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Thursday 10 November 2016

* परितंत्र

* परितंत्र
जैव निम्नीकरनीय पदार्थों के गुण :
(i) ये पदार्थ सक्रीय होते हैं |
(ii) इनका जैव अपघटन होता है |
(iii) ये बहुत कम ही समय तक पर्यावरण में बने रहते हैं |
(iv) ये पर्यावरण को अधिक हानि नहीं पहुँचाते हैं |
* जैव अनिम्नीकरनीय पदार्थों के गुण :
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(i) ये पदार्थ अक्रिय (Inert) होते हैं |
(ii) इनका जैव अपघटन नहीं होता है |
(iii) ये लंबे समय तक पर्यावरण में बने रहते हैं |
(iv) ये पर्यावरण के अन्य पदार्थों को हानि पहुँचाते हैं |
परितंत्र : किसी भी क्षेत्र के जैव तथा अजैव घटक मिलकर संयुक्त रूप से एक तंत्र का निर्माण करते हैं जिन्हें परितंत्र कहते है |
जैसे – बगीचा, तालाब, झील, खेत, नदी आदि |
उदाहरण के लिए बगीचा में हमें विभिन्न जैव घटक जैसे – घास, वृक्ष, पौधे, विभिन्न फूल आदि मिलते है वही जीवों के रूप में मेंढक, कीट, पक्षी जैसे जीव होते है, और अजैव घटक वहाँ का वायु, मृदा, ताप आदि होते हैं | अत: बगीचा एक परितंत्र है |
जैव घटक : किसी भी पर्यावरण के सभी जीवधारी जैसे – पेड़-पौधे एवं जीव-जन्तु जैव घटक कहलाते हैं |
अजैव घटक : किसी परितंत्र के भौतिक कारक जैसे- ताप, वर्षा, वायु, मृदा एवं खनिज इत्यादि अजैव घटक कहलाते हैं |
* परितंत्र दो प्रकार के होते है :
(i)  प्राकृतिक परितंत्र : वन, तालाब नदी एवं झील आदि प्राकृतिक परितंत्र हैं |
(ii) कृत्रिम परितंत्र : बगीचा, खेत आदि कृत्रिम अर्थात मानव निर्मित परितंत्र हैं | 
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* जैव-भौगोलिक रासायनिक चक्रण:

* जैव-भौगोलिक रासायनिक चक्रण:
इन चक्रों में अनिवार्य पोषक तत्व जैसे - नाइट्रोजन, कार्बन, ऑक्सीजन एवं जल एक रूप से दुसरे रूप में बदलते रहते है |
उदाहरण : नाइट्रोजन चक्र में नाइट्रोजन वायुमंडल में विभिन्न रूपों में एक चक्र बनाता है |
कार्बन चक्र में कार्बन वायुमंडल के विभिन्न भागों से अपने एक रूप से दुसरे रूप में बदलता रहता है इससे एक चक्र का निर्माण होता है |
पर्यावरण : वे सभी चीजें जो हमें हमें घेरे रखती हैं जो हमारे आसपास रहते हैं | इसमें सभी जैविक तथा अजैविक घटक शामिल हैं | इसलिए सभी जीवों के आलावा इसमें जल व वायु आदि शामिल हैं | 
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पर्यावरणीय अपशिष्ट : जीवों द्वारा उपयोग की जाने वाले पदार्थो में बहुत से अपशिष्ट रह जाते है जिनमें से बहुत से अपशिष्ट जैव प्रक्रमों के द्वारा अपघटित हो जाते है और बहुत से ऐसे अपशिष्ट होते है जिनका अपघटन जैव-प्रक्रमों के द्वारा नहीं होता है एवं ये पर्यावरण में बने रहते है |
(1)  जैव निम्नीकरणीय : वे पदार्थ जो जैविक प्रक्रम के द्वारा अपघटित हो जाते है जैव निम्नीकरणीय कहलाते हैं |
उदाहरण:
सभी कार्बनिक पदार्थ जो सजीवों से प्राप्त होते है उनका जैव प्रक्रम द्वरा अपघटन होता हैं |
गोबर, सूती कपड़ा, जुट, कागज, फल और सब्जियों के छिलके, जंतु अपशिष्ट आदि |
(2) अजैव निम्नीकरणीय: वे पदार्थ जिनका जैविक प्रक्रमों के द्वारा अपघटन नहीं होता है अजैव निम्नीकरनीय कहलाते हैं |
उदाहरण :
प्लास्टिक, पोलीथिन, सश्लेषित रेशे, धातु, रेडियोएक्टिव पदार्थ तथा कुछ रसायन (डी. टी. टी. उर्वरक) आदि जो अभिक्रियाशील होते है और विघटित नहीं हो पाते हैं |
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* महासागरीय तापीय ऊर्जा का दोहन :

* महासागरीय तापीय ऊर्जा का दोहन :
इसके दोहन के लिए OTEC विद्युत संयंत्र का उपयोग किया जाता है | यह संयन्त्र महासागर के पृष्ठ पर जल का ताप तथा 2 km तक की गहराई पर जल के ताप में जब 20oC का अंतर हो तो ही OTEC संयंत्र कार्य करता है | पृष्ठ के तप्त जल का उपयोग अमोनिया जैसे वाष्पशील द्रवों को उबालने में किया जाता है। इस प्रकार बनी द्रवों की वाष्प फिर जनित्र (Generator) के टरबाइन को घुमाती है। महासागर की गहराइयों से ठंडे जल को पंपों से खींचकर वाष्प को ठंडा करके फिर से द्रव में संघनित किया जाता है। टरबाइन घूमने से विद्युत उत्पन्न होता है |
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OTEC विद्युत संयंत्र की सीमाएँ :
(i) महासागर के पृष्ठ पर जल का ताप तथा 2 km तक की गहराई पर जल के ताप में जब 20oC का अंतर हो तो ही OTEC संयंत्र कार्य करता है |
(ii) इसके दक्षतापूर्ण व्यापारिक दोहन में कठिनाइयाँ है |
B. भूतापीय ऊर्जा (Geothermal Energy) :
जब भूमिगत जल तप्त स्थलों के संपर्क में आता है तो भाप उत्पन्न होती है | जब यह भाप चट्टानों के बीच फंस जाती हैं तो इसका दाब बढ़ जाता है | उच्च दाब पर यह भाप पाइपों द्वारा निकाल ली जाती है, यह भाप विद्युत जनरेटर की टरबाइन को घुमती है तथा विद्युत उत्पन्न की जाती है |
तप्त स्थल : भौमिकीय परिवर्तनों के कारण भूपर्पटी में गहराइयों पर तप्त क्षेत्रों में पिघली चट्टानें ऊपर धकेल दी जाती हैं जो कुछ क्षेत्रों में एकत्र हो जाती हैं। इन क्षेत्रों को तप्त स्थल कहते
हैं।
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गरम चश्मा अथवा ऊष्ण स्रोत : तप्त जल को पृथ्वी के पृष्ठ से बाहर निकलने के लिए जो निकास मार्ग होता है। इन निकास मार्गों को गरम चश्मा अथवा ऊष्ण स्रोत कहते हैं।
लाभ :
(i) इसके द्वारा विद्युत उत्पादन की लागत अधिक नहीं है |
(ii) व्यापारिक दृष्टिकोण से इस ऊर्जा का दोहन करना व्यावहारिक है।
सीमाएँ : पृथ्वी पर भूतापीय ऊर्जा के क्षेत्र बहुत कम हैं |
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* समुद्रों से ऊर्जा तथा नाभकीय ऊर्जा

* समुद्रों से ऊर्जा तथा नाभकीय ऊर्जा
समुद्रों से प्राप्त ऊर्जा को हम तीन वर्गों में विभाजित करते हैं :
1. ज्वारीय ऊर्जा
2. तरंग ऊर्जा
3. महासागरीय तापीय ऊर्जा
1. ज्वारीय ऊर्जा : समुद्रों में उत्पन्न ज्वार-भाटा के कारण प्राप्त ऊर्जा को ज्वारीय ऊर्जा कहते हैं |
यह ज्वार-भाटे में जल के स्तर के चढ़ने तथा गिरने से हमें ज्वारीय ऊर्जा प्राप्त होती है।
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ज्वार-भाटा (Tide) : समुद्र के जल स्तर को दिन में परिवर्तन होने की परिघटना को ज्वार-भाटा कहते है |
* ज्वारीय ऊर्जा का कारण :
(i) पृथ्वी कि घूर्णन गति
(ii) चन्द्रमा का गुरुत्वीय खिंचाव
* ज्वारीय ऊर्जा का दोहन :
ज्वारीय ऊर्जा का दोहन सागर के किसी संकीर्ण क्षेत्र पर बाँध् का निर्माण करके किया जाता है। बाँध् के द्वार पर स्थापित टरबाइन ज्वारीय ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में रूपांतरित कर देती है।
2. तरंग ऊर्जा :
महासागरों के पृष्ठ पर आर-पार बहने वाली प्रबल पवन तरंगें उत्पन्न करती है। इन विशाल तरंगों की गतिज ऊर्जा को भी विद्युत उत्पन्न करने के लिए इन उत्पन्न तरंगों को ट्रेप किया जाता है।  तरंग ऊर्जा को ट्रेप करने के लिए विविध् युक्तियाँ विकसित की गई हैं जो टरबाइन को घुमाकर विद्युत उत्पन्न करती हैं |
* तरंग ऊर्जा की सीमाएँ :
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(i) तरंग ऊर्जा का वहीं पर व्यावहारिक उपयोग हो सकता है जहाँ तरंगें अत्यंत प्रबल हों।
3. महासागरीय तापीय ऊर्जा : समुद्रों तथा महासागरों के पृष्ठ के जल का ताप और गहराई के ताप में अंतर से प्राप्त प्राप्त तापीय ऊर्जा का उपयोग विद्युत संयंत्रो के उपयोग से विद्युत ऊर्जा प्राप्त करने के लिए किया जाता है |
सागरीय तापीय ऊर्जा रूपांतरण विद्युत संयंत्र (Ocean Thermal Energy Conversion Plant या OTEC विद्युत संयंत्र) : यह एक यन्त्र है जो समुद्रों तथा महासागरों के पृष्ठ तथा गहराई के तापों का अन्तर से प्राप्त ऊष्मा का उपयोग कर विद्युत ऊर्जा उत्पन्न करता है |
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* वैकल्पिक ऊर्जा स्रोत अथवा गैर-परंपरागत ऊर्जा स्रोत:

* वैकल्पिक ऊर्जा स्रोत अथवा गैर-परंपरागत ऊर्जा स्रोत:
वैकल्पिक ऊर्जा स्रोत अथवा गैर-परंपरागत ऊर्जा स्रोत का तात्पर्य ऊर्जा के उन स्रोतों से है जिसे हम पहले कभी प्रयोग नहीं किया परन्तु वर्त्तमान में उसे नई प्रौद्योगिकी द्वारा उर्जा के एक वैकल्पिक स्रोत के रूप देख रहे है या अब प्रयोग कर रहे हैं |
1. सौर ऊर्जा (Solar Energy) : सूर्य से प्राप्त ऊर्जा को सौर उर्जा कहते हैं | ये दृश्य प्रकाश, अवरक्त किरणों (infrared rays), पराबैगनी किरणों (ultra voilet rays) के रूप में होती हैं |
सौर स्थिरांक : पृथ्वी के वायुमंडल की परिरेखा पर सूर्य की किरणों के लंबवत स्थित खुले क्षेत्र के प्रति क्षेत्रफल पर प्रति सेकेंड पहुँचने वाली सौर ऊर्जा को सौर-स्थिरांक कहते हैं | इसका मान 1.4 kJ/sm2 होता है |
सौर ऊर्जा से चलने वाली युक्तियाँ : इन युक्तियों में सूर्य से प्राप्त ऊष्मा का उपयोग उष्मक के रूप में किया जाता है जो ऊष्मा को एकत्र कर कार्य करती है |
1. सौर ऊर्जा को ऊष्मा के रूप में :
(i) सौर कुकर
(ii) सौर जल तापक (सौर गीजर )
(iii) सौर जल पम्प
2. सौर ऊर्जा से विद्युत ऊर्जा : इन युक्तियों में सौर उर्जा को विद्युत में रूपांतरित कर उपयोग में लाया जाता है |
(i) सौर सेल
(i) सौर कुकर : यह वह युक्ति है जिसमें सूर्य की किरणों को फोफसित करने के लिए दर्पणों का उपयोग एक बॉक्स के ऊपर लगाकर किया जाता है जो एक बढ़िया उष्मक की भांति कार्य करता है | इसमें काँच की शीट की एक ढक्कन होता है जो इसके अंदर प्रवेश करने वाली ऊष्मा को बाहर नहीं निकलने देता है | यह भोजन पकाने के लिए उपयोग में लाया जाता है |
* सौर कुकर का सिद्धांत : सौर कुकर मुख्यत: दो सिद्धांतों पर कार्य करता है |
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(i) काला रंग ऊष्मा को अधिक सोंखता है :
  इस सिद्धांत के आधार पर ही सौर कुकर को चारो तरफ से काला रंग से रंग जाता है ताकि ये अपने ऊपर पड़ने वाले ऊष्मा को अधिक से अधिक सोंख सके |
(ii) ग्रीन हाउस प्रभाव : इस सिद्धांत के अनुसार सौर कुकर में एक काँच की शीट ढक्कन के ऊपर लगाया जाता है ताकि उसके अंदर प्रवेश करने वाला विकिरण (ऊष्मा) बाहर न आ सके और अंदर ऊष्मा लगातार बनी रहे |
* सौर कुकर के लाभ :
(i) भारत में सौर ऊर्जा लगभग सभी जगहों पर प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है |
(ii) यह पर्यावरण हितैषी है |
(iii) इन कुकर के उपयोग से एक साथ एक से अधिक खाना बनाया जा सकता है |
* सौर कुकर की हानियाँ :
(i) यह सभी प्रकार के भोजन बनाने के लिए उपयुक्त नहीं है |
(ii) इसका प्रयोग केवल तेज धुप वाले दिनों में ही किया जा सकता है |
(iii) ध्रुवीय क्षेत्रों में तथा उन क्षेत्रों में जहाँ सूर्य बहुत कम दिखाई देता है उपयोग सिमित है |
2. सौर सेल (solar cell) : ये सौर उर्जा से चलने वाली एक युक्ति है जो सौर ऊर्जा को विद्युत उर्जा में रूपांतरित करते हैं |
* सौर सैल को बनाने में प्रयुक्त पदार्थ :
सौर सेलों को बनाने के लिए सिलिकॉन का उपयोग किया जाता है | जो प्रकृति में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं, परंतु सौर सेलों को बनाने में उपयोग होने वाले विशिष्ट श्रेणी के सिलिकॉन की उपलब्धता सीमित है।
धुप में रखे जाने पर किसी प्ररूपी सौर सेल से 0.5-1.0 V तक वोल्टता विकसित होती है तथा लगभग 0.7 W विद्युत उत्पन्न कर सकते हैं।
सौर पैनल : जब बहुत अधिक संख्या में सौर सेलों को संयोजित करते हैं तो यह व्यवस्था सौर पैनल कहलाती है |
सौर सेलों को एक दुसरे से जोड़कर सौर पैनल बनाया जाता है | इसे जोड़ने के लिए चाँदी (सिल्वर) का उपयोग किया जाता है |
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* सौर सेलों का उपयोग :
(i) सौर ऊर्जा से विद्युत ऊर्जा प्राप्त करने के लिए किया जाता है |
(ii) सौर सेलों का उपयोग बहुत से वैज्ञानिक तथा प्रौद्योगिक अनुप्रयोगों के लिए किया जाता है।
(iii) ट्रैफिक सिग्नलों, परिकलन यन्त्र (calculator) तथा बहुत से खिलौनों में सौर सेल लगे होते हैं |
(iv) मानव-निर्मित उपग्रहों में सौर सेल का उपयोग होता हैं |
(v) रेडियो तथा वायरलेस सिस्टम, सुदूर क्षेत्रों के टी. वी. रिले केन्द्रों में सौर सेल पैनल का उपयोग होता है |
* सौर सेलों के लाभ :
(i) इसमें कोई गतिमान पुर्जा नहीं होता है तथा इनका रखरखाव सस्ता है |
(ii) ये बिना किसी फोकसन युक्ति के काफी संतोषजनक कार्य करते हैं |
(iii) इन्हें सुदूर तथा अगम्य स्थानों में स्थापित किया जा सकता है |
(ii) यह ऊर्जा का नवीकरणीय स्रोत है |
(iii) इससे प्रदुषण नहीं होता है ये पर्यावरण हितैसी हैं |
* सौर सेल कि सीमाएँ :
(i) सौर सेलों के उत्पादन की समस्त प्रक्रिया बहुत महँगी हैं |
(ii) सौर सेलों को बनाने में उपयोग होने वाले विशिष्ट श्रेणी के सिलिकॉन की उपलब्धता सीमित है।
(iii) सौर पैनल बनाने में सिल्वर (चाँदी) का उपयोग होता है जिसके कारण लागत में और वृद्धि हो जाती है।
(iv) मँहगा होने के कारण सौर सेलों का घरेलू उपयोग अभी तक सीमित है।
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* ऊर्जा के विभिन्न प्रकार

* ऊर्जा के विभिन्न प्रकार
* उर्जा के प्रकार :
ऊर्जा के विभिन्न रूप निम्नलिखित है |
(i) स्थितिज ऊर्जा : किसी वस्तु में संचित उर्जा को स्थितिज उर्जा कहते हैं |
(ii) गतिज ऊर्जा : गतिमान वस्तु में कार्य करने कि क्षमता होती है, वस्तु के गति के कारण उत्पन्न उर्जा को गतिज उर्जा कहते हैं |
(iii) उष्मीय ऊर्जा : ऊष्मा उर्जा का एक अन्य रूप है जिसमें एक रूप से दूसरी रूप में परिवर्तन होने कि क्षमता होती है | यह वस्तु के कणों के बीच में गतिज उर्जा के रूप में परिवर्तित हो जाती है |
(iv) रासायनिक ऊर्जा : कुछ रसायनों में उर्जा उत्पन्न करने की क्षमता होती है, रासायनिक प्रक्रिया द्वारा उत्पन्न उर्जा को रासायनिक उर्जा कहते हैं |
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(v) विद्युत ऊर्जा : विद्युत में कार्य करने की अदभुत क्षमता होती है | इस विद्युत से उत्पन्न उर्जा को विद्युत उर्जा कहते है | 
(vi) प्रकाश ऊर्जा : उर्जा के किसी स्रोत से जब उर्जा का उपभोग प्रकाश प्राप्त करने के लिए जब किया जाता है तो उसे प्रकाश उर्जा कहते है | 
ऊर्जा संरक्षण का नियम : उर्जा संरक्षण के नियम के अनुसार उर्जा का न तो सृजन किया जा सकता है और न ही विनाश किया जा सकता है , इसका केवल एक रूप से दुसरे रूप में रूपांतरित हो सकता  है |
ऊर्जा संरक्षण के नियम के लिए उदाहरण : मान लीजिए कि हम एक m द्रव्यमान की वस्तु को h मीटर की ऊंचाई तक उठाते है तो वस्तु में स्थितिज ऊर्जा संचित होती है | अब जब वस्तु को गिराया जाता है तो ऊंचाई कम होने के साथ-साथ वस्तु की स्थितिज ऊर्जा कम होती चली जाएगी और गतिज ऊर्जा बढती जाएगी | जब वस्तु धरती पर पहुँचती है वस्तु की स्थितिज ऊर्जा शून्य हो जाता है परन्तु गतिज ऊर्जा
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सबसे ऊंचाई पर जितनी स्थितिज उर्जा थी उसके परिमाण के बराबर होती है | अत: कह सकते है कि ऊर्जा एक रूप से दुसरे रूप में रूपांतरित होती है |
यांत्रिक उर्जा (Mechanical Energy) : किसी वस्तु के स्थितिज उर्जा एवं गतिज उर्जा के योग को यांत्रिक उर्जा कहते हैं |
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* टरबाइन का सिद्धांत:

* टरबाइन का सिद्धांत:

टरबाइन यांत्रिक ऊर्जा से कार्य करता है इसके रोटर-ब्लेड को घुमाने के लिए एक गति देनी होती है जो इसे गतिशील पदार्थ जैसे जल, वायु अथवा भाप से प्राप्त होता है  जिससे यह रोटर को ऊर्जा प्रदान करते है | वह इस यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में रूपांतरित करने के लिए डायनेमो के शैफ्ट को घुमा देता है | यही टरबाइन का सिद्धांत है |

* ताप विद्युत की प्रक्रिया :

ताप विद्युत की प्रक्रिया में टरबाइन को घुमाने के लिए ऊर्जा के विभिन्न स्रोतों का उपयोग किया जाता है | ये ऊर्जा के विभिन्न स्रोत निम्नलिखित हैं :

(i) ऊँचाई से गिरता हुआ पानी द्वारा |

(ii) ऊष्मा देकर जल से भाप उत्पन्न कर |

(iii) पवन के तेज झोकों द्वारा |

* यह प्रक्रिया निम्न है :

ऊर्जा स्रोत द्वारा टरबाइन का घुमाना

टरबाइन द्वारा '

ली गयी यांत्रिक ऊर्जा द्वारा डायनेमो के शैफ्ट को घुमाना

डायनेमो द्वारा विद्युत ऊर्जा का उत्पन्न होना |

एक समान्य ताप विद्युत उत्पादन का मॉडल

2. तापीय विद्युत संयंत्र :

•विद्युत संयंत्रों में प्रतिदिन विशाल मात्रा में जीवाश्मी ईंधन का दहन करके जल उबालकर भाप बनाई जाती है जो टरबाइनो घुमाकर विद्युत उत्पन्न करती है |

•इन संयंत्रों में ईंधन के दहन द्वारा उष्मीय ऊर्जा उत्पन्न कि जाती है जिसे विद्युत ऊर्जा में रूपांतरित किया जाता है | इसलिए इसे तापीय विद्युत संयंत्र कहते है |

•बहुत से तापीय संयंत्र के कोयले तथा तेल के क्षेत्रों के निकट ही स्थापित इसलिए किये जाते है ताकि समान दूरियों तक कोयले तथा पेट्रोलियम के परिवहन कि तुलना में विद्युत संचरण अधिक दक्ष हो |

3. जल विद्युत संयंत्र :

•जल विद्युत संयंत्र में बहते जल कि गतिज ऊर्जा अथवा किसी ऊँचाई पर स्थित जल की स्थितिज ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में रूपांतरित किया जाता है |

•ऐसे जल-प्रपातों कि संख्या बहुत कम है इसलिए कृत्रिम जल प्रपात का निर्माण किया जाता है जिसमें नदियों या जलाशयों की बहाव को रोककर बड़े जलाशयों (कृत्रिम झीलों) में जल को एकत्र करने के लिए बड़े-बड़े बांध बनाए जाते हैं | जब इसमें जल का स्तर ऊँचा हो जाता है तो पाइप द्वारा जल की धार से बांध के आधार के पास स्थापित टरबाइन के ब्लेड को घुमाया जाता है जिससे जनित्र द्वारा विद्युत उत्पादन होता है | 

बांध निर्माण एवं उससे समस्याएँ :

•टिहरी बांध तथा सरदार सरोवर बांध जिसकी निर्माण परियोजना का विरोध हुआ था |

•बाँधों के टूटने पर भयंकर बाढ़ आने का खतरा रहता है |

•इससे पेड़-पौधे, वनस्पति आदि जल में डूब जाते हैं वे अवायवीय परिस्थितियों में सड़ने लगते हैं और विघटित होकर विशाल मात्र में मीथेन गैस उत्पन्न करता है जो कि एक ग्रीन हाउस गैस है |

​* बाँधों के निर्माण से होने वाले नुकसान :

(i) बाँधों के निर्माण से बहुत से कृषि योग्य भूमि नष्ट हो जाती है |

(ii) मानव आवास नष्ट हो जाते हैं |

(iii) आस-पास के लोगों एवं जीव जंतुओं को विस्थापित होना पड़ता है जिससे उनके पुनर्वास कि समस्या उत्पन्न हो जाती है |

(iv) इससे पारिस्थितिक तंत्र को नुकसान पहुँचता है |

* ऊर्जा के पारंपरिक स्रोतों के लिए प्रोद्योगिकी में सुधार:

ऊर्जा के पारंपरिक स्रोतों के लिए प्रोद्योगिकी में सुधार के क्रम में दो प्रमुख प्रौद्योगिकी प्रचलित है जो निम्न है :

(i) जैव-मात्रा (बायो-मास)

(ii) पवन ऊर्जा

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