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Thursday 10 November 2016

* विद्युत आवेश

* विद्युत आवेश

घर्षणीक विद्युत (Frictional electricity): रगड़ या घर्षण से उत्पन्न विद्युत को घर्षणीक विद्युत कहते हैं |

विद्युत आवेश (Electric charge): विद्युत आवेश दो प्रकार के होते हैं |

1. धन आवेश (Positive charge): कांच कि छड को जब रेशम के धागे से रगडा जाता है तो इससे प्राप्त आवेश को धन आवेश कहते हैं |

2. ऋण आवेश (Negative charge): एबोनाईट कि छड को ऊन के धागे से रगडा जाता है तो इस प्रकार प्राप्त आवेश को ऋण आवेश कहा जाता है | 

• इलेक्ट्रानों कि कमी के कारण धन आवेश उत्पन्न होता है |

• इलेक्ट्रानों कि अधिकता से ऋण आवेश उत्पन्न होता है |

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Wednesday 9 November 2016

Starting Msword (msword को शुरू करना)

Starting Msword (msword को शुरू करना)

word_Starting Msword (msword को शुरू करना) स्टार्ट एम एस वर्ड,स्टेटस बार,रूलर बार,फारमैेटिग टुल बार,मेनूबार और टाइटिल बार आदि

Starting Msword (msword को शुरू करना):-

Msword को हम तीन तरीके से open कर सकते है।

(1) start->all program->msword पर mouse का left Button click कर
(2) start -> Run …पर click करने पर एक dialog box open होता है। उसमें name को आगें Box esa winwood type कर ok Botton पर click करने कर
(3) disktop window पर मौजूद msword के  shortcut icon पर click करने पर लेकिन किसी भी तरीके से open करे msword की main window

इस प्रकार दिखेगी जिसका चित्र नीचे दिया गया है।

Title bar (टाइटिल बार):- इस विन्डो में सबसे ऊपर टाइटिल बार होता  है। जिसमें applcation का Logo, document का नाम, application का नाम और तीन control botton  दिखायी देता है।

Menu Bar (मेनूबार):-  इस विन्डो में title bar के नीचे menu bar दिखायी देता है। menu के अन्दर options पाये जाते है। option का प्रयोग कर कम्प्युटर को दिशा निर्देश दिया जाता है। options (commands) को उनके working behavour के अनुसार categorize कर दिया जाता है। जिन्हे मेनू(menu) कहते है

Standard Tool Bar :- यह tool bar menu bar के नीचे होता है इसमें commands icons के रूप में दिखायी देती है जिनको user देख कर अपने अनुसार प्रयोग कर सकता है। इसमें उन commandss को icons के रूप में दिखाया जाता है। जिन्हे user प्रायः use करता है।

जैसे कि new, open, save etc. 

Formatting Tool Bar (फारमैेटिग टुल बार):-  यह बार सामान्यतः standard tool bar के नीचे होता है। इसमें document को formatting से सम्बन्धित commands icons के रूप में दी होती हैं जिनको use कर document का appearance  बदल सकते है।

Ruler Bar (रूलर बार):- यह बार format bar से नीचे एवं page के ठीक ऊपर होता है। इसका प्रयोग Tab setting एवं text indentation के लिए प्रयोग करते है।

Status Bar (स्टेटस बार):- यह बार विन्डो के सबसे नीचे स्थिति होता है। यह document की current position को बताता है।

Details Of Menu :- menu के अन्दर commonds  पायी जाती है। जिन्हे options कहते है। options के कार्य प्रकति के अनुसार अलग-अलग menu के नाम से grouping कर दिया जाता है। जैसे कि file menu, edit menu ,
vew menu & insert menu etc.

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एम.एस.वर्ड

एम.एस.वर्ड

जैसे ही आप 2007 Microsoft Office सिस्टम स्थापित और सक्रिय करते हैं, निर्देश और जानकारी स्वचालित रूप से प्रस्तुत या उपलब्ध होते हैं। पहली बार वर्ड 2007 खोलने पर आप उसकी नई दिखावट से आश्चर्यचकित हो सकते हैं|

अधिकांश परिवर्तन रिबन में ही हैं, जो कि Word के शीर्ष पर एक विस्तृत क्षेत्र है।रिबन प्रचलित आदेशों को सामने लाता है, ताकि आपको बार-बार किए जाने वाले कार्यों के लिए प्रोग्राम के विभिन्न भागों में न ढूँढना पढ़ें। आखिर बदलाव क्यों हैं ? जी हमारा उत्तर ये होगा कि आपके कार्य को आसान और शीघ्र बनाना रिबन का उपयोग अनुभवों के गहन शोद के बाद डिज़ाइन किया गया है जिसे माइक्रो सॉफ्ट के कार्य कर्ताओं ने बहुत ही सुन्दर तरीके से सजाया है। एम्.एस.वर्ड को ओपन करने के लिए टास्क बार पर बने बटन पर माउस से बाये बटन से क्लिक करें उसके बाद या तो रन कमांड में winword लिखे या प्रोग्रामस में जाएँ फिर दायें तीर के निशान कि और बड़ते हुए माइक्रोसॉफ्ट ऑफिस में एम् एस वर्ड का चुनाव कर एंटर कुंजी दबाएँ या बाएं बटन से क्लिक करे।

इस अध्याय में आपको रिबन के बारे में अधिक जानकारी देने का प्रयास किया गया है, ताकि आप आसनी से उसे समज सके। रिबन के तीन भाग Tab(टैब्ज़), Group(समूह), और Comments(टिप्पणियाँ )हैं.रिबन पर ये तीन मूल घटक होते हैं. यह जानना अच्छा है कि प्रत्येक क्या कहलाता है ताकि आप समझ सकें कि इसे कैसे उपयोग करना हैं| ØTab शीर्ष पर सात मूल घटक हैं. प्रत्येक किसी कार्य क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करता है| ØGroup. टैब में कई समूह है जो कि संबंधित आयटम्स को एक साथ दिखाता हैं| ØComment. में कोई आदेश एक बटन, जानकारी दर्ज करने के लिए बॉक्स, या मेनूहोता हैं| टैब पर प्रत्येक वस्तु, उपयोगकर्ता की गतिविधियों के अनुसार सावधा‍नीपूर्वक चयन की गई है. उदाहरण के लिए, home टैब पर आपके द्वारा अधिकांश उपयोग की जाने वाली सभी चीजें होती हैं, जैसे पाठ फ़ॉन्ट बदलने के लिए फ़ॉन्ट समूह में आदेश: जेसे कट, कॉपी, पेस्ट फॉर्मेट पेंटर, फ़ॉन्ट आकार, बोल्ड, इटैलिक, अन्डरलाइन और अन्य। जब हम वर्ड ओपन करते हनीं तो हमे सब से पहले ये स्क्रीन नजर आता है । यहाँ पर सबसे ऊपर बाएं कोने में एक गोल बटन नजर आता है जिसे ऑफिस बटन कहते हैं जिसका उपयोग आप एक नई फाइल बनाने में एक मौजूदा फ़ाइल को खोलने, एक फ़ाइल को बचाने के लिए, और कई अन्य कार्य करने के लिए मेनूका उपयोग कर सकते हैं.

और उस के पास में तीन बटन वाला एक छोटा सा बॉक्स जिसे त्वरित पहुँच उपकरण पट्टी(quick access toolbar) कहते हैं जिसका उपयोग आप अपनी फाइल को सुरक्षित करने के लिए आपके द्वारा लिए गए कार्य को पूर्ववत करने, और कार्य को वापस लेने के लिए होता है। ऑफिस बटन के पास एक तीर का चीन नजर आता है, जिसे त्वरित पहुँच उपकरण पट्टी अनुकूलित (customize quick access toolbar) कहते हैं। इस तीर के चिन्न से हम इस पट्टी पर और बटन लगा या हटा सकते हैं। यहाँ सब ले पहले होम टैब में हम कट कॉपी पेस्ट आदि के बारे में जानेंगे जेसा कि आप पहले पेंट, नोटपैड, में पढ़ा वेसे ही यहाँ पर भी है परन्तु यहाँ पर होम तब में तीन और नहीं चीज देखने को मिलेंगी 1. पेस्ट में paste as hyperlink, 2. format painter, 3. clipboard. यहाँ सब का वर्णन निचे दिया गया है देखे - सब से पहले हम वर्ड की एक नयी फाइल ओपन करते हैं और उसमे कुछ लिखते हैं फिर लिखे हुए टेक्स्ट को सेल्लेक्ट करने के बाद होम टेब में कट बटन का उपयोग करते है तो हमारा वह लेख जिसे हमने सेल्लेक्ट किया है वो उस जगह से हट जाता है और क्लिप बोर्ड में सेव हो जाता है।

वहां से हम इसे जहाँ चाहे वहां पेस्ट कर सकते हैं पेस्ट का मतलब चिपकाना होता है ठीक इसी प्रकार जब हम सेल्लेक्ट डाटा को कॉपी करते है तो वो भी क्लिपबोर्ड में सुरक्षित हो जाता है परन्तु जेसे कट कमांड से डाटा उस जगह से हट गया था यहाँ वह नहीं हटता नहीं है। क्लिपबोर्ड में वही डाटा रहता है जो हमने बाद में किया है जेसे कॉपी वाला डाटा अब क्लिपबोर्ड में रहेगा। अर्थात ØCut (Ctrl+X) :- इस कमांड का प्रयोग सेलेक्ट किये हुए Matter को हटाकर Clipboard में रखने के लिए किया जाता है] जेसा की आपने पहले पेंट]नोटपैड या वर्डपैड में पढ़ा परन्तु यहाँ पर हम क्लिपबोर्ड को प्रत्यक्ष देख सकते है।

ØCopy (Ctrl+C) :- इस कमांड का प्रयोग सेलेक्ट Matter को Clipboard में Copy करने के लिए किया जाता है।

ØPaste (Ctrl+V) :- इस कमांड का प्रयोग Clipboard में रखे हुए Text को अपने फाइल में Top Left Side es Paste किया जा सकता है। यदि आवश्यकता हो तो जहाँ पर आप ने कर्सर रखा है वहां पर भी ये Paste किया जा सकता है।

ØPaste Special:- इस कमांड के प्रयोग से Cut या Copy वाला Matter कुछ अन्य तरीके से (जैसे पिक्चर फॉर्मेट) Paste किया जाता है। जैसे ही हम Paste Special Option पर क्लिक करते है एक Dialog Box Open होता है जैसे निचे चित्र में दिखाया गया है। यहाँ इसमें किसी भी आप्शन को चुनकर OKबटन पर क्लिक करते है तो वह Matter जो हमने कट या कॉपी किया था वह चुने हुए फॉर्मेट में पेस्ट हो जाएगा।

ØPaste as Hyperlink(Ctrl+Shift+C):- इस कमांड के द्वारा जब हम कोई हाइपर लिंक बनते है और उस लिंक से जब वो फाइल खोलते है तो उस फाइल से जो भी डाटा कॉपी होता है उस को हम paste as hyperlink कर सकते है यानि कॉपी वाला डाटा भी यहाँ पर लिंक बन जाता है। इस का उपयोग हम बार बार हाइपर लिंक न बनाना पड़े इस लिए उस को एक बार उसे करते हैं।

ØFormat Painter(Ctrl+Shift+C):- इस कमांड के प्रयोग से किसी भी शब्द, वाक्य आदि में जो भी डिजाईन आप ने दी है वो किसी दुसरे शब्द, वाक्य पर लगा सकते हो। ये कॉपी जेसा ही है परन्तु अंतर ये है कि कॉपी से डाटा पूरा का पूरा छप जाता यदि हम किसी एक अक्षर, शब्द या वाक्य पर उसे लगाना चाहें तो, जबकि फॉर्मेट पेंटर से केवल उस शब्द पर फॉर्मेट ही आता है न की पूरा शब्द जो हमने सेलेक्ट किया है। नोट:- ­Paste कमांड तभी काम करेगी जब Matter Cut या Copy किया हुआ होता है। तथा ऑफिस 2010 या 2013 में यहाँ पेस्ट में इस तरह ही एक और छोटी विन्डियो नजर आती है इस में जो आप्शन दिए गए है उसे हम बाद में पढेंगे।


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Tuesday 8 November 2016

* प्रकाश के प्रकीर्णन से होने वाली परिघटनाएं :

* प्रकाश के प्रकीर्णन से होने वाली परिघटनाएं :

1. स्वच्छ आकाश का नीला दिखाई देना :

जब सूर्य का प्रकाश वायुमंडल से गुजरता है, वायु के सूक्ष्म कण लाल रंग की अपेक्षा नीले रंग (छोटी तरंगदैर्घ्य) को अधिक प्रबलता से प्रकीर्ण करते हैं। प्रकीर्णित हुआ नीला प्रकाश हमारे नेत्रों में प्रवेश करता है। तो हमें आकाश नीला दिखाई देता है |

2. अंतरिक्ष यात्रियों को आकाश काला दिखाई देना :

जहाँ वायुमंडल नहीं है वहाँ कण नहीं जहाँ कण नहीं वहाँ प्रकाश का प्रकीर्णन नहीं | यदि हमारी पृथ्वी पर वायुमंडल न होता तो कोई प्रकीर्णन न हो पाता | तब पृथ्वी से भी आकाश काला ही प्रतीत होता है | अत्याधिक ऊँचाई पर वायुमंडल नहीं होने के कारण प्रकाश का प्रकीर्णन नहीं हो पाता है जहाँ प्रकीर्णन नहीं होता है वहाँ प्रकाश का मार्ग दिखाई नहीं देता, काला दिखाई देता है | यही कारण है कि अंतरिक्ष यात्रियों को आकाश काला दिखाई देता है |

3. गहरे समुद्र का जल का रंग नीला दिखाई देना :

जब सूर्य का प्रकाश समुद्र के तल पर पड़ता है तो समुद्र का जल नीले रंग की अपेक्षा लाल, पीला संतरी आदि रंगों को अधिक तेजी से सोंखता है और अधिकांश नीले रंग वापस आ जाता है अर्थात नीले रंग का प्रकीर्णन हो जाता है | यही कारण है कि समुद्र का जल नीला दिखाई देता है |

4. सूर्योदय तथा सूर्यास्त के समय सूर्य का रक्ताभ दिखाई देना :

क्षितिज के समीप स्थित सूर्य से आने वाला प्रकाश हमारे नेत्रों तक पहुँचने से पहले पृथ्वी के वायुमंडल में वायु की मोटी परतों से होकर गुजरता है | जब सूर्य सिर से ठीक ऊपर हो तो सूर्य से आने वाला प्रकाश बहुत कम दुरी तय करता है, यह तब होता है जब सूर्य क्षितिज पर हो | क्षितिज के समीप नीले तथा कम तरंगदैर्घ्य के प्रकाश का अधिकांश भाग कणों द्वारा प्रकीर्ण हो जाता है। इसीलिए, हमारे नेत्रों तक पहुँचने वाला प्रकाश अधिक तरंगदैर्घ्य का होता है अर्थात लाल रंग का होता है | यही कारण है कि सूर्योदय या सूर्यास्त के समय सूर्य रक्ताभ प्रतीत होता है।

खतरे के सिग्नल में लाल रंग का उपयोग : लाल रंग तरंगदैर्ध्य अन्य रंगों की तुलना में अधिक होता है | लाल रंग का तरंगदैर्ध्य नीले रंग की अपेक्षा लगभग 1.8 गुना अधिक होता है | लाल रंग कुहरे या धुंएँ से सबसे कम प्रकीर्ण होता है और तरंगदैर्ध्य अधिक होने के कारण इस रंग का प्रकाश अधिक दूर तक जाता है | यह दूर से देखने पर भी लाल रंग का ही दिखाई देता है |

नोट: जिन वर्णों का प्रकीर्ण हो जाता है वह वर्ण दिखाई नहीं देता है और जिस वर्ण का प्रकीर्णन नहीं होता है वह बना रहता है और दिखाई देता है |

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* प्रकाश का प्रकीर्णन :

* प्रकाश का प्रकीर्णन :

प्रकाश जिस मार्ग से होकर गुजरता है यदि उस माध्यम में कोलाइडल विलयन के कण हो तो वे कण प्रकाश को प्रकीर्णित (फैलाना) कर देते है | इसे ही प्रकाश का प्रकीर्णन कहते है |

प्रकाश के प्रकीर्णन से होने वाली परिघटनाओं का उदाहरण : प्रकाश के प्रकीर्णन से होने वाली बहुत सी परिघटनाएं होती रहती हैं जो हमें देखने को मिलती हैं | जैसे -

आकाश का नीला रंग, गहरे समुद्र के जल का रंग, सूर्योदय तथा सूर्यास्त के समय सूर्य का रक्ताभ दिखाई देना आदि |

टिंडल प्रभाव (Tyndal Effect) : जब कोई प्रकाश किरण पुंज ऐसे महीन कणों से टकराता है तो उस किरण पुंज का मार्ग दिखाई देने लगता है। इन कणों से विसरित प्रकाश परावर्तित होकर हमारे पास तक पहुँचता है। कोलॉइडी कणों द्वारा प्रकाश के प्रकीर्णन की परिघटना को टिंडल प्रभाव कहते हैं |

संक्षेप में, कोलाइडली कणों द्वारा गुजरने वाले प्रकाश के मार्ग को कोलाइडल के कण दृश्य बना देते है, प्रकाश के मार्ग को फैलने की इस परिघटना को टिंडल प्रभाव कहते हैं |

* टिंडल प्रभाव के उदाहरण :

1. जब धुंएँ से भरे किसी कमरे में किसी सूक्ष्म छिद्र से कोई पतला प्रकाश किरण पुंज प्रवेश करता है तो इस परिघटना को देखा जा सकता है।

2. जब किसी घने जंगल के वितान (canopy) से सूर्य का प्रकाश गुजरता है तो टिंडल प्रभाव को देखा जा सकता है।

3. जंगल के कुहासे में जल की सूक्ष्म बूँदें प्रकाश का प्रकीर्णन कर देती हैं।

ये सभी घटनाएँ कोलाइडल विलयन की उपस्थिति के कारण हमें टिंडल प्रभाव दिखाई देता है | कोलाइडल विलयन के उदाहरण हैं |

वायु, धूम, कोहरा, दूध, धुँआ, जेली, क्रीम इत्यादि |

कोलाइडल विलयन के कण वास्तविक विलयन से बड़े होते है जो देखे जा सकते हैं | जबकि वास्तविक विलयन के कण एक समान होने के कारण इन्हें अलग-अलग पहचाना नहीं जा सकता है, यही कारण है कि टिंडल प्रभाव के दौरान कोलाइडल विलयन के कण दिखाई देते हैं |

बिना कण के प्रकाश का प्रकीर्णन नहीं होता है, अर्थात जहाँ ये कण मौजूद नहीं है वहाँ प्रकीर्णन नहीं होता है जैसे निर्वात, जिसका उदाहरण है अंतरिक्ष में प्रकाश का प्रकीर्णन नहीं होता है | यही कारण है कि अन्तरिक्ष यात्रियों को आकाश काला दिखाई देता है क्योकि वहाँ प्रकाश प्रकीर्णित नहीं होता है |

किसी वास्तविक विलयन से गुशरने वाले प्रकाश किरण पुंज का मार्ग हमें दिखाई नहीं देता। तथापि, किसी कोलॉइडी विलयन में जहाँ कणों का साइज़ अपेक्षाकृत बड़ा होता है, यह मार्ग दृश्य होता है।

* प्रकीर्णित प्रकाश का रंग को प्रभावित करने वाला कारक :

1. प्रकीर्णित प्रकाश का वर्ण, प्रकीर्णन करने वाले कणों के साइज़ पर निर्भर करता है।

* प्रकाश के वर्णों का तरंगदैर्ध्य :

इसके लिए प्रकाश के विभिन्न वर्णों पर विचार करना होगा, प्रिज्म द्वारा बने प्रकाश के विभिन्न अव्यवी वर्णों के विषय में हम जान चुके है | हमने वहाँ देखा कि जिस वर्ण का तरंगदैर्ध्य सबसे अधिक है वह कम झुकता है और जिसका सबसे कम है वह वर्ण सबसे अधिक के कोण पर झुकता है | लाल रंग सबसे कम झुकता है अर्थात लाल रंग की तरंगदैर्ध्य सबसे अधिक होता है,  श्वेत प्रकाश को छोड़कर | नीला प्रकाश का तरंगदैर्ध्य कम होता है इसलिए यह लाल, पीला, हरा आदि की तुलना में अधिक झुकता है |

कौन-सा रंग अधिक प्रकीर्णित होता है और कौन-सा रंग कम :

अत्यंत सूक्ष्म कण मुख्य रूप से नीले प्रकाश को प्रकीर्ण करते हैं जबकि बड़े साइज़ के कण अधिक तंरगदैर्घ्य के प्रकाश को प्रकीर्ण करते हैं। यदि प्रकीर्णन करने वाले कणों का साइज़ बहुत अधिक है तो प्रकीर्णित प्रकाश श्वेत भी प्रतीत हो सकता है।

यहाँ हम देखते है छोटे कण कम तरंगदैर्ध्य के रंग को प्रकीर्णित करता है और जैसे-जैसे कणों का आकार बढ़ता जाता है ये कण अधिक तरंगदैर्ध्य के रंग को प्रकीर्णित करता है | श्वेत प्रकार का तरंगदैर्ध्य  लाल रंग से भी अधिक होता है |

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* प्राकृतिक परिघटनाएं एवं वायुमंडलीय अपवर्तन

* प्राकृतिक परिघटनाएं एवं वायुमंडलीय अपवर्तन

प्राकृतिक परिघटनाएं (Natural Phenomenons) : हमारे आसपास बहुत सी घटनाएँ होती रहती हैं , जो कुछ प्राकृतिक कारणों से होती हैं |  ऐसी घटनाओं को प्राकृतिक परिघटनाएं कहा जाता है | जैसे - इन्द्रधनुष का बनाना, आकाश में तारों का टिमटिमाना, आकाश का नीला दिखाई देना, सूर्योदय एवं सूर्यास्त के समय सूर्य का रक्ताभ प्रतीत होना इत्यादि |

पूर्ण आतंरिक परावर्तन (Total Internal Reflection) : पूर्ण आतंरिक परावर्तन एक प्रकाशीय परिघटना है जिसमें प्रकाश की किरण किसी माध्यम के तल से ऐसे कोण से आपतित होती है कि अपवर्तन के बाद उसका परावर्तन उसी माध्यम में हो जाता है जिस माध्यम से वह आई होती है | इसे ही पूर्ण आतंरिक परावर्तन कहते हैं |

क्रांतिक कोण (Critical Angle) : वह आपतन कोण जिसका अपवर्तन कोण का मान 90o या उससे अधिक हो | क्रांतिक कोण कहलाता है |

* किसी माध्यम में पूर्ण आतंरिक परावर्तन होने कि शर्त :

(i) प्रकाश कि किरण अधिक अपवर्तनांक से कम अपवर्तनांक के माध्यम की ओर प्रवेश करे अर्थात सघन माध्यम से विरल माध्यम की ओर प्रवेश करे |

(ii) आपतन कोण का मान क्रांतिक कोण से अधिक हो | 

* वायुमंडलीय अपवर्तन (Atmospheric Refraction): हमारे वायुमंडल में वायु की समान्यत: दो परतें हैं एक गर्म वायु की तथा दूसरी ठंठी वायु की, जो मिलकर दो भिन्न-भिन्न अपवर्तनांकों की माध्यम बनाती है | गर्म वायु हल्की होती है जो ऊपर उठ जाती है और ठंठ वायु जो थोड़ी भारी होती है वह पृथ्वी कि सतह की ओर रहती है | ठंठ वायु सघन माध्यम का कार्य करता है और गर्म वायु बिरल माध्यम का कार्य करता है | इससे होकर गुजरने वाली प्रकाश की किरण में अपवर्तन होता है इसे ही वायुमंडलीय अपवर्तन कहते हैं |

• पृथ्वी के वायुमंडल के कारण होने वाले प्रकाश के अपवर्तन को वायुमंडलीय अपवर्तन कहते हैं |

• गरम वायु में से होकर देखने पर वस्तु की आभासी स्थिति परिवर्तित होती रहती है।

• वायुमंडलीय अपवर्तन के कारण बहुत सी परिघटनाएं होती रहती है जैसे- तारों, का टिमटिमाना, अग्रिम सूर्योदय में सूर्य की आभासी स्थित दिखाई देना इत्यादि |

• ऊपर से जैसे-जैसे हम पृथ्वी की सतह की ओर बढ़ते जाते है वायु का अपवर्तनांक बढ़ता जाता है |

वायुमंडलीय अपवर्तन का कारण: पृथ्वी के वायुमंडल के कारण होने वाले प्रकाश का अपवर्तन |

* तारों का टिमटिमाना (Twinkling of stars) :  तारों के प्रकाश के वायुमंडलीय अपवर्तन के कारण ही तारे टिमटिमाते प्रतीत होते हैं। पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करने के पश्चात पृथ्वी के पृष्ठ पर पहुँचने तक तारे का प्रकाश निरंतर अपवर्तित होता जाता है। वायुमंडलीय अपवर्तन उसी माध्यम में होता है जिसका क्रमिक परिवर्ती अपवर्तनांक हो। क्योंकि वायुमंडल तारे के प्रकाश को अभिलंब की ओर झुका देता है, अतः तारे की आभासी स्थिति उसकी वास्तविक स्थिति से कुछ भिन्न प्रतीत होती है। अतः तारे की आभासी स्थिति विचलित होती रहती है तथा आँखों में प्रवेश करने वाले तारों के प्रकाश की मात्रा झिलमिलाती रहती है  -जिसके कारण कोई तारा कभी चमकीला प्रतीत होता है तो कभी धुँधला, जो कि टिमटिमाहट का प्रभाव है।

ग्रहों का टिमटिमाते हुए नहीं दिखाई देना : ग्रह तारों की अपेक्षा पृथ्वी के बहुत पास हैं और इसीलिए उन्हें विस्तृत स्रोत की भाँति माना जा सकता है। यदि हम ग्रह को बिंदु-साइश के अनेक प्रकाश स्रोतों का संग्रह मान लें तो सभी बिंदु साइश के प्रकाश-स्रोतों से हमारे नेत्रों में प्रवेश करने वाले प्रकाश की मात्रा में कुल परिवर्तन का औसत मान शून्य होगा, यही कारण है कि ग्रह टिमटिमाते हुए दिखाई नहीं देते हैं |

सुर्योदय होने के पहले एवं सुयास्त होने बाद भी सूर्य का दिखाई देना :

पृथ्वी के उपर वायुमंडल में जैसे - जैसे हम ऊपर जाते हैं, वायु हल्की होती जाती हैं । सुर्योदय होने के पहले एवं सुर्यास्त होने बाद सूर्य से चलने वाली किरणें पूर्ण आंतरिक परावर्तित  होकर हमारी आँख तक पहुँच जाती हैं । जब हम इन किरणों को सीधा देखते हैं तो हमें सूर्य की अभासी प्रतिबिम्ब क्षैतिज से उपर दिखाई देता है जबकि सूर्य उस समय वास्तव में क्षितिज से नीचे होता है |

* वास्तविक सूर्योदय : वास्तविक सूर्योदय का अर्थ है सूर्य का वास्तव में क्षितिज को पार करना |

* सूर्य की आभासी स्थिति : इस स्थिति में सूर्य अपने वास्तविक स्थान से थोडा उठा हुआ नजर आता है | जो वास्तव में सूर्य की स्थिति नहीं होती है | इसे ही सूर्य कि आभासी स्थित कहते हैं |

यह घटना भी ठीक उसी तरह होता है जब हम किसी शीशे की गिलास में पानी डालकर एक सिक्के को देखते है तो वह सिक्का अपने वस्तविक स्थान से थोडा उठा हुआ नजर आता है |

* इन्द्रधनुष का बनना : वर्षा होने के पश्चात् ही हमें इन्द्रधनुष दिखाई देता है | इन्द्रधनुष आकाश में जल की सूक्ष्म बूंदों में दिखाई देने वाला स्पेक्ट्रम है | जब जल की किसी बूंद से होकर सूर्य का प्रकाश गुजरता है तो प्रकाश का परिक्षेपण होने के कारण इन्द्र धनुष बनता है | जिसमें सूर्य के आपतित प्रकाश को ये बूँदें अपवर्तित तथा विक्षेपित करती हैं, तत्पश्चात इसे आंतरिक परावर्तित करती हैं, अंततः जल की बूँद से बाहर निकलते समय प्रकाश को पुनः अपवर्तित करती हैं | तो इस स्थिति में जल की वह बूंद प्रिज्म की भांति कार्य करता है और परिमाण स्वरुप सूर्य की विपरीत दिशा में इन्द्रधनुष बनता है |

• जल की बुँदे प्रिज्म की भांति कार्य करती हैं |

• वर्षा होने के पश्चात् ही हमें इन्द्रधनुष दिखाई देता है |

• इन्द्रधनुष आकाश में जल की सूक्ष्म बूंदों में दिखाई देने वाला स्पेक्ट्रम है |

• यह हमेशा सूर्य की विपरीत दिशा में बनता है |

• यह प्रकाश के परिक्षेपण के कारण होता है |

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* प्रिज्म से प्रकाश का अपवर्तन

* प्रिज्म से प्रकाश का अपवर्तन

प्रकाश का अपवर्तन (Refraction of Light): जब कोई प्रकाश की किरण एक माध्यम से दुसरे माध्यम में प्रवेश करती है तो यह अपने मार्ग से विचलित हो जाती है इसे ही प्रकाश का अपवर्तन कहते है | 

प्रिज्म (Prizm): यह एक तिकोना काँच का स्लैब होता है जिसके दो त्रिभुजाकार आधार तथा तीन आयताकार पार्श्व पृष्ठ होते हैं | ये पृष्ठ एक दुसरे पर झुके होते हैं |

प्रिज्म कोण (Angle of Prizm): इसके दो पार्श्व फलकों के बीच के कोण को प्रिज्म कोण कहते हैं |

काँच के त्रिभुजाकार प्रिज्म से प्रकाश का अपवर्तन

PE - आपतित किरण

EF - अपवर्तित किरण

FS - निर्गत किरण

∠A, ∠B, ∠C - प्रिज्म कोण

∠D - विचलन कोण

∠i - आपतन कोण

∠r - अपवर्तन कोण

∠e - निर्गत कोण

प्रिज्म द्वारा प्रकाश का अपवर्तन : यहाँ PE आपतित किरण है, EF अपवर्तित किरण है तथा FS निर्गत किरण है। आप देख सकते हैं कि पहले पृष्ठ AB पर प्रकाश की किरण वायु से काँच में प्रवेश कर रही है। अपवर्तन वेफ पश्चात प्रकाश की किरण अभिलंब की ओर मुड़ जाती है। दूसरे पृष्ठ AC पर, प्रकाश की किरण काँच से वायु में प्रवेश करती है, तो प्रकाश कि किरण अभिलंब से दूर भागती है |

प्रिज्म भी काँच के घनाकार स्लैब की तरफ अपवर्तन के सभी नियमों का पालन करता है |

स्पेक्ट्रम : जब सूर्य का श्वेत प्रकाश किसी प्रिज्म से होकर गुजरता है तो विभिन्न वर्णक्रमों में विभाजित हो जाता है | प्रकाश के अवयवी वर्णों के इस बैंड को स्पेक्ट्रम कहते हैं |

इस वर्णक्रम को VIBGYOR से दर्शाया जाता है ताकि इनका क्रम याद रखने में सहायक हो |

बैगनी (violet), जमुनी (Indigo), नीला (blue), हरा (green), पीला (yellow), नारंगी (orange) तथा लाल (red) |

विक्षेपण : प्रकाश के अवयवी वर्णों में विभाजन को विक्षेपण कहते हैं |

श्वेत प्रकाश: कोई भी प्रकाश जो सूर्य के प्रकाश के सदृश स्पेक्ट्रम बनाता है, प्रायः श्वेत प्रकाश कहलाता है।

स्पेक्ट्रम प्राप्त करने के लिए सर आइजक न्यूटन का प्रयोग :

आइजक न्यूटन ने सर्वप्रथम सूर्य का स्पेक्ट्रम प्राप्त करने के लिए काँच के प्रिज़्म का उपयोग किया। एक दूसरा समान प्रिज़्म उपयोग करके उन्होंने श्वेत प्रकाश के स्पेक्ट्रम के वर्णों को और अधिक विभक्त करने का प्रयत्न किया। किन्तु उन्हें और अधिक वर्ण नहीं मिल पाए। फिर एक दूसरा सर्व सम प्रिज़्म पहले प्रिज्म के सापेक्ष उलटी स्थिति में रखा। इससे स्पेक्ट्रम के सभी वर्ण दूसरे प्रिज़्म से होकर गुशरे। उन्होंने देखा कि दूसरे प्रिश्म से श्वेत प्रकाश का किरण पुंज निर्गत हो रहा है। इस प्रेक्षण से न्यूटन को यह विचार आया कि सूर्य का प्रकाश सात वर्णों से मिलकर बना है।

• न्यूटन के इस प्रयोग के आधार पर हम कह सकते है कि सूर्य का प्रकाश सात वर्णों से मिलकर बना है |

• श्वेत प्रकाश प्रिश्म द्वारा इसके सात अवयवी वर्णों में विक्षेपित हो जाता है।

• किसी प्रिश्म से गुशरने के पश्चात, प्रकाश के विभिन्न वर्ण, आपतित किरण के सापेक्ष अलग-अलग कोणों पर झुकते (मुड़ते) हैं।

• लाल प्रकाश सबसे कम झुकता है जबकि बैंगनी सबसे अधिक झुकता है।

• आइजक न्यूटन ने सर्वप्रथम सूर्य का स्पेक्ट्रम प्राप्त करने के लिए काँच के प्रिज़्म का उपयोग किया।

• एक दूसरा समान प्रिज़्म उपयोग करके उन्होंने श्वेत प्रकाश के स्पेक्ट्रम के वर्णों को और अधिक विभक्त करने का प्रयत्न किया।

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