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Wednesday 2 November 2016

* डी. एन. ए. प्रतिकृति (Copy) का प्रजनन में महत्व :

* डी. एन. ए. प्रतिकृति (Copy) का प्रजनन में महत्व :
जनन की मूल घटना डी. एन. ए. की प्रतिकृति बनाना है । डी. एन. ए. की  प्रतिकृति बनाने के लिए कोशिकाएँ विभिन्न रासायनिक क्रियाओं का उपयोग करती है । जनन कोशिका में इस प्रकार डी. एन. ए. की दो प्रतिकृतियाँ बनती है। इनके प्रजनन में निम्नलिखित महत्त्व है |
(i) जनन के दौरान डी. एन. ए. प्रतिकृति का जीव की शारीरिक संरचना एवं डिजाइन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है जो विशिष्ट निकेत के योग्य बनाती है ।
(ii) डी. एन. ए. की प्रतिकृति संतति जीव में जैव विकास के लिए उतरदायी होती हैं ।
(iii) डी. एन. ए. की प्रतिकृति में मौलिक डी. एन. ए. से कुछ परिवर्तन होता है मूलतः समरूप नहीं होते अतः जनन के बाद इन पीढीयों में सहन करने की क्षमता होती है ।
(iv) डी. एन. ए. की प्रतिकृति में यह परिवर्तन परिवर्तनशील परिस्थितियों में जीवित रहने की क्षमता प्रदान करती है । 
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* अलैंगिक जनन (Asexual Reproduction) :

* अलैंगिक जनन (Asexual Reproduction) :
जनन की वह विधि जिसमें सिर्फ एकल जीव ही भाग लेते है | अलैंगिक जनन कहलाता है |
* अलैंगिक जनन के प्रकार :
(A) विखंडन (Fission) : जनन की यह अलैंगिक प्रक्रिया एक कोशिकीय जीवों में होता है जिसमें एक कोशिका दो या दो से अधिक संतति कोशिकाओं में विभाजित हो जाती है | 
* विखंडन प्रक्रिया दो प्रकार से होती है |
(i) द्विविखंडन (Binary Fission) : इस विधि में जीव की कोशिका दो बराबर भागों में विभाजित हो जाता है | उदाहरण : अनेक जीवाणु एवं प्रोटोजोआ जैसे - अमीबा एवं लेस्मानिया आदि |
* अमीबा और लेस्मानिया के द्विखंडन में अंतर :
अमीबा में द्विखंडन किसी भी तल से हो सकता है जबकि लेस्मानिया में  द्विखंडन एक निश्चित तल से ही होता है |
(ii) बहुखंडन (Multiple Fission) : इस विधि में जीव एक साथ कई संतति कोशिकाओं में विभाजित हो जाते है, जिसे बहुखंडन कहते हैं | उदाहरण :  मलेरिया परजीवी प्लैज्मोडियम |
(B) खंडन (Fragmentation) : इस प्रजनन विधि में सरल संरचना वाले बहुकोशिकीय जीव विकसित होकर छोटे-छोटे टुकड़ों में खंडित हो जाते है | ये टुकड़े वृद्धि कर नए जीव (व्यष्टि) में विकसित हो जाते हैं |
* उदाहरण: स्पाइरोगाईरा |
(C) पुनरुदभावन (पुनर्जनन) (Regeneration) : पूर्णरूपेण विभेदित जीवों में अपने कायिक भाग से नए जीव के निर्माण की क्षमता होती है। अर्थात यदि किसी कारणवश जीव क्षत-विक्षत हो जाता है अथवा कुछ टुकड़ों में टूट जाता है तो इसके अनेक टुकड़े वृद्धि कर नए जीव में विकसित हो जाते हैं। उदाहरणतः हाइड्रा तथा प्लेनेरिया जैसे सरल प्राणियों को यदि कई टुकड़ों में काट दिया जाए तो प्रत्येक टुकड़ा विकसित होकर पूर्णजीव का निर्माण कर देता है। यह प्रक्रिया पुनर्जनन कहलाता है |
संक्षेप में, किसी कारणवश, प्लेनेरिया,  हाईड्रा जैसे जीव क्षत-विक्षत होकर टुकड़ों में टूट जाते है तो प्रत्येक टुकड़ा नए जीव में विकसित हो जाता है | यह प्रक्रिया पुनर्जनन कहलाता है |
परिवर्धन (Development) : पुनरुद्भवन (पुनर्जनन) विशिष्ट कोशिकाओं द्वारा संपादित होता है। इन कोशिकाओं के क्रमप्रसरण से अनेक कोशिकाएँ बन जाती हैं। कोशिकाओं के इस समूह से परिवर्तन के दौरान विभिन्न प्रकार की कोशिकाएँ एवं ऊतक बनते हैं। यह परिवर्तन बहुत व्यवस्थित रूप एवं क्रम से होता है जिसे परिवर्धन कहते हैं।
मुकुल (Bud) : जीवों में कोशिकाओं के नियमित विभाजन के कारण एक स्थान पर उभार बन जाते हैं इन उभारों को ही मुकुल (bud) कहते हैं | 
(D) मुकुलन (Budding) : हाइड्रा जैसे कुछ प्राणी पुनर्जनन की क्षमता वाली कोशिकाओं का उपयोग मुकुलन के लिए करते हैं। हाइड्रा में कोशिकाओं के नियमित विभाजन के कारण एक स्थान पर उभार विकसित हो जाता है। यह उभार (मुकुल) वृद्धि करता हुआ नन्हे जीव में बदल जाता है तथा पूर्ण विकसित होकर जनक से अलग होकर स्वतंत्रा जीव बन जाता है। जनन की यह प्रक्रिया मुकुलन कहलाती है |
* उदाहरण: यीस्ट और हाईड्रा जैसे जीवों में जनन मुकुलन के द्वारा होता है |
(E) बीजाणु समासंघ (Spore Formation) : अनेक सरल बहुकोशिकिक जीवों में जनन के लिए विशिष्ट जनन संरचनायें पाई जाती है | इन संरचनाओं के उर्ध्व तंतुओं पर सूक्ष्म गुच्छ जैसी संरचानाये होती हैं जिन्हें बीजाणुधानी कहते है | इन्ही बीजाणुधानी में जनन के लिए बीजाणु पाए जाते है जो वृद्धि कर नए जीव उत्पन्न करते हैं |
* उदाहरण : राइजोपस आदि |
बीजाणुओं की विशेषताएँ : बीजाणु के चारों ओर एक मोटी भित्ति होती है जो प्रतिकुल परिस्थितियों में उसकी रक्षा करती है, अर्थात चूँकि ये बीजाणु बीजाणुधानी फटने के बाद इधर-उधर फ़ैल जाते है तब यदि ऐसी परिस्थित हो जिससे इन बीजाणुओं को नुकसान पहुँचने वाला हो तो इसकी मोटी भित्ति इन फैले हुए बीजाणुओं कि रक्षा करती हैं और जैसे ही इनके लिए अनुकुल परिस्थिति बनती है ये नम सतह के संपर्क में आने पर वह वृद्धि करने लगते हैं। और नए जीव उत्पन्न करते है | यही कारण है कि बीजाणु जनन द्वारा जीव लाभान्वित होते है |
पौधों के कायिक भाग (Vegetative parts of plants) : पौधों के जड़, तना और पत्तियाँ आदि भागों को कायिक भाग कहा जाता है |
(F) कायिक प्रवर्धन (Vegetative Propagation):  पौधों के कायिक भागों जैसे जड़, तना एवं पत्तियों से भी नए पौधे उगाये जाते है जनन की इस प्रक्रिया को कायिक प्रवर्धन कहते हैं | इसमें कायिक भाग विकसित होकर नए पौधा उत्पन्न करते हैं |
* कायिक प्रवर्धन के लाभ:
कुछ पौधें को उगाने के लिए कायिक प्रवर्धन का उपयोग करने के कारण निम्न हैं ।
(i) जिन पौधों में बीज उत्पन्न करने की क्षमता नहीं होती है उनका प्रजनन कायिक प्रवर्धन विधि के द्वारा ही किया जाता हैं ।
(ii) इस विधि द्वारा उगाये गये पौधे में बीज द्वारा उगाये गये पौधों की अपेक्षा कम समय में फल और फूल  लगने लगते है।
(iii) पौधों में पीढी दर पीढी अनुवांशिक परिवर्तन होते रहते हैं । फल कम और छोटा होते जाना आदि, जबकि कायिक प्रवर्धन द्वारा उगाये गये पौधों जनक पौधें के समान ही फल फूल लगते हैं । 
* उभय लिंगी जीव : फीताकृमि, केंचुआ तथा सितारा मछली इत्यादी |
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* जीवों में जनन की विधियाँ :

* जीवों में जनन की विधियाँ :
जीवों में जनन विधियाँ जीवों के शारीरिक अभिकल्प (body Design) पर निर्भर करती हैं |
* जीवों में जनन की दो विधियाँ  हैं :
1. अलैंगिक जनन (Asexual Reproduction) 
2. लैंगिक जनन (Sexual Reproduction) : जनन की वह विधि जिसमें नर एवं मादा दोनों भाग लेते हैं | लैंगिक जनन कहलाता है |
जनन एवं लैंगिक जनन में अंतर :
* अलैंगिक जनन :
1. इसमें सिर्फ एकल जीव भाग लेते हैं |
2. इस प्रक्रिया द्वारा उत्पन्न जीवों में विविधता नहीं पाई जाती है |
3. युग्मक का निर्माण नहीं होता है |
4. इसमें जनक और संतति में पूर्ण समानता पाई जाती है | 
* लैंगिक जनन:
1. इसमें नर एवं मादा दोनों भाग लेते हैं |
2. इस प्रक्रिया द्वारा उत्पन्न जीवों में विविधता पाई जाती है |
3. इसमें नर एवं मादा युग्मक का निर्माण होता है |
4. इसमें केवल अनुवांशिक रूप से समान होते है शारीरिक संरचना में विविधता पाई जाती है |
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* स्रावित होने वाले हाॅर्मोन का समय और मात्रा का नियंत्राण:

* स्रावित होने वाले हाॅर्मोन का समय और मात्रा का नियंत्राण:
स्रावित होने वाले हाॅर्मोन का समय और मात्रा का नियंत्राण पुनर्भरण क्रियाविधि से किया जाताहै। उदाहरण के लिए, यदि रुधिर में शर्करा स्तर बढ़ जाता है
तो इसे अग्न्याशय की कोशिका संसूचित ;कमजमबजद्ध कर लेती है तथा इसकी अनुक्रिया में अधिक इंसुलिन स्रावित करती है। जब रुधिर में  स्तर कम हो जाता है तो इंसुलिन का स्रावण कम हो जाता है।
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* ऐच्छिक क्रियाएँ:

* ऐच्छिक क्रियाएँ:
वे सभी क्रियाएँ जिस पर हमारा नियंत्रण होता है, ऐच्छिक क्रियाएँ कहलाती हैं |
जैसे- बोलना, चलना, लिखना आदि |
ऐच्छिक क्रियाओं का नियंत्रण: ऐच्छिक क्रियाएँ हमारी इच्छा और सोंचने से होती है इसलिए इसका नियंत्रण हमारे सोचने वाला भाग अग्र-मस्तिष्क के द्वारा होता है |
अनैच्छिक क्रियाएँ : वे सभी क्रियाएँ जो स्वत: होती रहती है जिनपर हमारा कोई नियंत्रण नहीं होता है | अनैच्छिक क्रियाएँ कहलाती है |
जैसे: ह्रदय का धड़कना, साँस का लेना, भोजन का पचना आदि |
अनैच्छिक क्रियाओं का नियंत्रण: अनैच्छिक क्रियाएँ मध्य-मस्तिष्क व पश्च-मस्तिष्क के द्वारा नियंत्रित होती हैं |
* प्रतिवर्ती चाप:
जंतुओं में प्रतिवर्ती चाप की उपयोगिता :
अधिकतर जंतुओं में प्रतिवर्ती चाप इसलिए विकसित हुआ है क्योंकि इनके मस्तिष्क के सोचने का प्रक्रम बहुत तेज नहीं है। वास्तव में अधिकांश जंतुओं में सोचने के लिए आवश्यक जटिल न्यूराॅन जाल या तो अल्प है या अनुपस्थित होता है। अतः यह स्पष्ट है कि वास्तविक विचार प्रक्रम की अनुपस्थिति में प्रतिवर्ती चाप का दक्ष कार्य प्रणाली के रूप में विकास हुआ है। यद्यपि जटिल न्यूराॅन जाल के अस्तित्व में आने के बाद भी प्रतिवर्ती चाप तुरंत अनुक्रिया के लिए एक अधिक दक्ष प्रणाली के रूप में कार्य करता है।
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* प्रतिवर्ती क्रिया :

* प्रतिवर्ती क्रिया :
किसी उद्दीपन के प्रति, मस्तिष्क के हस्तक्षेप के बिना, अचानक अनुक्रिया, प्रतिवर्ती क्रिया कहलाती है |
ये क्रियाएँ स्वत: होने वाली क्रियाएँ है जो जीव की इच्छा के बिना ही होती है |
उदाहरण:
(i) किसी गर्म वस्तु को छूने से जलने पर तुरंत हाथ हटा लेना |
(ii) खाना देखकर मुँह में पानी का आ जाना
(iii) सुई चुभाने पर हाथ का हट जाना आदि |
प्रतिवर्ती क्रियाओं का नियंत्रण: सभी प्रतिवर्ती क्रियाएँ मेरुरज्जू के द्वारा नियंत्रित होती है |
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* तंत्रिकाओं द्वारा सूचनाओं का संचरण :

* तंत्रिकाओं द्वारा सूचनाओं का संचरण :
( function() { if (window.CHITIKA === undefined) { window.CHITIKA = { 'units' : [] }; }; var unit = {"calltype":"async[2]","publisher":"nikhil944","width":300,"height":250,"sid":"Chitika Default"}; var placement_id = window.CHITIKA.units.length; window.CHITIKA.units.push(unit); document.write('
'); }()); > सभी सूचनाएँ जो हमारे मस्तिष्क तक जो पहुँचाती हैं ये सूचनाएँ एक तंत्रिका कोशिका के द्रुमाकृतिक सिरे द्वारा उपार्जित (aquaired) की जाती है, और एक रासायनिक क्रिया द्वारा एक विद्युत आवेग पैदा करती हैं |
यह आवेग द्रुमिका से कोशिकाकाय तक जाता है फिर तब तंत्रिकाक्ष (एक्सॉन ) में होता हुआ इसके अंतिम सिरे तक पहुँच जाता है |
एक्सॉन के  अंत में विद्युत आवेग का परिवर्तन रासायनिक संकेत में किया जाता है ताकि यह आगे संचारित हो  सके |
ये रासायनिक संकेत रिक्त स्थान या सिनेप्स (सिनेप्टिक दरार ) को पार करते है और अगली तंत्रिका की द्रुमिका में इसी तरह का विद्युत आवेग प्रारंभ करते हैं | इस प्रकार सूचनाएं एक जगह से दूसरी जगह संचारित हो जाती हैं |
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