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Monday, 25 April 2016

नाखून बहुत कुछ दर्शाता है

नाखून बहुत कुछ दर्शाता है

नाखूनों को सुन्दर और सजा-संवार कर रखने की बात यूं ही नहीं की जाती है। नाखून का आकार और इसका रूप रंग आपकी आर्थिक स्थिति और स्वाभव को भी दर्शाता है। जैसा की गरूड़ पुराण में बताया गया है कि जिसके नाखून पीले होते हैं उसके भाग्य मैं बच्चों का सुख नहीं होता। आइये जानिए ऐसी ही कुछ ऐसी ही हैरतअंगेज़ कर देने वाली बातें जो आप सिर्फ नाखून को देख कर जान सकते हैं !
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Saturday, 23 April 2016

शुभ हैं या अशुभ हाथ में छः उंगलियां

शुभ हैं या अशुभ हाथ में छः उंगलियां



शुभ या अशुभ हैं हाथ में छः अंगुलियां एक रहस्य नवीन राहूजा कहते हैं जिसके हाथ में छः अंगुलियां होती हैं, वह व्यक्ति बहुत भाग्यशाली होता है, परंतु कुछ लोग इसे एक अशुभ लक्षण भी मानते हैं। लेकिन वास्तव में छः अंगुलियां होने पर व्यक्ति को अपने जीवन में किस प्रकार के फल प्राप्त होते हैं, आईये, इस लेख के द्वारा देखते हैं- सामान्य तौर पर प्रत्येक मनुष्य के हाथ में पांच अंगुलियां होती हैं। किंतु कई बार आनुवांशिक अव्यवस्था के कारण परिवार में अतिरिक्त (छठी) अंगुली वाली संताने भी पैदा हो जाती हैं। हाथ में स्थित छठी अंगुली की अपनी कोई स्वतंत्र कार्य प्रणाली नहीं होती, ना ही इस अतिरिक्त अगं ुली का अपना कार्इे पर्वत होता है। हाथ में यह छठी अंगुली जिस अंगुली के साथ जुड़ी हुई होती है, उसी अंगुली की क्रियाशीलता पर अतिरिक्त अंगुली की क्रिया निर्भर करती है अर्थात् इस अतिरिक्त अंगुली का अपना कार्इे स्वतत्रं अस्तित्व नहीं हातो। यह तो मृत अंगुली के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज कराती रहती है। इसीलिए मध्यकालीन युग में आरै आज भी कुछ लोग इस अतिरिक्त अंगुली को शल्य चिकित्सा द्वारा कटवा दिया करते हैं। कुछ शाधेकर्ताओं का मत है कि प्रत्यके 1,00,000 बच्चों में लगभग 50 बच्चे ऐसे पैदा होते हैं जिनके हाथ में यह अतिरिक्त अंगुली पाई जाती है। हाथ में इस अतिरिक्त छठी अंगुली की स्थिति दो प्रकार से पाई जाती है। पहली स्थिति में छठी अगुंली कनिष्ठिका अंगुली की जुड़वा अंगुली के रूप में दिखाई देती है। दूसरी स्थिति में यह छठी अंगुली, अंगूठे के साथ जुड़ी हुई दिखाई देती है। पा्रचीन मत के अनसुार छठी अंगुली को सौभाग्य के सूचक के रूप में माना जाता रहा है। जबकि मध्यकालीन युग में इस छठी अगुंली का संबधं जादू टाने में माहिर व्यक्ति से माना जाता था और छठी अंगुली के धारक व्यक्ति को जादू-टोने, इंद्रजाल और मायावी विद्याओं में पारंगत समझा जाता था। आधुनिक मतानुसार छः अंगुलियों के धारक व्यक्ति को विश्वास के योग्य नहीं पाया जाता है। यदि यह छठी अंगुली कनिष्ठिका से जुड़ी हो तो ऐसे व्यक्ति बिल्कुल भी विश्वास के योग्य नहीं होते हैं। ऐसे व्यक्ति अपने जीवन में बात-बात पर केवल झूठ ही बोलते हैं, इसलिए ऐसे लोग विश्वास के योग्य बिल्कुल भी नहीं होते हैं। जनश्रुति के अनुसार 'ऐनी बोलेन' जो कि 'हैनरी' (अष्टम) की पत्नी एवं एलिजाबेथ (प्रथम) की मां थी, इनके दोनों हाथों में छः-छः अंगुलियां थीं। अपनी इसी प्रसिद्धि के कारण ये अपने इन हाथों को हमेशा लंबी आस्तीन के वस्त्रों से ढककर रखती थी। लेवीन ऐनी बोलेन के प्रतिपक्षी उन पर हमेशा वास्तव में एक डायन होने के आरोप लगाते थे। प्राचीन मतानुसार छः अंगुलियों को सौभाग्य का परिचायक मानते थ,े कितुं एसे ा ऐनी बोलने के साथ असत्य साबित हुआ। 1536 में ऐनी बोलेन का सिर हैनरी (अष्टम) के आदेशानुसार कलम करवा दिया गया। आधुनिक मतानुसार छः अंगुलियों के धारक व्यक्ति को विश्वास के योग्य नहीं पाया जाता है। यदि यह छठी अगं ुली कनिष्ठिका से जुडी़ हो ता े ऐसे व्यक्ति बिल्कुल भी विश्वास के योग्य नहीं होते हैं। ऐसे व्यक्ति अपने जीवन में बात-बात पर केवल झूठ ही बोलते हं,ै इसलिए एसे लागे विश्वास के याग्ेय बिल्कुल भी नहीं होते हैं। यह छठी अंगुली कनिष्ठिका से जुड़ी होने पर व्यक्ति के अंदर चालाकी, बेईमानी, कूटनीति आदि में अप्रत्याशित रूप से वृद्धि कर देती है। ऐसे व्यक्ति कब किस स्थिति में धोखा दे जाएं, इस बात की पहचान करना भी असंभव प्रतीत होता है। ऐसे व्यक्ति चालाकी और बइे र्म ानी में बहतु निपण्ुा हाते ह,ैं इसलिए ये लागे विश्वास याग्े य नहीं माने जाते है इसी तरह, यदि यह छठी अगंलुी अंगष्ुठ के साथ जुड़ी हो तो ऐसे व्यक्ति में विवेक की मात्रा सामान्य से कहीं अधिक होती है। लेकिन कभी-कभी इसी विवेक का दुरुपयोग भी इस छठी अंगुली के कारण ही होता है। अपने हाथ में छठी अंगुली के रूप में अंगुष्ठ के कारण रातां-े रात प्रसिद्ध हुए सिने अभिनेता ऋतिक रोशन को इस बात के उदाहरण के रूप में देखा जा सकता है कि किस तरह अपने विवेक से ऋतिक रोशन ने सिने जगत में बहु-प्रसिद्ध अभिनेता के रूप में अपना स्थान बनाया है। आजकल उनकी जो भी फिल्में आ रही हैं, उनमें वे अपने हाथ की इस छठी अंगुली को छिपाने का प्रयास नहीं करते हैं वरन् उसे सामान्य रूप से दिखाते हैं। उनकी पहली फिल्म (कहो ना प्यार है) में आप उनकी इस छठी अगं ुली को साफ रूप से देख सकते हैं। कुल मिलाकर इस छठी अंगुली का होना अच्छा नहीं माना जाता है। इसे प्रायः लोग बुरा ही मानते हैं, क्योंकि एक कहावत बहुत ही प्रसिद्ध है ''अति सर्वत्र वर्जयेत्'' अर्थात् अति हर चीज की बुरी होती है।
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हस्तरेखा में सूर्य पर्वत

हस्तरेखा में सूर्य पर्वत

हस्तरेखा में सूर्य पर्वत डॉ. अशोक शर्मा, हथलेी में जो स्थान सबसे अधिक बली होता है वह ग्रह सर्वाधिक बली माना जाता है। अलग-अलग ग्रह के स्वतंत्र प्रभाव तो है ही एक से अधिक ग्रह के पर्वत यदि अच्छा उभार लिए हुए है तो संयुक्त प्रभाव भी पृथक रूप से फलकारी होते हैं। अनामिका अंगुली के मूल में सूर्य का स्थान होता है।

 सूर्य का उभार जितना अधिक होगा, प्रभाव भी उतना ही अधिक प्राप्त होता है। सूर्य पर्वत का उभार अच्छा हो तथा स्पष्ट और सरल सूर्य रखाो हो तो व्यक्ति श्रष्ेठ पशासक, सवो या पुलिसकर्मी, सफल उद्यागे पति हातो है। पर्वत अधिक उभार वाला हो तथा रेखा कटी या टूटी हुई हो तो व्यक्ति घमंडी, अभिमानी, स्वार्थी, क्रूर, कंजूस तथा अविवेकी होता है। यदि हथेली में सूर्य पर्वत शनि की ओर झुका या संयुक्त होता है तो व्यक्ति न्यायाधीश, पंच या सफल अधिवक्ता होता है। दूषित पर्वत की स्थिति में अपराधी, कुखयात अपराधी या बदनाम व्यक्तित्व वाला होता है। सूर्य पर्वत तथा बुध पर्वत के संयुक्त उभार की स्थिति में योग्यता, चतुराई तथा निर्णय शक्ति अधिक होती है। श्रेष्ठवक्ता सफल व्यापारी या उच्च स्थानों का प्रबंधक होता है। 

ऐसे व्यक्तियों की धन पा्रप्ति की महत्वाकाक्षां असीमित होती है। दूषित उभार या अव्यवस्थित रेखाएं धनाभाव की स्थिति बनाती है तथा व्यक्ति जीवन के उत्तरार्ध में अवसाद से पीड़ित हो सकता है। हथेली में सूर्य पर्वत के साथ यदि बृहस्पति का पर्व उन्नत है तो व्यक्ति विद्वान, ज्ञानवान, मेधावी और धार्मिक विचारों वाला होता है और यदि सूर्य तथा शुक्र पर्वत उभार वाले है तो विपरीत लिंग के प्रति शीघ्र व स्थायी प्रभाव डालने वाला, धनवान, परोपकारी, सफल प्रशासक, सौंदर्य और विलासिताप्रिय होता है तथा दूषित पर्वत से कामी, लाभेी, लम्पट तथा घमडंी आरै दश्ुचरित्र वाला हो जाता है।

 सूर्य पर्वत पर जाली हो तो गर्व करने वाला किंतु कुटिल स्वभाव वाला होता है तथा किसी पर भी विश्वास न करने वाला होता है। तारा का चिन्ह हो तो धनहानि कारक किंतु प्रसिद्धि, अप्रत्याशित रूप से प्राप्त होती है। गुणा का चिन्ह हो तो सट्टा या शयेर में धन का नाश हो सकता है।

 सूर्य पर्वत पर त्रिभुज हो तो उच्च पद की प्राप्ति, प्रतिष्ठा तथा प्रशासनिक लाभ होते हैं। सूर्य पर्वत पर बिंदु या वृत्त हो तो निश्चित रूप से सूर्योदय के पहले या बाद का जन्म समय तथा आंखों में विशेष परेशानी होती है। सूर्य पर्वत पर चौकड़ी हो तो सर्वत्र लाभ तथा सफलता की प्राप्ति होती है। त्रिशूलाकार चिन्ह यश, आनंद, विलासिता व सफलता प्रदान करता है।
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आपके हाथों में निवास स्थान

आपके हाथों में निवास स्थान

आपके हाथों में निवास स्थान डॉ. भगवान सहाय श्रीवास्तव अंगूठा छोटा और कम खुलने वाला हो, अंगुलियां टेढ़ी-मेढ़ी हों तो ऐसे व्यक्ति का निवास स्थान गंदी जगह पर होता है। जीवन रखाो और मस्तिष्क रखाो दानोें ही दोषपूर्ण हा,ें अंगुलियां माटेी हों और अंगूठा कम खुलता हो तो इनके घर के पास गंदगी होती है और पड़ोसी भी अच्छे नहीं होते है।

 हाथ पतला, काला, कठोर, ऊबड़- खाबड ़ हो, अगूंठा छाटो आरै अंगुलियां मोटी हों तो ऐसे व्यक्तियों का निवास स्थान गंदी जगह पर होता है, रहने की जगह तंग-गली में होती है और पड़ौसी अच्छे नहीं होते। जीवन रखाो और मस्तिष्क रखाो दानोें ही मोटी हों तो निवास स्थान के पास जानवरों के बाडे ़ के कारण गंदगी हातेी है। यदि जीवन रेखा गोलाकार हो और उसमें त्रिभुज भी हो तथा मस्तिष्क रेखा शाखान्वित हो, हाथ कोमल हो तो मकान सुंदर व बड़े आकार का होता है।

 यदि साधारण मस्तिष्क रेखा मंगल या चंद्रमा पर जाती हो तो ये पैतृक घर में ही निवास करते हैं। यदि मस्तिष्क रेखा शाखान्वित हो तो पहले पैतृक घर में, फिर दूसरे घर में निवास करते हैं। मस्तिष्क रेखा दोनों हाथों में द्विशाखाकार हो तो मकान या संपत्ति की संखया अधिक होती है। यदि मस्तिष्क रेखा अंत में द्विशाखाकार हो, सूर्य और बृहस्पति की अंगुलियां तिरछी हों तो मकान का दरवाजा आबादी की ओर होता है।

 यदि मस्तिष्क रखाो अतं में द्विशाखाकार हो और शनि की अंगुली लंबी हो तो मकान का दरवाजा कम आबादी की ओर होता है। हाथ कठोर और निम्न स्तर का हो, अंगूठा कम खुलता हो तथा मस्तिष्क रखाो दोषपूर्ण हो तो निवास स्थान छाटो तथा गंदी जगह पर होता है। मस्तिष्क रेखा या उसकी शाखा चंद्रमा पर जाती हो तो मकान किसी जलाशय (कुआं, बावडी, तालाब या नहर) के पास होता है।

 जीवन रेखा में त्रिकोण हो और एक से अधिक भाग्य रेखाएं हों तो ऐसे व्यक्ति खुले-स्थान में मकान, बंगला, फ्लैट आदि बनाते हैं। एक से अधिक भाग्य रेखाएं हां,े जीवन रेखा में त्रिकोण हो तथा शनि की अंगुली लंबी हो तो ऐसे व्यक्तियों के मकान में पार्क या बगीचा होता है। एक से अधिक भाग्य रखाोएं हा,े जीवन रेखा में त्रिकोण हो तथा मुखय भाग्य रेखा चंद्रमा के पर्वत से निकली हो तो मकान या बंगले में कोई जलाशय (स्वीमिगं पलू ) या नहाने का हौज हातो है।

 जिस आयु में भाग्य रेखा मस्तिष्क रेखा के किसी त्रिकोण से निकलती हो, उसी आयु में मकान या संपत्ति बनाते हैं या पुरानी संपत्ति में फेरबदल या विस्तार करते हैं। मोटी भाग्य रेखा वालों का मकान किसी पेड़ के नीचे या बड़े मकान की छाया में अथवा गली में होता है। जीवन रेखा और मस्तिष्क रेखा का जोड़ लंबा, जीवन रेखा टूटी हुई और मस्तिष्क रेखा दोषपूर्ण हो तो निवास स्थान के पास वातावरण गंदा होता है।

 यदि मस्तिष्क रेखा या उसकी शाखा चंद्रमा पर जाती हो, भाग्य रेखा भी चंद्रमा से निकलती हां,े तो निवास स्थान समुद ्र या झील या नदी के किनारे हातो है। अंगुलियां छाटेी और पतली हां,े जीवन रेखा गोलाकार हो, मस्तिष्क रेखा अच्छी हो तो ऐसे व्यक्ति मकान बना लेते हैं।

 जीवन रखे ाा जिस आयु तक दाषेपूर्ण रहती है उस आयु तक व्यक्ति को रहने के मकान की कमी खटकती है। जीवन रेखा गोलाकार हो और मस्तिष्क रखाो शाखान्वित हो तो मकान स्वतंत्र खुली जगह में सुंदर और सुविधाओं से युक्त होता है।
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हस्त रेखाएं और ज्योतिष

हस्त रेखाएं और ज्योतिष

हस्त रेखाएं और ज्योतिष हरबू लाल अग्रवाल ज्योतिषीय गणनाएं जटिल हैं और हस्तरेखाएं विधाता द्वारा बनायी गयी प्रत्येक व्यक्ति की जीवन की सरल रूप रेखा है तथापि जो ज्योतिष में है वही हाथ की रेखाओं में भी अंकित है। दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। क्योंकि समय के साथ आने वाले परिवर्तन हस्तरेखाओं में अंकित होते रहते हैं जिन्हें थोड़े ही अध्ययन से जाना जा सकता है। आइए, जानें कैसा है यह संबंध। हस्त रेखा शास्त्र द्रारत में आदि काल से प्रचलित है। नारद जी इसके बहुत बडे़ विशेषज्ञ थे। रामायण में वर्णन आता है कि राजा शीलनिधि ने अपनी पु़त्री विश्वमोहिनी का हाथ नारद जी को दिखाया। आनि दिखाई नारदहिं द्रूपति राज कुमारि, कहहु नाथ गुन दोष सब एह के हृदय विचारि। जो एहि बरइ अमर सोइ होइ, समर द्रूमि तेहि जीत न कोई। यानी, इसका पति अमर और अजेय होगा। इसी प्रकार हिमालय ने अपनी पुत्री पार्वती का हाथ नारद जी को दिखाया, तो उत्तर मिला कि इसके पति वैरागी, द्रिक्षा मांगने वाले, अनिकेतन, सर्पो की माला धारण करने वाले होंगे। ये सब गुण द्रगवान शंकर में हैं। ज्योतिष के नव ग्रह और रेखा शास्त्र के पर्वत, ज्योतिष के घर या द्राव और हस्त की रेखाएं आपस में संबंधित हैं। हथेली में तर्जनी के नीचे बृहस्पति का पर्वत है, मध्यमा के नीचे शनि का पर्वत, अनामिका के नीचे सर्यू का पर्वत, कनिष्ठिका के नीचे बुध का पर्वत तथा अंगूठे से मिला हुआ, हथेली के ऊपरी द्राग में शुक्र का पर्वत है। मंगल के दो पर्वत हैं- ऊपर का तथा नीचे वाला। मंगल (ऊपर वाला) का पर्वत अंगठूे के नीच,े बृहस्पति पर्वत से लगा हअु ा तथा मगं ल (नीचे वाला ) पर्वत बुध पर्वत से लगा हुआ, मंगल (ऊपर वाला) के ठीक सामने हथेली के निचले द्राग में है। ऐसा माना जाता है कि ऊपर वाले में मेष राशि और नीचे वाले में वृश्चिक राशि के स्थान हैं। चंद्रमा का पर्वत हथेली के बायीं तरफ, शुक्र पर्वत की दूसरी ओर, मणिबंध से लगा हुआ है। मंगल (नीचे वाले) के ऊपर की ओर, हृदय रेखा से मिला हुआ, हथेली के बीच में राहु (डै्रगन हेड) है। शुक्र पर्वत के नीचे, हथेली के बीच में, द्राग्य रेखा के उद्गम के पास, केतु (डै्रगन टेल ) होता है। का पर्वत है, मध्यमा के नीचे शनि का पर्वत, अनामिका के नीचे सर्यू का पर्वत, कनिष्ठिका के नीचे बुध का पर्वत तथा अंगूठे से मिला हुआ, हथेली के ऊपरी द्राग में शुक्र का पर्वत है। मंगल के दो पर्वत हैं- ऊपर का तथा नीचे वाला। मंगल (ऊपर वाला) का पर्वत अंगठूे के नीच,े बृहस्पति पर्वत से लगा हअु ा तथा मगं ल (नीचे वाला ) पर्वत बुध पर्वत से लगा हुआ, मंगल (ऊपर वाला) के ठीक सामने हथेली के निचले द्राग में है। ऐसा माना जाता है कि ऊपर वाले में मेष राशि और नीचे वाले में वृश्चिक राशि के स्थान हैं। चंद्रमा का पर्वत हथेली के बायीं तरफ, शुक्र पर्वत की दूसरी ओर, मणिबंध से लगा हुआ है। मंगल (नीचे वाले) के ऊपर की ओर, हृदय रेखा से मिला हुआ, हथेली के बीच में राहु (डै्रगन हेड) है। शुक्र पर्वत के नीचे, हथेली के बीच में, द्राग्य रेखा के उद्गम के पास, केतु (डै्रगन टेल ) होता है। जीवन रेखा बृहस्पति पर्वत के पास से निकल कर शुक्र पर्वत के नीचे से होती हुई, मणिबंध तक जाती है। इसी रखाो के ऊपरी द्राग में मगंल पर्वत (ऊपर वाले) के निचले द्राग में, लंबाई में कम, समानातं र मगंल रखाो हातेी है इन दानोें रेखाओं से अष्टम द्राव, यानी उम्र का पता लगता हैं। यह रेखा सूर्य पर्वत पर होती है तथा ज्यादातर हृदय रेखा तक जाती है। इससे परीक्षाओं में सफलता का बोध होता है; यानी पंचम स्थान का ज्ञान होता है। यह रेखा जीवन रेखा से निकल कर उसके निचले भाग से, मस्तिष्क तथा हृदय रखाोओं को काटती हुई, शनि पर्वत पर, मध्यमा तक जाती है। यही ज्योतिष में नवम द्राव है। यह रेखा बुध पर्वत पर हाते ी है तथा हृदय रेखा तक जाती हैं। इससे कुंडली में प्रथम द्राव को जानना चाहिए। यह रेखा बुध पर्वत पर आरै स्वास्थ्य रखे ाा से आड़ी, हथेली के निचले द्राग में है इससे कुंडली के सप्तम द्राव का पता लगता है। यह शत्रुओं तथा बीमारियों से होने वाली तकलीफों का द्योतक है। यही कुंडली का छठा स्थान है। जीवन रेखा, हृदय रेखा तथा मस्तिष्क रेखाओं के बीच में जो त्रिकोण बनते हैं, उनसे मकानों का पता लगता है। यही कुंडली में चौथा स्थान है। यह जीवन रेखा के अंत में, ऊपरी तरफ, मणिबंध के करीब से निकल कर, मछली की तरह होती है। इससे धन का पता लगता है। यह दूसरा स्थान है। शुक्र पर्वत पर जीवन रेखा के ऊपरी द्रागमे ं जितनी आड़ी रेखाएं हैं, उनसे भाई-बहनो ं का पता लगता है यह कुंडली का तीसरा स्थान है। चंद्र पर्वत के नीचे, हथेली के बायें द्राग में आड़ी रेखाएं ह,ैं जिनसे संतान का पता लगता है।
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अंग लक्षण एवं सामुद्रिक


अंग लक्षण एवं सामुद्रिक

अंग लक्षण एवं सामुद्रिक का परस्पर संबंध रश्मि चौधरी हस्त रेखा शास्त्र, अंग लक्षण विद्या तथा सामुद्रिक क्या ये तीनों एक ही हैं? अंग लक्षण विद्या एवं सामुद्रिक का परस्पर क्या संबंध है? हस्तरेखा विज्ञान को सामुद्रिक क्यों कहते हैं? प्रस्तुत है इन सभी ज्योतिषीय प्रश्नों के उत्तर देता हुआ यह ज्योतिषीय लेख- मनुष्य का हाथ एक ऐसी जन्म पत्रिका है जो कभी भी नष्ट नहीं होती तथा जिसके रचयिता स्वयं ब्रह्माजी हैं।

 इसलिए शास्त्रों में कहा भी गया है- ''कराग्रे वसते लक्ष्मी, कर मध्ये सरस्वती। करमूले स्थितो ब्रह्मा, प्रभाते कर दर्शनम्॥ कर (हाथ) के अग्रभाग में लक्ष्मी, मध्य भाग में सरस्वती तथा मूल में ब्रह्मा जी का वास है अतः प्रातः उठकर सर्वप्रथम अपनी हथेलियों का दर्शन करना चाहिए। हस्तरेखा विज्ञान तथा अंग लक्षण विज्ञान को ही सामुद्रिक भी कहा गया है।

 ऐसा माना जाता है कि समुद्र ऋषि ही एसे सवर्प्रथम भारतीय ऋषि थे जिन्हांने प्रामाणिक एवं क्रमबद्ध रूप से ज्योतिष विज्ञान की रचना की थी अतः उन्हीं के नाम पर हस्त रखाो विज्ञान को सामुिदक्र भी कहा जाता है। हस्तरेखा विज्ञान को सामुद्रिक क्यों कहते हैं अथवा अंग लक्षण विद्या का सामुद्रिक से क्या संबंध है। इससे संबंधित तथ्यों का उल्लेख भी वेदों और पुराणों में मिलता है। 

'अंग लक्षण विद्या' से तात्पर्य एक ऐसी विद्या से है जिसके ज्ञान के द्वारा स्त्री पुरुष के शारीरिक अंगों में विद्यमान उसके शुभाशुभ लक्षणों को देखकर ही उनके व्यक्तित्व, स्वभाव, चरित्र तथा भाग्य का सटीक और सार्थक फलादशे किया जा सके। ऐसी विलक्षण विद्या की रचना सर्व प्रथमगणशे भगवान के अगज्र भगवान कार्तिकेय ने की थी। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि भगवान गणेश को 'विघ्नेश', 'विघ्न विनाशक' तथा 'एकदंत' भी कहते हैं।

 उन्होंने किसके लिए विघ्न उत्पन्न किया था, जिसके कारण उन्हें विघ्नशे कहा गया अथवा गणश्े ा जी को एकदंत क्यो कहते हैं? यदि इस प्रश्न की गहराई में जाएं तो भी हम पाएगे कि इसका मलू कारण भी 'समुद्र शास्त्र' ही है। ऐसा माना जाता है कि प्राचीन काल में शिव जी के ज्येष्ठ पुत्र भगवान कार्तिकेय ने अपने 'अंग लक्षण शास्त्र' के अनसु ार पुरुषों एवं स्त्रियों के श्रेष्ठ लक्षणों की रचना की। उसी समय गणेश जी ने उनके इस कार्य में विघ्न उत्पन्न किया। इस पर कार्तिकेय क्रुद्ध हो उठे और उन्हांने गणेश जी का एक दातं उखाड़ लिया और उन्हें मारने के लिए उद्यत हो उठे।

 तब भगवान शकं र ने कार्तिकये को बीच में रोककर पूछा कि उनके क्रोध का कारण क्या है? कार्तिकेय जी ने कहा ''पिताजी, मैं पुरुषों के लक्षण बनाकर स्त्रियों के लक्षण बना रहा था, उसमें गणेश ने विघ्न उत्पन्न किया, जिससे स्त्रियों के लक्षण मैं नही ंबना सका। इस कारण मुझे क्रोध आया।'' यह सुनकर महदेव जी ने उनके क्रोध को शांत किया और मुस्कुराकर उनसे पूछा- ''पुत्र, तुम पुरुष के लक्षण जानते हो, तो बताओ मुझमें पुरुषों के कौन-कौन से लक्षण विद्यमान हैं?'' कार्तिकेय जी ने कहा ''पिता जी, आप म ें पुरुषा ें के ऐस े लक्षण विद्यमान हैं कि आप संसार में 'कपाली' के नाम से प्रसिद्ध होंगे।

 पुत्र के ऐसे वचनों को सुनकर शिवजी क्रोधित हो गये और उन्होंने कार्तिकेय जी के अंग लक्षण शास्त्र का े उठाकर समुद्र में फकें दिया और स्वयं अंर्तध्यान हो गये। कुछ समय पश्चात् जब शिवजी का क्रोध शांत हुआ तो उन्होंने समुद्र को बलु ाकर कहा कि तमु स्त्रियों के आभष्ूाण स्वरूप विलक्षण लक्षणां े की रचना करो और कार्तिकेय ने जो कुछ भी पुरुष लक्षणों के बारे में कहा है उसकी भी विस्तृत विवेचना करो।'' समुद्र ने शिवजी की आज्ञा शिरोधार्य करते हुए कहा ''स्वामिन्, आपने जो आज्ञा मुझे दी है, वह निश्चित ही पूर्ण होगी, किंतु जो मेरे द्वारा स्त्री-पुरुष लक्षण का शास्त्र कहा जाएगा, वह मरे ही नाम 'सामुिदक्र शास्त्र' नाम से प्रसिद्ध होगा।

 कार्तिकेय ने भगवान महेश्वर से कहा ''आपके कहने से यह दातं तो मैं गणशे के हाथ में दे देता हूं किंतु इन्हें इस दांत को सदैव धारण करना होगा। यदि इस दांत को फेंक कर ये इधर-उधर घूमेंगे तो फेंका गया दांत इन्हें भस्म कर देगा''। ऐसा कहकर कार्तिकेय जी ने वह दांत गणेश जी के हाथ में दे दिया। भगवान देवदेवेश्वर श्री शिव जी ने गणेश जी को कार्तिकेय की यह बात मानने के लिए सहमत कर लिया। आज श्री भगवान शंकर एवं गौरा पार्वती के पुत्र विघ्नेश विनायक की प्रतिमा हाथ में अपना दांत लिए देखी जा सकती है तथा किसी भी शुभ अवसर पर हिदं ू धर्म में सर्वप्रथम गणेश जी की पूजा-अर्चना का विधान भी शायद इसीलिए बनाया गया है कि व्यक्ति के किसी भी कार्य में कोई भी विघ्न न उपस्थित हो।

 अतः स्पष्ट है कि अंग लक्षण विद्या से सबंंिधत शास्त्र की रचना में विघ्न उत्पन्न करने के कारण ही गणेश जी को विघ्नेश कहा गया तथा भगवान कार्तिकेय के क्रोध के कारण दण्ड स्वरूप उन्हें एकदंत होना पड़ा। लक्षण शास्त्र से सबंंिधत पुराणाक्ते एक कथा यह भी है कि, भगवान शिव द्वारा क्रोध में आकर कार्तिकेय द्वारा रचित लक्षण ग्रंथ को समुद में फेंक देने के उपरांत व्योमकेश भगवान के सुपुत्र कार्तिकेय जी ने जब अपनी अनुपम शक्ति से क्रौंच पर्वत को विदीर्ण किया तो ब्रह्मा जी ने वर मांगने को कहा। 

कुमार कार्तिकेय ने नतमस्तक होकर उन्हें प्रणाम किया और कहा ''प्रभो। स्त्रियों के विषय में जो लक्षण ग्रंथ मैंने पहले बनाया था उसे तो मेरे पिता महादवे देवश्े वर ने क्रोध में आकर समदु्र मे फकें दिया। वह मुझे अब विस्मृत भी हो गया ह।ै अतः उसको पुनः सनु ने की मेरी बड़ी इच्छा है।

 यदि आप मुझ पर पस्रन्न हैं तो कृपा कर पनु : उन्हीं लक्षणों का वर्णन करें। तब कार्तिकेय जी के आग्रह करने पर ब्रह्मा जी ने स्वयं समुद्र द्वारा कहे गये उन स्त्री-पुरुष लक्षणों को पुनः वर्णित किया। उन्होंने उसी शास्त्र के आधार पर स्त्री-पुरुष के शुभाशुभ उत्तम, मध्यम आरै अधम ये तीन प्रकार के लक्षण बतलाए जिसके अनुसार किसी भी जातक का स्वभाव, व्यवहार तथा भाग्य निर्धारित किया जा सकता है। अतः यह पूर्ण रूपेण प्रामाणिक एवं शास्त्रोक्त भी है, कि हस्तरेखा, अंग लक्षण विद्या एवं सामुद्रिक का परस्पर गहरा एवं अटूट संबंध है। एक अच्छे ज्योतिषी को चाहिए कि वह अंग लक्षण विद्या एवं ज्योतिष का परस्पर समन्वय स्थापित करते हुए शुभ मुहर्तू में मध्याह्न के पूर्व स्त्री-पुरुष के शुभाशुभ लक्षणों एवं हस्त रेखाओं का भली प्रकार अध्ययन करने के उपरांत ही सटीक एवं सार्थक फलादेश करें।
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हस्तरेखा से जानिए किस क्षेत्र में मिलेगी सफलता


हस्तरेखा से जानिए किस क्षेत्र में मिलेगी सफलता

आज जैसे-जैसे वैज्ञानिक विकास हो रहे हैं, वैसे-वैसे समाज में नई-नई सुविधाओं एवं क्षेत्रों का सूत्रपात हो रहा है। इससे कामों का वर्गीकरण इस प्रकार हो रहा कि किसी प्रॉडक्ट का एक हिस्सा कहीं बन रहा है तो दूसरा कहीं और। फिर सबकी असेंबलिंग कहीं और हो रही है! इसी कारण एक ही रोजगार कई-कई शाखाओं में बंट गया है। जैसे जैसे विज्ञान ने तरक्की की है रोजगार की बढ़ती शाखाओं के कारण उसका चयन करना एक कठिन प्रक्रिया होती जा रही है।

हस्त रेखा शास्त्र द्वारा भी रोजगार चयन में सहायता प्राप्त हो जाती है। किन्तु सर्वप्रथम यह जान लेना आवश्यक है कि आप किस क्षेत्र में सफल हो सकते हैं।

यदि अंगुलियों के पहले पोरे सबल एवं लम्बे हैं तो आप में सीखने की ललक अच्छी है। यानी आप उच्चा शिक्षा ग्रहण करने में सफल हो जाएंगे। यदि अगुंलियों के दूसरे पोरे लम्बे और सबल हैं तो आप प्रैक्ट्रिकल फील्ड में चल जाएंगे। अर्थात् आप के अंदर देखकर सीखने की क्षमता है। इसके विपरीत यदि तीसरा पोरा ज्यादा सबल है तो आपका उत्पादन, व्यापार या व्यवसाय के क्षेत्र में जाना ज्यादा उचित होगा।

सर्वप्रथम यह तय कर लेना जरूरी है कि भाग्य किस ग्रह द्वारा संचालित है यानी हाथ में कौनसा पर्वत क्षेत्र ज्यादा प्रभावी है। उसके स्वामी द्वारा ही उसका जीवन ज्यादा प्रभावित रहता है।

उसे संक्षिप्त रूप में हम इस प्रकार जान सकते हैं:

1. बृहस्पति: राजनीति, सेना या सामाजिक संगठनों में उच्च पद, अध्ययन-अध्यापन, सलाहकार, कर/आर्थिक विभाग, कानून एवं धर्म क्षेत्र।

2. शनि: तंत्र, धर्म, जासूसी, रसायन, भौतिकी, गणित, मशीनरी, कृषि, पशुपालन, तेल, अनगढ़ कलाकृतियां इत्यादि।

3. सूर्य: कला, साहित्य, प्रशासन संबंधी।

4. बुध: इनडोर गेम्स, बोलने से जुड़े व्यवसाय, मार्केटिंग, विज्ञान, व्यापार, वकालत, चिकित्सा क्षेत्र, बैंक आदि।

5. मंगल: साहसी कार्य, अन्वेषण खोज, खिलाड़ी, पर्वतरोहण, खतरों से भरे कार्य, सैनिक, पुलिस, जंगल या वन क्षेत्र इत्यादि।

6. चन्द्र: कला, काव्य, जलीय व्यवसाय, तैराक, तरल वस्तुएं।

7. शुक्र: कला, संगीत, चित्रकारी या गंधर्व कलाएं, नाटक इत्यादि, महिला विभाग, कम्प्यूटर, हस्तशिल्प, पयर्टन आदि।
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