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Wednesday 2 November 2016

* स्रावित होने वाले हाॅर्मोन का समय और मात्रा का नियंत्राण:

* स्रावित होने वाले हाॅर्मोन का समय और मात्रा का नियंत्राण:
स्रावित होने वाले हाॅर्मोन का समय और मात्रा का नियंत्राण पुनर्भरण क्रियाविधि से किया जाताहै। उदाहरण के लिए, यदि रुधिर में शर्करा स्तर बढ़ जाता है
तो इसे अग्न्याशय की कोशिका संसूचित ;कमजमबजद्ध कर लेती है तथा इसकी अनुक्रिया में अधिक इंसुलिन स्रावित करती है। जब रुधिर में  स्तर कम हो जाता है तो इंसुलिन का स्रावण कम हो जाता है।
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* ऐच्छिक क्रियाएँ:

* ऐच्छिक क्रियाएँ:
वे सभी क्रियाएँ जिस पर हमारा नियंत्रण होता है, ऐच्छिक क्रियाएँ कहलाती हैं |
जैसे- बोलना, चलना, लिखना आदि |
ऐच्छिक क्रियाओं का नियंत्रण: ऐच्छिक क्रियाएँ हमारी इच्छा और सोंचने से होती है इसलिए इसका नियंत्रण हमारे सोचने वाला भाग अग्र-मस्तिष्क के द्वारा होता है |
अनैच्छिक क्रियाएँ : वे सभी क्रियाएँ जो स्वत: होती रहती है जिनपर हमारा कोई नियंत्रण नहीं होता है | अनैच्छिक क्रियाएँ कहलाती है |
जैसे: ह्रदय का धड़कना, साँस का लेना, भोजन का पचना आदि |
अनैच्छिक क्रियाओं का नियंत्रण: अनैच्छिक क्रियाएँ मध्य-मस्तिष्क व पश्च-मस्तिष्क के द्वारा नियंत्रित होती हैं |
* प्रतिवर्ती चाप:
जंतुओं में प्रतिवर्ती चाप की उपयोगिता :
अधिकतर जंतुओं में प्रतिवर्ती चाप इसलिए विकसित हुआ है क्योंकि इनके मस्तिष्क के सोचने का प्रक्रम बहुत तेज नहीं है। वास्तव में अधिकांश जंतुओं में सोचने के लिए आवश्यक जटिल न्यूराॅन जाल या तो अल्प है या अनुपस्थित होता है। अतः यह स्पष्ट है कि वास्तविक विचार प्रक्रम की अनुपस्थिति में प्रतिवर्ती चाप का दक्ष कार्य प्रणाली के रूप में विकास हुआ है। यद्यपि जटिल न्यूराॅन जाल के अस्तित्व में आने के बाद भी प्रतिवर्ती चाप तुरंत अनुक्रिया के लिए एक अधिक दक्ष प्रणाली के रूप में कार्य करता है।
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* प्रतिवर्ती क्रिया :

* प्रतिवर्ती क्रिया :
किसी उद्दीपन के प्रति, मस्तिष्क के हस्तक्षेप के बिना, अचानक अनुक्रिया, प्रतिवर्ती क्रिया कहलाती है |
ये क्रियाएँ स्वत: होने वाली क्रियाएँ है जो जीव की इच्छा के बिना ही होती है |
उदाहरण:
(i) किसी गर्म वस्तु को छूने से जलने पर तुरंत हाथ हटा लेना |
(ii) खाना देखकर मुँह में पानी का आ जाना
(iii) सुई चुभाने पर हाथ का हट जाना आदि |
प्रतिवर्ती क्रियाओं का नियंत्रण: सभी प्रतिवर्ती क्रियाएँ मेरुरज्जू के द्वारा नियंत्रित होती है |
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* तंत्रिकाओं द्वारा सूचनाओं का संचरण :

* तंत्रिकाओं द्वारा सूचनाओं का संचरण :
( function() { if (window.CHITIKA === undefined) { window.CHITIKA = { 'units' : [] }; }; var unit = {"calltype":"async[2]","publisher":"nikhil944","width":300,"height":250,"sid":"Chitika Default"}; var placement_id = window.CHITIKA.units.length; window.CHITIKA.units.push(unit); document.write('
'); }()); > सभी सूचनाएँ जो हमारे मस्तिष्क तक जो पहुँचाती हैं ये सूचनाएँ एक तंत्रिका कोशिका के द्रुमाकृतिक सिरे द्वारा उपार्जित (aquaired) की जाती है, और एक रासायनिक क्रिया द्वारा एक विद्युत आवेग पैदा करती हैं |
यह आवेग द्रुमिका से कोशिकाकाय तक जाता है फिर तब तंत्रिकाक्ष (एक्सॉन ) में होता हुआ इसके अंतिम सिरे तक पहुँच जाता है |
एक्सॉन के  अंत में विद्युत आवेग का परिवर्तन रासायनिक संकेत में किया जाता है ताकि यह आगे संचारित हो  सके |
ये रासायनिक संकेत रिक्त स्थान या सिनेप्स (सिनेप्टिक दरार ) को पार करते है और अगली तंत्रिका की द्रुमिका में इसी तरह का विद्युत आवेग प्रारंभ करते हैं | इस प्रकार सूचनाएं एक जगह से दूसरी जगह संचारित हो जाती हैं |
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* जंतुओं में नियंत्रण एवं समन्वय (Controll and Coordination in Animals):

* जंतुओं में नियंत्रण एवं समन्वय (Controll and Coordination in Animals):
जंतुओं में नियंत्रण एवं समन्वय तंत्रिका तथा पेशी उत्तक द्वारा किया जाता है |
ग्राही (Receptor): तंत्रिका कोशिकाओं के विशिष्ट सिरे जो पर्यावरण से सभी सूचनाओं का पता लगाते हैं ग्राही कहलाते हैं |
ग्राहियों के प्रकार (Types of Receptors):
* ग्राही निम्न प्रकार के होते हैं :
(i) प्रकाश ग्राही (Photo receptor) ----> दृष्टि के लिए (आँख)
(ii) श्रावण ग्राही (Phono receptor) ----> सुनने के लिए (कान)
(iii) रस संवेदी ग्राही (Gustatory receptor) ---> स्वाद के लिए (जीभ)
(iv) घ्राण ग्राही (Olfactory receptor) ---> सूंघने के लिए (नाक)
(v) स्पर्श ग्राही (Thermo receptor) ---> ऊष्मा को महसूस करने के लिए (त्वचा)
ये सभी ग्राही हमारे ज्ञानेन्द्रियों (Sense organs) में स्थित होते हैं |
* तंत्रिका ऊतक (Norvous Tissues) : तंत्रिका उत्तक तंत्रिका कोशिकाओं या न्यूरॉन के इक संगठित जाल का बना हुआ होता है और यह सूचनाओं के विद्युत आवेग के द्वारा शरीर के एक भाग से दुसरे भाग तक संवहन के लिए विशिष्टीकृत (specialised) हैं |
* तंत्रिका कोशिका के भाग (The parts of norvous cells):
(i) द्रुमाकृतिक सिरा (द्रुमिका) Dendrite : जहाँ सूचनाएँ उपार्जित की जाती है |
(ii) द्रुमिका से कोशिकाय तक (From Dendrite to Cytoplasm) : जिससे होकर सूचनाएँ विद्युत आवेग  की तरह यात्रा करती हैं |
(iii) एक्सॉन (Axon): जहाँ इस आवेग का परिवर्तन रासायनिक संकेत में किया जाता है जिससे यह आगे संचारित हो सके |
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* आवर्त सारणी में धातुओं, अधतुओं एवं उपधातुओं की स्थिति :

* आवर्त सारणी में धातुओं, अधतुओं एवं उपधातुओं की स्थिति :
* धातुओं की  स्थिति :
सोडियम (Na) एवं मैग्नेशियम (Mg) जैसी धातुएँ सारणी के बाईं ओर स्थित होती है | वैसे आधुनिक आवर्त सारणी में धातुओं की संख्या अधातुओं एवं उपधातुओं की तुलना में कहीं अधिक है |
धातुओं में आबंध बनाते समय इलेक्ट्रान त्यागने की प्रवृति होती है | अर्थात विद्युत धनात्मक होते हैं |
उपधातु (Metalloids): वे तत्व जो धातुओं एवं अधातुओं दोनों के गुणधर्म को प्रदर्शित करते हैं, अर्द्धधातु या उपधातु कहलाते हैं |
आधुनिक आवर्त सारणी में एक टेढ़ी-मेढ़ी रेखा (zig-zag line) धातुओं को अधातुओं से अलग करती है |
उदाहरण : बोरोन (B), सिलिकॉन (Si), जर्मेनियम (Ge), आर्सेनिक (As), टेल्यूरियम (Te) और पॉलोनियम (Po).
* अधातुओं की स्थिति :
विद्युतऋणाणात्मकता की प्रवृत्ति के अनुसार अधातुएँ आवर्त सारणी के दाहिनी ओर ऊपर की ओर स्थित होती हैं। अधातुओं के ऑक्साइड की प्रकृति अम्लीय होती है | इनमें इलेक्ट्रोन ग्रहण करने की क्षमता होती है |
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Monday 24 October 2016

* आधुनिक आवर्त सारणी की प्रवृति:

* आधुनिक आवर्त सारणी की प्रवृति:

संयोजकता: किसी तत्व के परमाणु के सबसे बाहरी कोशों में उपस्थित संयोजी इलेक्ट्रोनों की संख्या को संयोजकता कहते हैं |

परमाणु साइज़ : एक स्वतंत्र परमाणु के केंद्र से उसके सबसे बाहरी कोश की दूरी ही परमाणु के साइज़ को दर्शाती है। परमाणु की साइज़ को मापने के लिए उसकी त्रिज्या को मापा जाता है |

परमाणु की त्रिज्या को पिकोमीटर pm में मापा जाता है |

1 pm = 10-12 m होता है |

हाइड्रोजन परमाणु की त्रिज्या 37 पिकोमीटर होता है |

कुछ अन्य तत्वों का परमाणु त्रिज्या:

तत्व (प्रतिक) परमाणु त्रिज्या

लिथियम (Li) 152 pm

बेरेलियम (Be) 111 pm

बोरोन (B) 88 pm

ऑक्सीजन (O) 66 pm

नाइट्रोजन (N) 74 pm

कार्बन (C) 77 pm

सोडियम (Na) 86 pm

* आधुनिक आवर्त सारणी के गुण :

(i) आवर्त में बाईं से दाईं ओर जाने पर परमाणु त्रिज्या घटती है। नाभिक में आवेश के बढ़ने से यह इलेक्ट्रॉनों को नाभिक की ओर खींचता है जिससे परमाणु का साइज़ घटता जाता है।

(ii) समूह में ऊपर से नीचे जाने पर परमाणु का साइज़ बढ़ता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि नीचे जाने पर एक नया कोश जुड़ जाता है। इससे नाभिक तथा सबसे बाहरी कोश के बीच की दूरी बढ़ जाती है और इस कारण नाभिक का आवेश बढ़ जाने के बाद भी परमाणु का साइज़ बढ़ जाता है।

(iii) आवर्त में जैसे-जैसे संयोजकता कोश के इलेक्ट्रॉनों पर किया जाने वाला प्रभावी नाभिकीय आवेश बढ़ता है, इलेक्ट्रॉन त्यागने की प्रवृत्ति घट जाती है।

(iv) समूह में नीचे की ओर, संयोजकता इलेक्ट्रॉन पर क्रिया करने वाला प्रभावी नाभिकीय आवेश घटता है क्योंकि सबसे बाहरी इलेक्ट्रॉन नाभिक से दूर होते हैं।

(v) आवर्त में बाएं से दाएँ जाने पर धात्विक लक्षण घटता है और समूह में नीचे जाने पर धात्विक गुण बढ़ता है |

(vi) आवर्त में बाएं से दाएँ जाने पर इलेक्ट्रान त्यागने की प्रवृति घटती जाती है और इलेक्ट्रान ग्रहण करने की प्रवृति बढ़ती जाती है |
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