यह परिवर्तन पर्याप्त है जैसे गुणसूत्रों की संख्या में परिवर्तन, तो दो समष्टियों के सदस्यों की जनन कोशिकाएँ (युग्मकों) संलयन करने में असमर्थ हो सकती हैं।
* अनुवांशिक विचलन का कारण :
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(i) डीएनए में परिवर्तन
(ii) गुणसूत्रों में परिवर्तन
स्थानीय समष्टि में विभिन्नता का कारण : जब कोई उपसमष्टि भौगोलिक पृथक्करण के कारण अप्रवास करता है तो वह अन्य स्थान को अपना आवास बनाता है और वहाँ के किसी उपसमष्टि के साथ जनन करता है जिससे जीन का प्रवाह होता है और इससे उत्पन्न नए जीव में विभिन्नता आती है |
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