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Thursday, 10 November 2016

* दक्षिण हस्त अंगुष्ठ नियम :

* दक्षिण हस्त अंगुष्ठ नियम :

कल्पना कीजिए कि आप अपने दाहिने हाथ में विद्युत धरावाही चालक को इस प्रकार पकड़े हुए हैं कि आपका अँगूठा विद्युत धरा की दिशा की ओर संकेत करता है, तो आपकी अँगुलियाँ चालक के चारों ओर चुंबकीय क्षेत्र की क्षेत्र रेखाओं की दिशा में लिपटी होंगी | इस नियम को दक्षिण-हस्त अंगुष्ठ नियम कहते हैं |

इस नियम को मैक्सवेल का कॉर्कस्क्रू नियम भी कहते हैं |

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* धारावाही चालक के चारो ओर चुम्बकीय क्षेत्र :

* धारावाही चालक के चारो ओर चुम्बकीय क्षेत्र :

(i) एक धातु चालक से होकर गुजरने वाली विद्युत धारा इसके चारों ओर चुम्बकीय क्षेत्र बनाता है |

(ii) जब एक धारावाही चालक को दिक्सूचक सुई के पास और उसके सुई के समांतर ले जाते है तो  विद्युत धारा की बहाव की दिशा दिकसुचक के विचलन की दिशा को उत्क्रमित कर देता है जो कि विपरीत दिशा में होता है |

(iii) यदि धारा में वृद्धि की जाती है तो दिक्सूचक के विचलन में भी वृद्धि होती हैं |

(iv) जैसे जैसे चालन में धारा की वृद्धि होती है वैसे वैसे दिए गए बिंदु पर उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र का परिमाण भी बढ़ता है |

(v) जब हम एक कंपास (दिक्सूचक) को धारावाही चालक से दूर ले जाते हैं तो सुई का विचलन कम हो जाता है |

(vi) तार में प्रवाहित विद्युत धारा के परिमाण में वृद्धि होती है तो किसी दिए गए बिंदु पर उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र के परिमाण में भी वृद्धि हो जाती है।

(vii) किसी चालक से प्रवाहित की गई विद्युत धरा के कारण उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र चालक से दूर जाने पर घटता है।

(viii) जैसे-जैसे विद्युत धरावाही सीधे चालक तार से दूर हटते जाते हैं, उसके चारों ओर उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र को निरूपित करने वाले संकेंद्री वृत्तों का साइज़ बड़ा हो जाता है।

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* चुम्बकीय क्षेत्र रेखाओं की विशेषताएँ :

* चुम्बकीय क्षेत्र रेखाओं की विशेषताएँ :

(i) चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ उत्तरी ध्रुव से निकलकर दक्षिणी ध्रुव में समाहित हो जाती है |

(ii) चुम्बक के अंदर, चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा इसके दक्षिणी ध्रुव से उत्तरी ध्रुव की ओर होता है |

(iii) चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ बंद वक्र होती हैं |

(iv) जहाँ चुम्बकीय क्षेत्र रेखाए घनी होती हैं वहाँ चुम्बकीय क्षेत्र मजबूत होता है |

(v) दो चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ कभी एक दुसरे को प्रतिच्छेद नहीं करती हैं |

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* चुम्बक के ध्रुव :

* चुम्बक के ध्रुव :

1. उत्तर दिशा की ओर संकेत करने वाले सिरे को उत्तरोमुखी ध्रुव अथवा उत्तर ध्रुव कहते हैं।

2. दूसरा सिरा जो दक्षिण दिशा की ओर संकेत करता है उसे दक्षिणोमुखी ध्रुव अथवा दक्षिण ध्रुव कहते हैं।

चुम्बकीय क्षेत्र : एक मैगनेट के चारों के क्षेत्र जिसमें चुम्बक का पता लगाया जा सकता है, चुम्बकीय क्षेत्र कहलाता है | 

चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ : चुम्बक के चारों ओर बहुत सी रेखाएँ बनती हैं, जो चुम्बक के उतारी ध्रुव से निकल कर दक्षिणी ध्रुव में प्रवेश करती प्रतीत होती हैं, इन रेखाओं को चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ कहते हैं |

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* विद्युत धारा का तापीय प्रभाव:

* विद्युत धारा का तापीय प्रभाव:

सेल के भीतर होने वाली रासायनिक अभिक्रिया सेल केदो टर्मिनलों के बीच विभवान्तर उत्पन्न करती है, जो बैटरी से संयोजित किसी प्रतिरोधक अथवा प्रतिरोधकों के किसी निकाय में विद्युत धारा प्रवाहित करने के लिए इलेक्ट्रानों में गति स्थापित करता है |

विद्युत धारा को बनाए रखने में अथवा साधित्रों/उपकरणों को कार्य करवाने में स्रोत कि ऊर्जा का कुछ भाग खर्च हो जाता है जबकि शेष ऊर्जा साधित्रों/उपकरणों के ताप को वृद्धि करने में खर्च हो जाता है | 

विद्युत धारा का तापीय प्रभाव: स्रोत की ऊर्जा का कुछ ही भाग उपयोगी कार्यों में उपयोग होता है | स्रोत का शेष ऊर्जा उस ऊष्मा को उत्पन्न करने में खर्च हो जाता है जो उस साधित्र/उपकरण कि ताप में वृद्धि करता है | इसे विद्युत का तापीय प्रभाव कहते हैं | 

जूल तापन का नियम: किसी प्रतिरोधक में उत्पन्न होने वाली ऊष्मा दिए गए प्रतिरोधक में प्रवाहित होने वाली विद्युत धारा के वर्ग के अनुक्रमानुपाती होती है एवं दी गयी विद्युत धारा के लिए प्रतिरोध और उस समय के अनुक्रमानुपाती होती है जिसके लिए दिए गए प्रतिरोध से विद्युत धारा प्रवाहित होती है | इस नियम को जूल तापन का नियम कहते हैं |

इसे H से सूचित करते हैं |

H = I2Rt

इस नियम से किसी साधित्र या प्रतिरोधक में विद्युत धारा के तापीय प्रभाव द्वारा उत्पन्न ऊष्मा को ज्ञात किया जाता है |

* इस नियम के अनुसार:

किसी प्रतिरोधक में उत्पन्न होने वाली ऊष्मा (H)

(i) प्रतिरोधक में प्रवाहित होने वाली विद्युत धारा (I) के वर्ग के अनुक्रमानुपाती होती है |

(ii) उस प्रतिरोध (R) के अनुक्रमानुपाती होती है |

(iii) समय (t) के अनुक्रमानुपाती होती है |

जूल तापन के नियम को अर्थात (H = I2Rt) को गणितीय स्तर पर समझते हैं :

मान लीजिए कि किसी प्रतिरोधक (R) में (t) समय के लिए यदि विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है एवं इसके दोनों सिरों के बीच विभवान्तर (V) है |

* विद्युत धारा के तापीय प्रभाव के कुछ अनुप्रयोग:

(1) विद्युत हीटर

(2) विद्युत इस्तरी

(3) विद्युत गीजर

(4) विद्युत टोस्टर

(5) विद्युत् बल्ब

नोट: उपरोक्त सभी साधित्र/उपकरण विद्युत धारा के तापीय प्रभाव के प्रयोग से चलायी जाती है |

विद्युत धारा के तापीय प्रभाव से विद्युत परिपथ के अवयवों पर प्रभाव :

(i) अवयवों के ताप में वृद्धि कर सकता है |

(ii) अवयवों के गुणों में परिवर्तन हो सकता है |

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मिश्रधातुओं के गुण :

मिश्रधातुओं के गुण :

(i) एलॉय जिस धातु से बने होते है उन धातुओं की तुलना में उनसे बने मिश्र धातुओं का गलनांक अधिक होता है |

(ii) मिश्रधातु ऊँच तापमान पर भी आसानी से इनका दहन नहीं होता है |

(iii) इनका गलनांक ऊँच होता है |

यही कारण है की मिश्रधातुओं का उपयोग सामान्यत: विद्युत तापक यंत्रों में किया जाता है, जैसे - विद्युत इस्त्री , टोस्टर इत्यादि |  विद्युत बल्बों की तंतु के लिए एकमात्र टंगस्टन का ही उपयोग किया जाता है | टंग्स्टन एक मिश्रधातु है जिसका गलनांक बहुत ही ऊँच होता है | जहाँ तांबा और एल्युमीनियम का सामान्य उपयोग विद्युत प्रवाह चालक के रूप में किया जाता है |

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* विद्युत परिपथ (Electric Circuit) :

* विद्युत परिपथ (Electric Circuit) :

किसी विद्युत धारा के सतत तथा बंद पथ को विद्युत परिपथ कहते हैं |

विद्युत का प्रवाह (The flow of the electricity):

आवेशों की रचना इलेक्ट्रोन करते हैं | विद्युत धारा को धनआवेशों का प्रवाह माना गया तथा धनावेश के प्रवाह की दिशा ही विद्युत धारा की दिशा माना गया | परिपाटी के अनुसार किसी

विद्युत परिपथ में इलेक्ट्रॉनों जो ऋणआवेश हैं, के प्रवाह की दिशा के विपरीत दिशा को विद्युत धारा की दिशा माना जाता है।

यदि किसी चालक की किसी भी अनुप्रस्थ काट से समय t में नेट आवेश Q प्रवाहित होता है तब उस अनुप्रस्थ काट से प्रवाहित विद्युत धारा I को इस प्रकार व्यक्त करते हैंः

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