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Friday, 11 November 2016
Thursday, 10 November 2016
* तीन R का अर्थ और महत्त्व :
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* तीन R का अर्थ और महत्त्व :
तीन R का अर्थ है Reduce (कम प्रयोग) Recycle (पुन: चक्रण) Reuse (पुन: प्रयोग) है |
Reduce (कम प्रयोग): संसाधनों के कम से कम प्रयोग कर व्यर्थ उपयोग रोक सकते है | कम उपयोग से प्रदुषण भी कम फैलता है |
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Recycle (पुन: चक्रण): प्लास्टिक , कागज, काँच ,धातु की वस्तुएँ आदि का Recycle (पुनः चक्रण) कर उपयोगी वस्तुएँ बनाना चाहिए। जल्द समाप्त होने वाली संसाधनों को बचाया जा सके और ये पर्यावरण को प्रदूषित न कर सके । यू ही फेंक देने से ये पर्यावरण में प्रदूषण फैलाती हैं ।
Reuse (पुन: प्रयोग) : यह पुनः चक्रण से भी अच्छा तरीका है क्योंकि पुनःचक्रण में ऊर्जा व्यय होती है जिसमें संसाधनो का हा्रास होता है । ऐसी वस्तुए जिनका पुनः उपयोग हो सकता है जैसे प्लास्टिक की बोतले और डब्बे आदि का उपयोग कर लेना चाहिए ।
* प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन की आवश्यकता :
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* प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन
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* प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन की आवश्यकता :
(i) प्राकृतिक संसाधनों के संपोषित विकास लिए |
(ii) विविधता को बचाने के लिए |
(iii) पारिस्थितिक तंत्र को बचाने के लिए |
* संसाधनों के दोहन का अर्थ :
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जब हम संसाधनों का अंधाधुन उपयोग करते है तो बडी तीव्रता से प्रकृति से इनका हा्रास होने लगता है । इससे हम पर्यावरण को क्षति पहुँचाते है । जब हम खुदाई से प्राप्त धातु कर निष्कर्षण करते है तो साथ ही साथ अपशिष्ट भी प्राप्त होता है जिनका निपटारा नहीं करने पर पर्यावरण को प्रदूषित करता है । जिसके कारण बहुत सी प्राकृतिक आपदाएँ होती रहती है | ये संसाधन हमारे ही नहीं अपितु अगली कई पिढियों के भी है । * जीवन निर्वाह के आधार पर जीवों का वर्गीकरण :
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हमारा पर्यावरण
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* जीवन निर्वाह के आधार पर जीवों का वर्गीकरण :
जीवन निर्वाह के आधार पर जीवों को तीन भागों में विभाजित किया गया है :
(1) उत्पादक (Producer)
(2) उपभोक्ता (Consumer)
(3) अपघटक
1. उत्पादक (Producer) : वे जीव जो सूर्य के प्रकाश में अकार्बनिक पदार्थों जैसे शर्करा व स्टार्च का प्रयोग कर अपना भोजन बनाते हैं, उत्पादक कहलाते हैं |
अर्थात प्रकाश संश्लेषण करने वाले सभी हरे पौधे, नील-हरित शैवाल आदि उत्पादक कहलाते हैं |
2. उपभोक्ता (Consumer) : ऐसे जीव जो अपने निर्वाह के लिए परोक्ष या अपरोक्ष रूप से उत्पादकों द्वारा निर्मित भोजन का उपयोग करते हैं |
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* उपभोक्ताओं का निम्नलिखित चार प्रकार है :
(i) शाकाहारी (Herbivores) : वे जीव जो अपने जीवन निर्वाह के लिए सिर्फ पेड़-पौधों पर ही निर्भर रहते हैं, शाकाहारी कहलाते हैं | जैसे - गाय, हिरण, बकरी और खरगोस आदि |
(ii) माँसाहारी (Carnivores) : वे जीव जो सिर्फ माँस खाते है अर्थात जीव-जन्तुओ से अपना भोजन करते है, माँसाहारी कहलाते हैं | उदाहरण : शेर, बाघ, चीता आदि |
(iii) परजीवी (Parasites) : वे जीव स्वयं भोजन नहीं बनाते परन्तु ये अन्य जीवों के शरीर में या उनके ऊपर रहकर उन्हीं से भोजन लेते हैं परजीवी कहलाते हैं | उदाहरण: प्लाजमोडियम, फीता कृमि, जू आदि |
(iv) सर्वाहारी (Omnivores) : वे जीव जो पौधे एवं माँस दोनों खाते हैं सर्वाहारी कहलाते हैं | जैसे- कौवा, कुत्ता आदि |
3. अपमार्जक या अपघटक (Decomposer) : वे जीव जो मरे हुए जीव व् पौधे या अन्य कार्बनिक पदार्थों के जटिल पदार्थों को सरल पदार्थों में विघटित कर देते है | अपघटक कहलाते हैं |
वे जीव जो मृतजैव अवशेषों का अपमार्जन करते है अपमार्जक कहलाते हैं | जैसे - जीवाणु, कवक, गिद्ध आदि | जैसे - फफूँदी व जीवाणु आदि |
आहार श्रृंखला (Food Chain) : जीवों की वह श्रृंखला जिसके प्रत्येक चरण में एक पोषी स्तर का निर्माण करते हैं जिसमें जीव एक-दुसरे का आहार करते है | इस प्रकार विभिन्न जैविक स्तरों पर भाग लेने वाले जीवों की इस श्रृंखला को आहार श्रृंखला कहते हैं |
उदाहरण :
(a) हरे पौधे ⇒ हिरण ⇒ बाघ
(b) हरे पौधे ⇒टिड्डा ⇒मेंढक ⇒साँप ⇒गिद्ध /चील
(c) हरे पौधे ⇒बिच्छु ⇒मछली ⇒बगूला
जैव आवर्धन (Biological Magnification) : आहार श्रृंखला में जीव एक दुसरे का भक्षण करते हैं | इस प्रक्रम में कुछ हानिकारक रासायनिक पदार्थ आहार श्रृंखला के माध्यम से एक जीव से दुसरे जीव में स्थानांतरित हो जाते है | इसे ही जैव आवर्धन कहते है |
अन्य शब्दों में, आहार श्रृंखला में हानिकारक पदार्थों का एक जीव से दुसरे में स्थानान्तरण जैव आवर्धन कहलाता है |
* परितंत्र
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हमारा पर्यावरण
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* परितंत्र
जैव निम्नीकरनीय पदार्थों के गुण :
(i) ये पदार्थ सक्रीय होते हैं |
(ii) इनका जैव अपघटन होता है |
(iii) ये बहुत कम ही समय तक पर्यावरण में बने रहते हैं |
(iv) ये पर्यावरण को अधिक हानि नहीं पहुँचाते हैं |
* जैव अनिम्नीकरनीय पदार्थों के गुण :
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(i) ये पदार्थ अक्रिय (Inert) होते हैं |
(ii) इनका जैव अपघटन नहीं होता है |
(iii) ये लंबे समय तक पर्यावरण में बने रहते हैं |
(iv) ये पर्यावरण के अन्य पदार्थों को हानि पहुँचाते हैं |
परितंत्र : किसी भी क्षेत्र के जैव तथा अजैव घटक मिलकर संयुक्त रूप से एक तंत्र का निर्माण करते हैं जिन्हें परितंत्र कहते है |
जैसे – बगीचा, तालाब, झील, खेत, नदी आदि |
उदाहरण के लिए बगीचा में हमें विभिन्न जैव घटक जैसे – घास, वृक्ष, पौधे, विभिन्न फूल आदि मिलते है वही जीवों के रूप में मेंढक, कीट, पक्षी जैसे जीव होते है, और अजैव घटक वहाँ का वायु, मृदा, ताप आदि होते हैं | अत: बगीचा एक परितंत्र है |
जैव घटक : किसी भी पर्यावरण के सभी जीवधारी जैसे – पेड़-पौधे एवं जीव-जन्तु जैव घटक कहलाते हैं |
अजैव घटक : किसी परितंत्र के भौतिक कारक जैसे- ताप, वर्षा, वायु, मृदा एवं खनिज इत्यादि अजैव घटक कहलाते हैं |
* परितंत्र दो प्रकार के होते है :
(i) प्राकृतिक परितंत्र : वन, तालाब नदी एवं झील आदि प्राकृतिक परितंत्र हैं |
(ii) कृत्रिम परितंत्र : बगीचा, खेत आदि कृत्रिम अर्थात मानव निर्मित परितंत्र हैं |
* जैव-भौगोलिक रासायनिक चक्रण:
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हमारा पर्यावरण
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* जैव-भौगोलिक रासायनिक चक्रण:
इन चक्रों में अनिवार्य पोषक तत्व जैसे - नाइट्रोजन, कार्बन, ऑक्सीजन एवं जल एक रूप से दुसरे रूप में बदलते रहते है |
उदाहरण : नाइट्रोजन चक्र में नाइट्रोजन वायुमंडल में विभिन्न रूपों में एक चक्र बनाता है |
कार्बन चक्र में कार्बन वायुमंडल के विभिन्न भागों से अपने एक रूप से दुसरे रूप में बदलता रहता है इससे एक चक्र का निर्माण होता है |
पर्यावरण : वे सभी चीजें जो हमें हमें घेरे रखती हैं जो हमारे आसपास रहते हैं | इसमें सभी जैविक तथा अजैविक घटक शामिल हैं | इसलिए सभी जीवों के आलावा इसमें जल व वायु आदि शामिल हैं |
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पर्यावरणीय अपशिष्ट : जीवों द्वारा उपयोग की जाने वाले पदार्थो में बहुत से अपशिष्ट रह जाते है जिनमें से बहुत से अपशिष्ट जैव प्रक्रमों के द्वारा अपघटित हो जाते है और बहुत से ऐसे अपशिष्ट होते है जिनका अपघटन जैव-प्रक्रमों के द्वारा नहीं होता है एवं ये पर्यावरण में बने रहते है |
(1) जैव निम्नीकरणीय : वे पदार्थ जो जैविक प्रक्रम के द्वारा अपघटित हो जाते है जैव निम्नीकरणीय कहलाते हैं |
उदाहरण:
सभी कार्बनिक पदार्थ जो सजीवों से प्राप्त होते है उनका जैव प्रक्रम द्वरा अपघटन होता हैं |
गोबर, सूती कपड़ा, जुट, कागज, फल और सब्जियों के छिलके, जंतु अपशिष्ट आदि |
(2) अजैव निम्नीकरणीय: वे पदार्थ जिनका जैविक प्रक्रमों के द्वारा अपघटन नहीं होता है अजैव निम्नीकरनीय कहलाते हैं |
उदाहरण :
प्लास्टिक, पोलीथिन, सश्लेषित रेशे, धातु, रेडियोएक्टिव पदार्थ तथा कुछ रसायन (डी. टी. टी. उर्वरक) आदि जो अभिक्रियाशील होते है और विघटित नहीं हो पाते हैं |
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